क्यों होते हैं बलात्कार!!!

*क्यों होते  हैं बलात्कार*

कहते हुए बड़ा अफ़सोस होता है कि जिस भारत में नारियों को देवी का रूप माना जाता है उसी भारत में दुधमुंही बच्ची से लेकर 80 साल तक कि महिला के साथ बलात्कार होता है।आज के समाज मे ऐसी स्थितियाँ बन गयी है कि आम से लेकर ख़ास महिलाओं तक का घर से निकलना दूभर हो गया है।
कहने के लिए तो हमारे यहाँ "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते,रमन्ते तत्र देवता" का उद्बोधन जोरों से दुहराया जाता है लेकिन एनसीआरबी के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति कुछ इतर ही प्रतीत होती है-

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रतिदिन लगभग 50 बलात्कार के मामले थानों में पंजीकृत होते हैं। प्रकार भारतभर में प्रत्येक घंटे दो महिलाएं बलात्कारियों के हाथों अपनी अस्मत गंवा देती हैं, लेकिन आंकड़ों की कहानी पूरी सच्चाई बयां नहीं करती। बहुत सारे मामले ऐसे हैं, जिनकी रिपोर्ट ही नहीं हो पाती।
  हर वर्ष बलात्कार के मामलों में बढ़ोतरी होती जा रही है। वर्ष 2011 में देशभर में बलात्कार के कुल 7,112 मामले सामने आए, जबकि 2010 में 5,484 मामले ही दर्ज हुए थे। आंकड़ों के हिसाब से एक वर्ष में बलात्कार के मामलों में 29.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीबी के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली बलात्कार के मामले में सबसे आगे है।
विश्व स्वास्थ संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, 'भारत में प्रत्येक 54वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’ वहीं महिलाओं के विकास के लिए केंद (सेंटर फॉर डेवलॅपमेंट ऑफ वीमेन) अनुसार, , ‘भारत में प्रतिदिन 42 महिलाएं बलात्कार का शिकार बनती हैं। इसका अर्थ है कि प्रत्येक 35वें मिनट में एक औरत के साथ बलात्कार होता है।’

दरअसल, बलात्कार एक जटिल फिनोमिना है और अलग-अलग बलात्कारों के पीछे कुछ समान और कुछ भिन्न कारण काम करते हैं। हरियाणा, दिल्ली, मणिपुर और बस्तर के बलात्कारों को एक तरीके से नहीं समझा जा सकता। इसी तरह, पिता, चाचा, मामा, भाई या पड़ोसी द्वारा किया गया बलात्कार अलग समझ की मांग करता है।अमीरों द्वारा गरीब महिलाओं के बलात्कार में ठीक वे कारण काम नहीं करते जो किसी गरीब द्वारा किसी अमीर महिला के बलात्कार के मूल में होते हैं। इस तरह के वैविध्य पर ध्यान देंगे तो पाएंगे कि बलात्कारों के मूल में यौन-इच्छा की आक्रामकता एक कारण के रूप में भले मौजूद हो, पर वास्तव में वह न तो अकेला कारण है और न ही सबसे महत्वपूर्ण।
एक ओर जहाँ पुरुषवादी सोच से पीड़ित समाज में महिलाओं पर वर्चस्व कायम करने का भाव पुरुषों को बलात्कार जैसे घिनौने कुकृत्य के लिए उकसाती है  तो वहीं दूसरी ओर उच्चवर्ग की निम्नवर्ग पर हावी होने की धारणा,गरीब महिलाओं को बलात्कार के ज़द में धकेलती नजर आती हैं।
वास्तव में बलात्कार जैसे घिनौने कुकृत्य के लिए वर्तमान जीवनशैली   काफी हद तक जिम्मेदार है।
आज की जीवनशैली में गांवों,कस्बों और शहरों में रहने वाले लगभग हर व्यक्ति के लिए इंटरनेट का प्रयोग करना आम बात है जहाँ से उसे 'सेक्स' से संबंधित ऑडियो-वीडियो प्राप्त करना बहुत आसान हो गया है।हालाँकि कोई भी सामान्य व्यक्ति इन संदर्भों का उपयोग सेक्स के प्रति अपनी आकस्मिक इच्छा को शांत करने के लिए प्रयोग करता है लेकिन ये संसाधन उस व्यक्ति में सेक्स के प्रति इच्छा को और अधिक उग्र करता है।वर्तमान समय में तो टीवी और अख़बार भी इस तरह की भावनाओं को उभार देने में पीछे नजर नही आते।वो चाहे किसी विशेष उत्पाद जैसे-अंडरवियर, परफ्यूम या कॉन्डोम आदि के संदर्भ में प्रचार के लिए उपयोग में आई सामग्री हो या फिर टीआरपी के लिए निम्नस्तर के अर्धनग्न और ओछे चित्रों का प्रयोग हो।
कुल मिलाकर हम ऐसे समय और समाज मे जी रहे हैं जहां सुबह से लेकर शाम तक हर कदम पर यौन इच्छाओं को भड़काने वाले संसाधन मिलते रहते हैं।लेकिन भारत जैसे देश मे यौन इच्छाओं को शांत करने के लिए संशाधन बहुत ही सीमित हैं।कहीं न कहीं यह खाई समाज को बलात्कार जैसे कुत्सित कृत्य की तरफ ले जाती है।
यौन शिक्षा का अभाव भी नवयुवकों को गर्त में ले जा रहा है।आज का नवयुवक बहुत छोटी उम्र से ऐसे संशाधनों के चपेट में आ गया है जो यौन इच्छा को भड़काने वाले हैं।ऐसे समय मे यौन शिक्षा का अभाव युवक को गलत प्रवृत्ति कीओर मोड़ देता है।
सबसे बढ़कर कानून के प्रति किसी भी तरह का भय न होना भी बलात्कार का एक कारण बन जाता है।अक्सर,अपराधी ये बात जान रहे होते हैं कि कानून की लचर व्यवस्था उनका कुछ बिगड़ नही पाएगी  या फिर वो अपने किसी रसूख का लाभ उठाकर बच निकलेंगे।महिलाओं की कानूनी दांवपेचों से अनभिज्ञता भी पुरुष के कानून के प्रति अभय को आश्वस्त करती है।
हमारे समाज में बलात्कार पीड़ित महिला इस तरह का व्यवहार नही किया जाता कि वह किसी दुर्घटना से ग्रस्त  महिला है बल्कि उसकी शारीरिक पवित्रता और वर्जिनिटी को ध्यान में रखते हुए उससे एक अपराधी की तरह बर्ताव किया जाता है।इसीलिए महिलाओं में हमेशा भय का भाव बना रहता है और पुरुष वर्ग इसका फायदा उठाता है।
हमारा मध्य और  निम्नवर्गीय समाज या तो पश्चिमी देशों से या फिर बम्बइया सिनेमा से संचालित होने वाला समाज बन गया है।उन समाजों की 'सांस्कृतिक नंगई' का दंश हमारे समाज को झेलना पड़ता है।फिल्मी चरित्रों से प्रेरित होकर हमारे मन मे भी एक तरह की स्वच्छंदता का भाव जन्म लेता है जिसे हम वस्त्रों या फिर रहन-सहन के स्तर पर दिखाने की कोशिश करते हैं।लेकिन क्या हम बौद्धिक और मानसिक रूप से इतने स्वच्छंद हो पाए हैं।शायद नही।
और यही सब कारण बन जाता है एक घिनौने सच 'बलात्कार' का।

                                विष्णु वैश्विक


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