गज़ल

क्यूँ हद से ज़्यादा सता रहे हो,
कदम-कदम पे आज़मा रहे हो।
जमाना देखेगा, मुस्कराएगा,चल देगा,
क्यूँ मेरे घाव सबको दिखा रहे हो।।
क्यूँ हद से ज़्यादा सता रहे हो।

मेरे दर्द को मेरा गिला कहके
जमाने भर को बता रहे हो।
ज़माने में यूँ ही बदनाम हैं हम,
और बदनाम करके क्या पा रहे हो।।
क्यूँ हद से ज़्यादा सता रहे हो।

चले ना जाएँ गली से तेरे
क्यूँ रास्ते में कांटा बिछा रहे हो।
सफ़र में तकलीफ़ आती ही है
क्यूँ मेरी भावनाओं को भुना रहे हो।।
क्यूँ हद से ज़्यादा सता रहे हो।

तुम्हें अंधेरों से डरना चाहिए,
तुम रोशनी से घबरा रहे हो।
बहुत बुरे हैं ये दुनिया वाले,
क्यूँ इनकी बातों में आ रहे हो।।
क्यूँ हद से ज़्यादा सता रहे हो।

मेरे मुकद्दर में है तन्हाई
क्यूँ मुझसे और दूर जा रहे हो।
मुझे मिलोगे सुकूँ मिलेगा
जानते हो फ़िर कहाँ जा रहे हो।।
क्यूँ हद से ज़्यादा सता रहे हो।।

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