Miyan Nasiruddin: Chapter, Summary, Question-Answer,MCQ
MCQ
Miyan Nasiruddin:Path Parichay
मियाँ नसीरुद्दीन-शब्दचित्र-हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोट्री पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारत बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।
Krishna Sobati:Jeevan Parichay
कृष्णा सोबती का जन्म 1925 ई. में पाकिस्तान के गुजरात नामक स्थान पर हुआ। इनकी शिक्षा लाहौर, शिमला व दिल्ली में हुई। इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया।कृष्णा सोबती ने अनेक विधाओं में लिखा। उनके कई उपन्यासों, लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है।
इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास-जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम।
कहानी-संग्रह-डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी औधेरे के।
शब्दचित्र, संस्मरण-हम-हशमत, शब्दों के आलोक में।
Miyan Nasiruddin: Saransh/Summary
मियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोट्री पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारत बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।
लेखिका बताती है कि एक दिन वह मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की तरफ निकली तो एक अँधेरी व मामूली-सी दुकान पर आटे का ढेर सनते देखकर उसे कुछ जानने का मन हुआ। पूछताछ करने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। ये छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। उनके चेहरे पर अनुभव और आँखों में चुस्ती व माथे पर कारीगर के तेवर थे।
लेखिका के प्रश्न पूछने की बात पर उन्होंने अखबारों पर व्यंग्य किया। वे अखबार बनाने वाले व पढ़ने वाले दोनों को निठल्ला समझते हैं। लेखिका ने प्रश्न पूछा कि आपने इतनी तरह की रोटियाँ बनाने का गुण कहाँ से सीखा? उन्होंने बेपरवाही से जवाब दिया कि यह उनका खानदानी पेशा है। इनके वालिद मियाँ बरकत शाही नानबाई थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे। उन्होंने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा।
नसीरुद्दीन ने बताया कि हमने यह सब मेहनत से सीखा। जिस तरह बच्चा पहले अलिफ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुँच जाता है, उसी तरह हमने भी छोटे-छोटे काम-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना आदि करके यह हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है।
खानदान के नाम पर वे गर्व से फूल उठते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार बादशाह सलामत ने उनके बुर्जुगों से कहा कि ऐसी चीज बनाओ जो आग से न पके, न पानी से बने। उन्होंने ऐसी चीज बनाई और बादशाह को खूब पसंद आई। वे बड़ाई करते हैं कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। लेखिका ने इस कहावत की सच्चाई पर प्रश्नचिहन लगाया तो वे भड़क उठे। लेखिका जानना चाहती थी कि उनके बुजुर्ग किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। अब उनका स्वर बदल गया। वे बादशाह का नाम स्वयं भी नहीं जानते थे। वे इधर-उधर की बातें करने लगे। अंत में खीझकर बोले कि आपको कौन-सा उस बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्री भेजनी है।
लेखिका से पीछा छुड़ाने की गरज से उन्होंने बब्बन मियाँ को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उन्हें मजदूरी देते हैं। लेखिका ने रोटियों की किस्में जानने की इच्छा जताई तो उन्होंने फटाफट नाम गिनवा दिए। फिर तुनक कर बोले-तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। फिर वे यादों में खो गए और कहने लगे कि अब समय बदल गया है। अब खाने-पकाने का शौक पहले की तरह नहीं रह गया है और न अब कद्र करने वाले हैं। अब तो भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। हर व्यक्ति जल्दी में है।
मियाँ नसीरुद्दीन पाठ के शब्दार्थ
साहबों-दोस्तों
अपन-हम
हज़ारों-हजार-अनगिनत
मसीहा-देवदूत
धूमधड़क्के-भीड़
नानबाई-रोटी बनाने और बेचने वाला
लुत्फ-आनंद
अंदाज-ढंग
आड़े-तिरछे
निहायत-बिल्कुल
पटापट-पट-पट की आवाज़
सनते-मलते
काइयाँ-चालाकी
पेशानी-माथा
तेवर-मुद्रा
पंचहज़ारी-पाँच हज़ार सैनिकों का अधिकारी
अखबारनवीस-पत्रकार
खुराफ़ात-शरारत
निठल्ला-खाली
किस्म-प्रकार
इल्म-ज्ञान
हासिल-प्राप्त
कंचे-पुतली
तरेरकर-तानकर
नगीनासाज़-नगीना जड़ने वाला
आईनासाज-दर्पण बनाने वाला
मीनासाज-सोने-चाँदी पर रंग करने वाला
रफूगर-फटे कपड़ों के धागे जोड़कर पहले जैसा बनाने वाला
रँगरेज़-कपड़े रंगने वाला
तंबोली-पान लगाने वाला
फरमाना-कहना
खानदानी-पारिवारिक
पेशा-धंधा
वालिद-पिता
उस्ताद-गुरु
अख्तियार करना-स्वीकार करना
हुनर-कला
मरहूम-स्वर्गीय उठ जाने-मृत्यु हो जाने
ठीया-जगह
लमहा-क्षण
आला-श्रेष्ठ
नसीहत-सीख
बजा फरमाना-ठीक कहना
कश खींचना-साँस खींचना
अलिफ-बे-जीम-फारसी लिपि के अक्षरों के नाम। सिर पर धरना-सिर पर मारना
शागिर्द-चेला
परवान करना-उन्नति की तरफ बढ़ना
मदरसा-स्कूल
कच्ची-औपचारिक कक्षा, पहली कक्षा से पहले की पढ़ाई
जमात-श्रेणी
दागना-प्रश्न करना
मैंजे-कुशल तरीके से
जिक्र-वर्णन
बहुतेरे-बहुत अधिक
चक्कर काटना-घूमते रहना
जहाँपनाह-राजा
रंग लाना-मजेदार बात कहना बेसब्री-अधीरता
रुखाई-रुखापन
इत्ता-इतना
गढ़ी-रची
करतब-कार्य
लौंडिया-लड़की
रूमाली-रूमाल की तरह बड़ी और पतली रोटी
जहमत उठाना-कष्ट उठाना
कूच करना-मृत्यु होना
मोहलत-समय सीमा
मज़मून-विषय
शाही बावचीखाना-राजकीय भोजनालय
बेरुखी-उपेक्षा से
बाल की खाल उतारना-अधिक बारीकी में जाना
खिसियानी हँसी-शर्म से हँसना
वक्त-समय
खिल्ली उड़ाना-मज़ाक उडाना
रुक्का भेजना-संदेश भेजना
बिटर-बिटर-एकटक
अंधड़-रेतीली आँधी, तीव्र भाव
आसार-संभावना
महीन-पतली
कौंधना-प्रकट होना
गुमशुदा-भूली हुई
कद्रदान-कला के पारखी
Miyan Nasiruddin: Question/Answer
1. मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है ?
उत्तर:- मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया है क्योंकि वे साधारण नानबाई नहीं हैं। वे खानदानी नानबाई हैं। अन्य नानबाई रोटी केवल पकाते हैं, पर मियाँ नसीरुद्दीन अपने पेशे को कला मानते है। उनके पास छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने का हुनर है। वे अपने को सर्वश्रेष्ठ नानबाई बताता है।
2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन की पास क्यों गई थीं?
उत्तर:- लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास पत्रकार की हैसियत से गई थी। वे उनकी नानबाई कला के बारे में जानकारी प्राप्त कर उसे प्रकाशित करना चाहती थी।
3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?
उत्तर:- बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी लेखिका की बातों में खत्म होने लगी क्योंकि उन्हें किसी खास बादशाह का नाम मालूम ही न था। वे जो बातें बता रहे थे वे बस सुनी-सुनाई थीं। उस तथ्य में सच्चाई नहीं थी। लेखिका को डींगे मारने के बाद उसे सिद्ध नहीं कर सकते थे।
4. मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मज़मून न छेड़ने का फ़ैसला किया – इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी लेखिका की बातों में खत्म होने लगी उसके बाद वे किसी को भट्टी सुलगाने के लिए पुकारने लगे। तभी लेखिका के पूछने पर उन्होंने बताया वे उनके कारीगर हैं। तभी लेखिका के मन में आया के पूछ लें आपके बेटे-बेटियाँ हैं, पर उनके चहेरे पर बेरुखी देखी तो उन्होंने उस विषय में कुछ न पूछना ही ठीक समझा।
5. पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?
उत्तर:- मियाँ नसीरुद्दीन सत्तर वर्ष की आयु के हैं। मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने कुछ इस प्रकार खींचा है – लेखिका ने जब दुकान के अंदर झाँका तो पाया मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी का मजा़ ले रहे हैं। मौसमों की मार से पका चेहरा, आँखों में काइयाँ भोलापन और पेशानी पर मँजे हुए कारीगर के तेवर।
6. मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर:- मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी लगीं –
उनका आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व।
काम के प्रति रूचि एवं लगाव।
सटीक उत्तर देने की कला।
तरह-तरह की रोटियाँ बनाने में महारत।
शागिर्द को उचित वेतन देना।
7. तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है – यहाँ लेखक ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है? क्या आप दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए।
उत्तर:- लेखिका ने तालीम शब्द का प्रयोग दो बार किया है। क्रमशः उनका अर्थ ‘काम की ट्रेनिंग’ और ‘शिक्षा’ है। हम दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह शब्द रख सकते हैं – ‘तालीम की शिक्षा’।
8. मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर:- मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं। पहले उनके दादा साहिब थे आला नानबाई मियाँ कल्लन, दूसरे उनके वालिद मियाँ बरकतशाही नानबाई थे। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं क्योंकि पारंपरिक व्यवसाय की ओर लोगों की रूचि कम हो गई हैं, लोग अब पढ़-लिखकर तकनीकी और शैक्षिक व्यवसाय की ओर जाना पसंद करते हैं।
9. मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफ़ात है – अखबार की भूमिका को देखते हुए इस पर टिप्पणी करें।
उत्तर:- अखबारनवीस पत्रकार को कहते हैं। अखबार की समाज को जागृत करने में अहम भूमिका होती हैं। अखबार जनता को न्याय भी दिला सकता है। परंतु आज-कल की अखबार में बातों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लिखते है जिससे लोगों में उनका प्रभाव कम हो गया है।
10. बच्चे को मदरसे भेजने के उदाहरण द्वारा मियाँ नसीरुद्दीन क्या समझाना चाहते थे?
उत्तर: ‘बच्चे को मदरसे भेजा जाए और वह कच्ची में न बैठे, न पक्की में, न दूसरी में और जा बैठा सीधा तीसरी में तो उन तीन किलासों का क्या हुआ?’ यह उदाहरण देकर मियाँ यह समझाना चाहते हैं कि उन्होंने भी पहले बर्तन धोना, भट्ठी बनाना और भट्ठी को आँच देना सीखा था, तभी उन्हें रोटी पकाने का हुनर सिखाया गया था। खोमचा लगाए बिना दुकानदारी चलानी नहीं आती।
11. स्वयं को खानदानी नानबाई साबित करने के लिए मियाँ नसीरुद्दीन ने कौन-सा किस्सा सुनाया?
उत्तर: स्वयं को संसार के बहुत से नानबाइयों में श्रेष्ठ साबित करने के लिए मियाँ ने फरमाया कि हमारे बुजुर्गों से बादशाह सलामत ने यूँ कहा-मियाँ नानबाई, कोई नई चीज़ खिला सकते हो ? चीज़ ऐसी जो न आग से पके, न पानी से बने! बस हमारे बुजुर्गों ने वह खास चीज़ बनाई, बादशाह ने खाई और खूब सराही लेखक ने जब उस चीज का नाम पूछा तो वे बोले कि ‘वो हमें नहीं बताएँगे!’ मानो महज एक किस्सा ही था, पर मियाँ से जीत पाना बड़ा मुश्किल काम था।
12. बादशाह का नाम पूछे जाने पर मियाँ बिगड़ क्यों गए?
उत्तर: मियाँ नसीरुद्दीन एक ऐसे बातूनी नानबाई थे जो स्वयं को सभी नानबाइयों से श्रेष्ठ साबित करने के लिए खानदानी और बादशाह के शाही बावर्ची खाने से ताल्लुक रखनेवाले कहते थे। वे इतने काइयाँ थे कि बस जो वे कहें उसे सब मान लें, कोई प्रश्न न पूछे। ऐसे में बादशाह का नाम पूछने से पोल खुलने का अंदेशा था जो उन्हें नागवार गुजरा और वे उखड़ गए। उसके बाद उन्हें किसी भी सवाल का जवाब देना अखरने लगा।
13. पाठ के अंत में मियाँ अपना दर्द कैसे व्यक्त करते हैं?
उत्तर: मियाँ ने लंबी साँस खींचकर कहा-‘उतर गए वे ज़माने और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे! मियाँ अब क्या रखा है….निकाली तंदूर से-निगली और हज़म!’ । मियाँ नसीरुद्दीन के इस कथन में गुम होती कला की इज्जत का दर्द बोल रहा है। वर्तमान युग में कला के पारखी और सराहने वाले नहीं हैं। भागदौड़ में न कोई ठीक से पकाता है और यदि कोई अच्छी रोटी पकाकर भी दे दे तो खानेवाले यूं ही दौड़ते-भागते खा लेते हैं, कला की इज्जत कोई नहीं करता। इसी दृष्टिकोण के चलते हमारे देश में अनेक पारंपरिक कलाएँ दम तोड़ रही हैं।
14. मियाँ नसीरुद्दीन का पत्रकारों के प्रति क्या रवैया था?
उत्तर: उनका मानना था कि अखबार पढ़ने और छापनेवाले दोनों ही बेकार होते हैं। आज पत्रकारिता एक व्यवसाय है जो नई से नई खबर बढिया से बढ़िया मसाला लगाकर पेश करते हैं। कभी-कभी तो खबरों को धमाकेदार बनाने के लिए तोड़-मरोड़ डालते हैं। मियाँ की नज़र में काम करना अखबार पढ़ने से कहीं अधिक अच्छा काम है। बेमतलब के लिखना, छापना और पढ़ना उनकी नज़र में निहायत निकम्मापन है। इसलिए उन्हें अखबारवालों से परहेज है।
15. ‘मियाँ नसीरुद्दीन’ शब्द चित्र का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर: इस अध्याय में लेखिका ने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का वर्णन करते हुए यह बताया है कि मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई का अपना काम अत्यन्त ईमानदारी और मेहनत से करते थे। यह कला उन्होंने अपने पिता से सीखी थी। वे अपने इस कार्य को किसी भी कार्य से हीन नहीं मानते थे। उन्हें अपने खानदानी व्यवसाय पर गर्व है। वे छप्पन तरह की रोटियाँ बना सकते थे। वे काम करने में विश्वास रखते हैं। लेखिका का संदेश यही है कि हर काम को गंभीरता व मेहनत से करना चाहिए। कोई भी व्यवसाय छोटा या बड़ा नहीं होता।
Miyan Nasiruddin:MCQ
1. ‘मियाँ नसीरुद्दीन’ नामक पाठ की लेखिका का नाम है-
A. महादेवी वर्मा
B. कृष्णा सोबती
C. सुभद्रा कुमारी चौहान
D. अमृता प्रीतम
उत्तर= B. कृष्णा सोबती
2. ‘मियाँ नसीरुद्दीन’ नामक पाठ में किसके व्यक्तित्व का शब्द-चित्र अंकित किया गया है?
A. मियाँ नसीरुद्दीन के दादा का
B. मियाँ नसीरुद्दीन के पिता का
C. मियाँ नसीरुद्दीन का
D. मियाँ नसीरुद्दीन के भाई का
उत्तर= C. मियाँ नसीरुद्दीन का
3.मियाँ नसीरुद्दीन किस कला में प्रवीण थे?
A. वस्तुकला
B. चित्रकला
C. भाषण-कला|
D. रोटी बनाने की कला
उत्तर= D. रोटी बनाने की कला
4. मियाँ नसीरुद्दीन कैसे इंसान का प्रतिनिधित्व करते थे?
A. चालाक इंसान का
B. त्यागशील इंसान का
C. जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं
D. जो अपने खानदान का नाम डुबोते हैं
उत्तर= C. जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं
5. जब लेखिका गढ़ैया मुहल्ले से गुजर रही थी तो उसे एक दुकान से कैसी आवाज़ सुनाई दी?”
A. पटापट की
B. नृत्य करने की
C. गीत की
D. रोने की
उत्तर= A. पटापट की
6. पटापट आटे के ढेर को सानने की आवाज़ को सुनकर लेखिका ने क्या सोचा था?
A. पराँठे बन रहे हैं
B. सेवइयों की तैयारी हो रही है
C. दाल को तड़का लग रहा है
D. हलवा बनाया जा रहा है
उत्तर= B. सेवइयों की तैयारी हो रही है
7. मियाँ नसीरुद्दीन कितने प्रकार की रोटी बनाने के लिए मशहूर हैं?
A. बत्तीस
B. चालीस
C. छयालीस
D. छप्पन
उत्तर= D. छप्पन
8. लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से सबसे पहले कौन-सा प्रश्न किया था?
A. आप से कुछ सवाल पूछने थे?
B. आप से रोटियाँ बनवानी थीं?
C. आप क्या कर रहे हैं?
D. आपका नाम क्या है?
उत्तर= A. आप से कुछ सवाल पूछने थे?
9. मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका को क्या समझा था?
A. अभिनेत्री
B. नेत्री
C. अखबारनवीस
D. कवयित्री
उत्तर= C. अखबारनवीस
10. मियाँ नसीरुद्दीन ने अखबार के विषय में क्या कहा था?
A. खोजियों की खुराफात
B. धार्मिक लोगों का प्रयास
C. आय का साधन
D. प्रसिद्धि का आसान तरीका
उत्तर= A. खोजियों की खुराफात
11. अखबार बनाने वाले और अखबार पढ़ने वाले दोनों को मियाँ नसीरुद्दीन ने क्या कहा था?
A. कामकाजी
B. निठल्ला
C. ईमानदार
D. बेईमान
उत्तर= B. निठल्ला
12. लेखिका के अनुसार नसीरुद्दीन का खानदानी पेशा क्या था?
A. नगीनासाज
B. आईनासाज
C. रंगरेज
D. नानबाई
उत्तर= D. नानबाई
13. मियाँ नसीरुद्दीन अपना उस्ताद किसे मानते हैं?
A. अपने वालिद को
B. अपने दादा को
C. अपने मामा को
D. अपने नाना को
उत्तर= A. अपने वालिद को
14. मियाँ नसीरुद्दीन के वालिद का नाम था-
A. मियाँ शाहरुख
B. मियाँ अखतर
C. बरकत शाही
D. मियाँ कल्लन
उत्तर= C. बरकत शाही
15. मियाँ नसीरुद्दीन के दादा का क्या नाम था?
A. मियाँ कल्लन
B. मियाँ बरकत शाही
C. मियाँ दादूदीन
D. मियाँ सलमान अली
उत्तर= A. मियाँ कल्लन
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