बेटियाँ

एक बाप नहीं चाहता उसके घर बेटी हो,
जो सिर्फ बेटी दे सके ऐसी खुशियों की पेटी हो।
वो नहीं चाहता कि उसके घर एक परी हो,
जो नन्हीं सी मुस्कान लिए उसके सामने खड़ी हो।।

वजह ये नहीं कि वो उसे पढ़ाएगा कैसे,
वजह ये भी नहीं की उसकी शादी रचाएगा कैसे।
वजह कुछ और है!
वजह ये है कि कहीं उसकी इज्जत तार-तार न हो जाए,
उसे डर है‌ उसकी बेटी का बलात्कार न हो जाए।।

अरे कोई नहीं समझता इस पीड़ा- इस दर्द को,
उसके शरीर के निशान,बहते हुए रक्त को।।
क्योंकि हम तो‌ मशरूफ रहते हैं अपनी ही बातों में,
अरे हमें क्या मतलब कितना‌ तनाव है हालातों में।।


हमें क्या मतलब किस‌ बहन-बेटी की इज्जत लुटी,
हमारे घर की इज्जत तो सुरक्षित है न हमारे हाथों में।।

अरे! शर्म करो ये कहने वालों इज्जत बाजार में नहीं बिकती।
तुम्हें लड़की के छोटे कपड़े दिखते हैं,अपनी छोटी सोच नहीं दिखती।।

और क्या कहते हो तुम, 
कि लड़की अगर छोटे कपड़े पहनकर सरेआम घूमे तो ही रेप होता  है?
लड़की अगर रात में बाहर निकले तो ही रेप होता है?

तो मेरी बात ध्यान से सुनो,
बाहर निकलने की क्या जरूरत है जब घर में ही आठ महीने की बच्ची का बलात्कार हो सकता है?
किसी बाहर वाले की क्या जरूरत है जब बलात्कारी रिश्तेदार हो सकता है?

अरे! उसकी चीखों से पूरे घर में आई आफ़त थी,
जब उसको देखा गया वो खून में लथपथ थी।

आँख खुलने से पहले ही तुमने उसे सुला दिया,
जिसको दूध से नहलाना था उसे खून से नहला दिया।।

अरे उसे देख उस दिन हर अत्मा डर गई थी,
उस दिन सिर्फ एक बेटी नहीं पूरी इन्सानियत मर गई थी।

पर न जाने तुम्हारी ये सोच किस फिराक में बैठी है ,
शायद तुम भूल जाते हो कि
तुम्हारे घर में भी एक जवान बेटी है।।

अरे! तुम्हारी इसी भूल की वजह से मेरी बहन के शरीर में सरिया डाला जाता है,
चलती बस से फिर उसे फेंक दिया जाता है।

उसे रोड पे नंगा‌ देख वीडियो बना ली जाती है,
फेसबुक,व्हाट्सएप,ट्विटर पर भी उसकी इज्जत उछाली‌ जाती है।।

उसके कातिल भी जेल से यूँ ही निकल जाते हैं,
वहाँ से निकल फिर वो‌ एक बस में चढ़ जाते हैं।
ताकि फिर कोई बहन उनकी बस में सवार हो सके,
ताकि फिर कोई दामिनी उनकी हवस  का शिकार हो सके।।

फिर हम नारे लगा देते हैं बेटी को कमजोर बताने के,
हिंदू - मुस्लिम भी कसर नहीं छोड़ते एक-दूसरे को नीचा दिखाने में।

तुम करते रहो अपना काम एक-दूसरे को बुरा-भला कहने में,
तुम क्या जानो कितना दर्द होता है एक बेटी को दर्द सहने में।।

और मैं बिल्कुल नहीं घबराऊँगी ये बात कहने में, ज्यादा वक्त नहीं है तुम्हारी बहन- बेटियों का भी खून बहने में।

अरे ये सब सोचकर कौन बाप चाहेगा कि उसके घर में भी एक बेटी हो,
जो छाती से लगी उसकी गोद में लेटी हो।।

बस! अब और नहीं,
अब‌ हर आदमी को टोकना होगा,
आतंकवाद से पहले इन जंगलियों को रोकना होगा।

अब नारे नहीं लगाने हैं इंसाफ़ के,
अब आस नहीं लगानी है सोती सरकार से।
अरे अब तो‌ खुद ही सब्र की सीमा लाँघनी होगी,
मेरे जागने से ही क्या होगा,अब देश की हर नारी जागनी होगी।।

उमंग राणा-गाज़ियाबाद
कक्षा-बारहवीं
जे.के.जी.इंटरनेशनल स्कूल

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