Atithi Kab jaoge-Class 9th course-B

तुम कब जाओगे अतिथि पाठ सार
लेखक अपने घर में आए अतिथि को अपने मन में संबोधित करते हुए कहता है कि आज अतिथि को लेखक के घर में आए हुए चार दिन हो गए हैं और लेखक के मन में यह प्रश्न बार-बार आ रहा है कि ‘तुम कब जाओगे, अतिथि? लेखक अपने मन में अतिथि को कहता है कि वह जहाँ बैठे बिना संकोच के सिगरेट का धुआँ उड़ा रहा है, उसके ठीक सामने एक कैलेंडर है।

लेखक कहता है कि पिछले दो दिनों से वह अतिथि को कलैंडर दिखाकर तारीखें बदल रहा है। ऐसा लेखक ने इसलिए कहा है क्योंकि लेखक अतिथि की सेवा करके थक गया है। पर चौथे दिन भी अतिथि के जाने की कोई संभावना नहीं लग रही थी। लेखक अपने मन में अतिथि को कहता है कि अब तुम लौट जाओ, अतिथि! तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च समय अर्थात हाईटाइम बिल्कुल सही वक्त है। क्या उसे उसकी मातृभूमि नहीं पुकारती?

अर्थात क्या उसे उसके घर की याद नहीं आती। लेखक अपने मन में ही अतिथि से कहता है कि उस दिन जब वह आया था तो लेखक का हृदय ना जाने किसी अनजान डर के (किसी अन्जान डर से )धड़क उठा था। अंदर-ही-अंदर कहीं लेखक का बटुआ काँप गया।


उसके बावजूद एक प्यार से भीगी हुई मुस्कराहट के साथ लेखक ने अतिथि को गले लगाया था और मेरी लेखक की पत्नी ने अतिथि को सादर नमस्ते की थी।

अतिथि को याद होगा कि दो सब्ज़ियों और रायते के अलावा उन्होंने मीठा भी बनाया था। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में लेखक को एक उम्मीद थी। यह उम्मीद थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार अतिथि सत्कार की छाप अपने हृदय में ले कर अतिथि चला जायेगा। पर ऐसा नहीं हुआ! दूसरे दिन भी अतिथि मुस्कान बनाए लेखक के घर में ही बने रहे।

लेखक अपने मन में ही अतिथि से कहता है कि उन्होंने अपने दुःख को पी लिया और प्रसन्न बने रहे। लेखक ने फिर दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि को अतिथि को सिनेमा दिखाया।

लेखक के सत्कार का यह आखिरी छोर था, जिससे आगे लेखक कभी किसी के लिए नहीं बढे़। इसके तुरंत बाद लेखक को अनुमान था कि विदाई का वह प्रेम से ओत-प्रोत भीगा हुआ क्षण आ जाना चाहिए था, जब अतिथि विदा होता और लेखक उसे स्टेशन तक छोड़ने जाता।

पर अतिथि ने ऐसा नहीं किया। वह लेखक के घर पर ही रहा।लेखक अपने मन में ही अतिथि से कहता है कि तीसरे दिन की सुबह अतिथि ने लेखक से कहा कि वह धोबी को कपड़े देना चाहता है।

लेखक अतिथि से कहता है कि कपड़ों को किसी लॉण्ड्री में दे देते हैं इससे वे जल्दी धुल जाएंगे, लेखक के मन में एक विश्वास पल रहा था कि शायद अतिथि को अब जल्दी जाना है। लॉण्ड्री पर दिए कपडे़ धुलकर आ गए और अतिथि अब भी लेखक के घर पर ही था। लेखक अपने मन ही अतिथि से कहता है कि उसके भारी भरकम शरीर से सलवटें पड़ी हुई चादर बदली जा चुकी है परन्तु अभी भी अतिथि यहीं है।

अतिथि को देखकर फूट पड़नेवाली मुस्कराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब कही गायब हो गई है। ठहाकों के रंगीन गुब्बारे, जो कल तक इस कमरे के आकाश में उड़ते थे, अब दिखाई नहीं पड़ते।

परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार-नियोजन, मँहगाई, साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार-मारकर लेखक और अतिथि ने पुरानी प्रेमिकाओं का भी जिक्र कर लिया और अब एक चुप्पी है।

ह्रदय की सरलता अब धीरे-धीरे बोरियत में बदल गई है। पर अतिथि जा नहीं रहा। लेखक के मन में बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है-तुम कब जाओगे, अतिथि? कल लेखक की पत्नी ने धीरे से लेखक से पूछा था,”कब तक टिकेंगे ये?” लेखक ने कंधे उचका कर कहा कि वह क्या कह सकता है? लेखक की पत्नी ने अब गुस्से से कहा कि वह अब खिंचड़ी बनाएगी क्योंकि वह खाने में हल्की रहेगी।

लेखक ने भी हाँ कह दिया।लेखक अपने मन ही कहता है कि अतिथि के सत्कार करने की उसकी क्षमता अब समाप्त हो रही थी। डिनर से चले थे, खिचड़ी पर आ गए थे। अब भी अगर अतिथि नहीं जाता तो हमें लेखक और उसकी पत्नी को उपवास तक जाना होगा। लेखक चाहता है कि अतिथि अब चला जाए।

लेखक अपने मन ही कहता है कि लेखक जानता है कि अतिथि को लेखक के घर में अच्छा लग रहा है। दूसरों के यहाँ अच्छा ही लगता है। अगर बस चलता तो सभी लोग दूसरों के यहाँ रहते, पर ऐसा नहीं हो सकता। लेखक अपने मन ही अतिथि से कहता है कि अपने खर्राटों से एक और रात गुँजित करने के बाद कल जो किरण अतिथि के बिस्तर पर आएगी वह अतिथि के लेखक के घर में आगमन के बाद पाँचवें सूर्य की परिचित किरण होगी।

लेखक अतिथि से उम्मीद करता है कि सूर्य की किरणें जब चूमेगी और अतिथि घर लौटने का सम्मानपूर्ण निर्णय ले लेगा । लेखक अपने मन ही अतिथि से कहता है कि लेखक जानता है कि अतिथि देवता होता है, पर आखिर लेखक भी मनुष्य ही है।

लेखक कोई अतिथि की तरह देवता नहीं है। लेखक कहता है कि एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते। देवता दर्शन देकर लौट जाता है। लेखक अतिथि को लौट जाने के लिए कहता है और कहता है कि इसी में अतिथि का देवत्व सुरक्षित रहेगा। लेखक अंत में दुखी हो कर अतिथि से कहता है उफ, तुम कब जाओगे, अतिथि?

प्रश्न 1.
अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है?
उत्तर:
अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रहा है।

प्रश्न 2.
कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं?
उत्तर:
कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं।

प्रश्न 3.
पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?
उत्तर:
पति ने अतिथि का स्वागत स्नेह भीगी मुस्कान से गले लगाते हुए किया, जबकि उसकी पत्नी ने सादर नमस्ते किया। पति पत्नी ने अतिथि के खान-पान का पूरा ध्यान रखा।

प्रश्न 4.
दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गई?
उत्तर:
दोपहर के भोजन को औपचारिक डिनर जैसा भारी भरकम बनाया गया। दो सब्जियाँ, रायता तथा एक मीठा व्यंजन तैयार किया गया।

प्रश्न 5.
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा?
उत्तर-
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने लेखक से कहा कि वह धोबी को कपड़े देना चाहता है।

प्रश्न 6.
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ?
उत्तर:
सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक ने अतिथि को डिनर की बजाय खिचड़ी खिलाई।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1.
लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
उत्तर:
लेखक अतिथि को भावभीनी विदाई देना चाहता था। वह अतिथि को विदा करने के लिए स्टेशन तक जाना चाहता था, परंतु ऐसा न हो सका क्योंकि अतिथि जाना ही नहीं चाहता था।

प्रश्न 2.
पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए-

अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ कॉप गया। [CBSE 2012]
अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़े।
मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर:

जब लेखक ने अपने घर आए अनचाहे अतिथि को देखा तो उसको बटुआ काँप उठा। आशय यह है कि उसे अपनी आर्थिक स्थिति डगमगाने का भय सताने लगा। उसे लगा कि इस मेहमान पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ेगा।
अतिथि हमेशा देवता नहीं रहता। यदि वह थोड़े समय के लिए रहे तो देवता प्रतीत होता है। बाद में सामान्य मनुष्य प्रतीत होने लगता है। अगर वह लंबे समय तक टिक जाए तो राक्षस जैसा बुरा लगने लगता है।
घर तभी तक ‘स्वीट होम’ यानि सुमधुर और आरामदायक जान पड़ता है जब तक कि उसमें घर के सदस्य ही रहें। कोई अनचाहा अतिथि उन पर बोझ बनकर न आ टिके। अतिथि के कारण घर की सरसता समाप्त हो जाती है।
लेखक मन-ही-मन अंपने अनचाहे मेहमान से कहता है-अगर तुम पाँचवें दिन भी मेरे घर से न गए तो फिर मेरी सहनशीलता समाप्त हो जाएगी। मैं अगले दिन तक तुम्हें सह नहीं पाऊँगा। तुम्हें जाने के लिए कह दूंगा।
देवता तभी भाता है, जबकि वह थोड़ी देर के लिए दर्शन दे। यदि वह आकर जम जाए तो काटने दौड़ता है। मनुष्य लंबे समय तक किसी को सम्मान नहीं दे सकता। अतिथि को तो बिल्कुल नहीं। यह मानव स्वभाव के विरुद्ध है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1.
कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा? लेखक पर उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई? . [CBSE 2012]
उत्तर:
लेखक सोच रहा था कि अतिथि दूसरे दिन चला जाएगा पर ऐसा न हुआ। अगले दिन उसने सोचा, शायद आज अतिथि जाएगा पर जब तीसरे दिन अतिथि ने लेखक से धोबी को कपड़े देने के लिए कहा तो इसका तात्पर्य यह था कि अतिथि आज भी जाने वाला नहीं। यह लेखक के लिए अप्रत्याशित आघात था क्योंकि लेखक ने ऐसा सोचा भी न था। इससे लेखक और भी चिंताग्रस्त हो गया कि पता नहीं उसे अतिथि से कब छुटकारा मिलेगा।

प्रश्न 2.
‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुजरना’ इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं? विस्तार से लिखिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुजरना’ का आशय है-संबंधों का बदलना। पहले जो संबंध आत्मीयतापूर्ण थे, सौहार्दपूर्ण थे, उनका अब घृणा, तिरस्कार और बोरियत में बदलना। जब अतिथि आया था तो लेखक ने उसे प्रसन्नता के साथ निभाया। उसके लिए शानदार डिनर बनवाया। अगले दिन भी उसे अच्छा लंच कराया तथा सिनेमा दिखाया। परंतु इसके बाद भी जब वह टिका रहा तो लेखक के मन में उसके प्रति तिरस्कार जागने लगा। इस प्रकार संबंध परिवर्तन के दौर से गुजरने लगे।

प्रश्न 3.
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए? [CBSE 2012]
उत्तर:
जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो उसके व्यवहार में कई बदलाव आए, जैसे-लेखक अब गर्मजोशी से अतिथि से बातें नहीं करता था। उसने अतिथि के भोजन को डिनर से खिचड़ी पर ला दिया था। वह हर समय अतिथि के जाने की प्रतीक्षा करने लगा। उसकी सहनशीलता का अंत होने वाला था। अतिथि को गले लगाकर स्वागत करने वाला लेखक अब अतिथि को ‘गेट आउट’ कहने के लिए तैयार हो गया था।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए-

चाँद
जिक्र
आघात
ऊष्मा
अंतरंग
उत्तर:

चाँद-चंद्रमा, निशाकर, मयंक
जिक्र-चर्चा, संदर्भ
आघात-चोट, व्याघात
ऊष्मा-गर्मी, ऊर्जा, गरमाहट
अंतरंग-भीतरी, अंदरूनी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए-

हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य)
…………………………………………………………………………….
किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य)
…………………………………………………………………………….
सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल)
…………………………………………………………………………….
इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
…………………………………………………………………………….
कब तक टिकेंगे ये? (नकारात्मक)
…………………………………………………………………………….
उत्तर:

हम तुम्हें स्टेशन तक नहीं छोड़ने जाएँगे।
किसी लॉण्ड्री पर दे देने से क्या जल्दी धुल जाएँगे?
सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी।
इनके कपड़े कहाँ देने हैं?
ये नहीं टिकेंगे।
प्रश्न 3.
पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य संरचना को समझिए
(क) तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी जमीन पर अंकित कर चुके।
(ख) तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके।
(ग) आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
(घ) शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए।
(ङ) तुम्हारे भारी भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।
उत्तर:
अपेक्षित नहीं।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए
(क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
(ख) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
(ग) तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
(घ) कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
(ङ) भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।
उत्तर:
अपेक्षित नहीं।

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