मुहावरे व लोकोक्तियाँ-परिभाषा व उदाहरण
अंग अंग मुसकाना
अर्थ – बहुत प्रसन्न होना, बहुत खुश होना
उदाहरण वाक्य – परीक्षा में अपने अच्छे अंक लाने पर अरुण का अंग अंग मुस्काने लगा।
अर्थ – थक जाना
उदाहरण वाक्य – ज्यादा व्यायाम करने के कारण आज मेरा अंग-अंग ढीला हो गया है।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना
अर्थ – दूसरों से अलग रहना
उदाहरण वाक्य – चैतन्य दूसरे लड़कों से आजकल बात नहीं करता है और अपनी खिचड़ी अलग पकाता है।
अंगूठा दिखाना
अर्थ – मना करना, इनकार करना
उदाहरण वाक्य – अनीता पर मुझे पूर्ण विश्वास था परंतु अंत समय पर उसने भी मुझे अंगूठा दिखा दिया।
अपना उल्लू सीधा करना
अर्थ – अपना मतलब निकालना
उदाहरण वाक्य – कभी-कभी अपना उल्लू सीधा करने के लिए दुश्मन को भी दोस्त बनाना पड़ता है।
अर्थ – स्वयं अपनी हानि करना
उदाहरण वाक्य – इतने अच्छे नौकरी को छोड़ कर तुमने अपने पांव आप कुल्हाड़ी मार दी है।
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना
अर्थ – अपनी प्रशंसा या तारीफ स्वयं करना
उदाहरण वाक्य – जो व्यक्ति अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनते हैं उन से बड़ा मूर्ख दुनिया में कोई नहीं होता है।
आटे दाल का भाव मालूम होना
अर्थ – कठिनाई का अनुभव होना
उदाहरण वाक्य – एक बार जीवन में ईमानदारी से काम करना शुरू करके देखो तब तुम्हें आटे दाल का भाव मालूम होगा।
आकाश के तारे तोड़ना
अर्थ – असंभव कार्य को पूरा करना
उदाहरण वाक्य – मेहनत करने वाले आकाश से तारे तोड़ने की ताकत रखते हैं।
आसमान पर चढ़ाना
अर्थ – जरूरत से ज्यादा प्रशंसा या तारीफ करना
उदाहरण वाक्य – तुमने अपने बेटे को आसमान पर चढ़ा रखा है इसलिए वह तुम लोगों की बात नहीं मानता है।
आसमान सिर पर उठाना
अर्थ – बहुत हल्ला या शोर मचाना
उदाहरण वाक्य – बच्चे को तंग करने के कारण बच्चे ने आसमान सिर पर उठा लिया।
इधर-उधर की हांकना
अर्थ – इधर-उधर की बातें करना, गप्पे मारना
उदाहरण वाक्य – इधर-उधर की हांकना बंद करो और अपने काम पर ध्यान दो।
ईट से ईट बजाना
अर्थ – सर्वनाश कर देना
उदाहरण वाक्य – भगवान श्रीराम ने लंका की ईट से ईट बजा दी।
ईद का चांद होना
अर्थ – बहुत दिन बाद दिखना या नजर आना
उदाहरण वाक्य – अरे राहुल तुम कहां ईद के चांद हो गए थे बहुत दिन से तुमने अपना दुकान क्यों नहीं खोला है?
उल्टी गंगा बहाना
अर्थ – विरुद्ध या विपरीत काम करना, उल्टा काम करना
उदाहरण वाक्य – आज अपने दुश्मन के घर जाकर तुमने उलटी गंगा बहा दिया।
एड़ी चोटी का जोर लगाना
अर्थ – बहुत कोशिश या प्रयत्न करना
उदाहरण वाक्य – परीक्षा में अव्वल अंक लाने के लिए रोहित को एड़ी चोटी काट जोर लगाना पड़ा।
कफन सिर पर बांधना
अर्थ – मरने के लिए तैयार होना, जान निछावर करने को तैयार रहना।
उदाहरण वाक्य – बॉर्डर पर हमारे वीर सैनिक हमेशा कफन सिर पर बांधे रहते हैं।
काम तमाम करना
अर्थ – मार डालना
उदाहरण वाक्य – जंगल में अकेले एक शेर ने तीन हिरण का काम तमाम कर डाला।
कान काटना
अर्थ – बहुत चालाक होना
उदाहरण वाक्य – दोस्त अनिल को बच्चा मत समझना वह बड़ों बड़ों के कान काटता है।
कान पर जूं रेंगना
अर्थ – ध्यान ना देना, बात ना सुनना
उदाहरण वाक्य – मैं तुम्हें इतना समझाता हूं परंतु तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
कटे पर नमक छिड़कना
अर्थ – दुख को और बढ़ाना
उदाहरण वाक्य – कुंभकरण की मृत्यु की खबर असुरराज रावण के लिए कटे पर नमक छिड़कने जैसा था।
खिल्ली उड़ाना
अर्थ – मजाक या हंसी उड़ाना
उदाहरण वाक्य – इस गांव का जमीदार हमेशा गांव के गरीब लोगों का खिल्ली उड़ाता है।
गिरगिट की तरह रंग बदलना
अर्थ – एक बात पर स्थिर न रहना, अपनी बात बदलते रहना, अपनी बात पर अमल ना करना।
उदाहरण वाक्य – रवि गिरगिट की तरह रंग बदलता है। कल तक वह कोई बुरे काम नहीं करता था परंतु आज वह सभी काले काम करता हैं।
गुड गोबर कर देना
अर्थ – बात को बिगाड़ना, बात का बतंगड़ बनाना
उदाहरण वाक्य – उसे अच्छी नौकरी मिल चुकी थी परंतु ऑफिस में मैनेजर के साथ बदतमीजी करके उसने सब गुड गोबर कर दिया।
गुलछर्रे उड़ाना
अर्थ – मौज उड़ाना, मजे करना
उदाहरण वाक्य – करोड़पति होने के बाद वह दिन-रात गुलछर्रे उड़ा रहा है।
घाट घाट का पानी पीना
अर्थ – चालाक या बुद्धिमान होना
उदाहरण वाक्य – मुझे पाठ मत पढ़ाओ मैंने घाट घाट का पानी पिया है।
घाव पर नमक छिड़कना
अर्थ – दुखी को और दुख देना
उदाहरण वाक्य – इस महँगाई के दौर पर सरकार द्वारा ज्यादा कर लगाना लोगों के लिए घाव पर नमक छिड़कना जैसा हुआ।
घोड़े बेचकर सोना
अर्थ – बिना किसी चिंता के सोना, निश्चिंत होकर निद्रा में डूब जाना
उदाहरण वाक्य – पहरेदार घोड़े बेच कर सो रहे थे तब डाकुओं नेराजमहल का सारा सोना चुरा लिया।
चादर के बाहर पैर पसारना
अर्थ – आय से अधिक व्यय करना, कमाई से ज्यादा खर्च करना
उदाहरण वाक्य – यदि तुम चादर से बाहर पैर पसरोगे तो दरिद्रता बहुत जल्दी तुम्हें गले लगाएगी।
चार दिन की चांदनी
अर्थ – क्षण भर का सुख, कुछ दिनों का सुख
उदाहरण वाक्य – बुरे काम करने से मिलने वाला धन चार दिन की चांदनी प्रदान करता है।
चुल्लू भर पानी में डूबना
अर्थ – शर्म के मारे मुंह छुपाना
उदाहरण वाक्य – ऐसे कुकर्म करने के बाद तुम्हें चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए।
चिकनी-चुपड़ी बातें करना
अर्थ – धोखा देने के लिए मीठी-मीठी बातें करना
उदाहरण वाक्य – मैं तुम्हें अच्छे से पहचानता हूं मैं तुम्हारी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आने वाला।
छाती पर सांप लोटना
अर्थ – द्वेष से जलना
उदाहरण वाक्य – मेहनती लोगों के उन्नति को देखकर आलसी और दुष्ट लोगों के छाती पर सांप लोटने लगता है।
छठी का दूध याद आना
अर्थ – घोर संकट में पढ़ना
उदाहरण वाक्य – चोर का झूठ पकड़े जाने पर पुलिस ने उसे छठी का दूध याद दिला दिया।
छप्पर फाड़ कर देना
अर्थ – बिना परिश्रम के अत्यधिक लाभ मिलना
उदाहरण वाक्य – शेयर मार्केट में अत्यधिक लाभ होने के कारण व्यापारी को भगवान ने छप्पर फाड़ कर लाभ दिया।
छाती पर मूंग दलना
अर्थ – किसी का अत्यधिक दिल दुखाना
उदाहरण वाक्य – किसी से अत्यधिक प्रेम करके उसके छाती पर मूंग नहीं दलना चाहिए।
जान पर खेलना
अर्थ – अपना जीवन निछावर करके कार्य करना
उदाहरण वाक्य – अंतरिक्ष पर जाने वाले वैज्ञानिक जान पर खेलकर सही जानकारी विश्व के लिए उपलब्ध कराते हैं।
अर्थ – संकट या मुश्किल में पड़ना
उदाहरण वाक्य – बुरे काम करने वाले व्यक्तियों के कभी ना कभी जान के लाले पड़ते ही हैं।
जल भुनकर कोयला होना
अर्थ – ईशा से पागल होना
उदाहरण वाक्य – परीक्षा में इशिता के अच्छे अंक आने पर किरण जल भुन कर कोयला हो गयी।
डूबती नाव पर लगाना
अर्थ – संकट से बचाना
उदाहरण वाक्य – अब तो ईश्वर ही मेरी डूबती नाव को पार लगा सकते हैं।
डींग मारना
अर्थ – गप्पे मारना
उदाहरण वाक्य – तुम डींग मारना बंद करो हमें पता चल चुका है कि तुम कितने दूर कितने पानी के धुले हो।
तिल का ताड़ करना
अर्थ – बात को बढ़ाना
उदाहरण वाक्य – अपने मित्रों की छोटी-छोटी बातों का तिल का ताड़ करना सही नहीं होता है।
दांत खट्टे करना
अर्थ – नीचा दिखाना
उदाहरण वाक्य – राम की सेना ने युद्ध भूमि में रावण की सेना के दांत खट्टे कर दिए।
दंग रह जाना
अर्थ – विस्मित हो जाना
उदाहरण वाक्य – सड़क पर दुर्घटना देखकर मैं दंग रह गया।
दांतो तले उंगली दबाना
अर्थ – आश्चर्यचकित हो जाना
उदाहरण वाक्य – ताजमहल की सुंदरता देखकर बड़े-बड़े देशों से आए हुए लोगों के भी दांतों तले उंगली दब जाते हैं।
दिन दुगनी रात चौगुनी
अर्थ – बहुत उन्नति करना
उदाहरण वाक्य – विजय मैं अपनी कंपनी मैं लगन के साथ काम किया इसलिए आज उसका व्यापार दिन दुगनी रात चौगुनी आगे बढ़ रहा है।
दाल में काला होना
अर्थ – कुछ गड़बड़ होना
उदाहरण वाक्य – उन दो लोगों की बातचीत और चाल-ढाल से लगता है कि दाल में कुछ काला है।
नाकों चने चबाना
अर्थ – परेशान करना, खूब सताना
उदाहरण वाक्य – भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक करके पाकिस्तानी सेना को नाकों चने चबवा दिया।
नौ दो ग्यारह होना
अर्थ – जल्दी से भाग जाना
उदाहरण वाक्य – पुलिस के आते ही सभी गुंडे नौ दो ग्यारह हो गए।
नानी याद आना
अर्थ – भारी संकट में पड़ना, बड़ी मुश्किल में पड़ना
उदाहरण वाक्य – पुलिस ने चोरों का ऐसा पिटाई किया कि उनको नानी याद आ गई।
पांचों उंगलियां घी में होना
अर्थ – अत्यधिक लाभ होना
उदाहरण वाक्य – कंपनी के बॉस तुम पर बहुत प्रसन्न नहीं है और उन्होंने तुम्हारा वेतन भी बढ़ा दिया है, अब तो तुम्हारे पांचों उंगली घी में हैं।
पांव जमीन पर ना टिकना
अर्थ – अभिमान करना
उदाहरण वाक्य – ज्यादातर अमीर आदमियों के पांव जमीन पर नहीं टिकते।
पेट में चूहे कूदना
अर्थ – भूख लगना
उदाहरण वाक्य – मुझे जल्दी से कुछ खाने को दीजिए मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं।
फूंक फूंक कर कदम रखना
अर्थ – सोच समझ कर काम करना
उदाहरण वाक्य – नया नया व्यापार शुरू करने पर फूंक फूंक कर कदम रखना चाहिए
बाल की खाल उतारना
अर्थ – छोटी सी बात पर बहुत सोचना या विचार करना
उदाहरण वाक्य – बेकार की बातों में बाल की खाल उतारना समय की बर्बादी है।
बाल भी बांका ना होना
अर्थ – जरा भी हानि ना पहुंचना
उदाहरण वाक्य – सड़क पर एक बहुत बड़ी दुर्घटना हुई परंतु गाड़ी में बैठे हुए व्यक्ति का बाल भी बांका नहीं हुआ।
बात का बतंगड़ बनाना
अर्थ – साधारण बात का बढ़ जाना
उदाहरण वाक्य – उसका छोटा सा घरेलू झगड़ा बात का बतंगड़ बन गया और कोर्ट जाने की नौबत आ गई।
बाग बाग होना
अर्थ – बहुत प्रसन्न होन
उदाहरण वाक्य – परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर वह बाग बाग हो गया।
मुंह में पानी भर आना
अर्थ – ललचाना
उदाहरण वाक्य – दूसरे के पैसे देखकर चोर व्यक्ति के मुंह में पानी भर आया।
राई का पहाड़ बनाना
अर्थ – साधारण सी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताना
उदाहरण वाक्य – तुम बेकार ही राई का पहाड़ बना कर झगड़े को और बढ़ा रहे हो।
लोहे के चने चबाना
अर्थ – कठिन काम करना
उदाहरण वाक्य – जिस व्यक्ति ने जीवन में लोहे के चने चबाना हो वह कभी असफल नहीं होते।
लहू पसीना एक करना
अर्थ – बहुत कष्ट झेलना
उदाहरण वाक्य – मैंने लहू पसीना एक करके अपने इस व्यापार को इन ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।
सिर पर भूत सवार होना
अर्थ – कोई धुन लग जाना, एक ही चीज पर मगन रहना
उदाहरण वाक्य – उसके बेटे के सिर पर मोबाइल फोन का भूत सवार है जब देखो वहां मोबाइल फोन पकड़ कर बैठा रहता है।
सोने की चिड़िया
अर्थ – लाभदायक वस्तु
उदाहरण वाक्य – अंग्रेजों के लिए हमारा देश भारत सोने की चिड़िया थी।
हथियार डाल देना
अर्थ – हार मान लेना
उद्धरण वाक्य – युद्ध में राजा की मृत्यु के बाद विवश होकर सेना ने हथियार डाल दिए।
हाथों के तोते उड़ना
अर्थ – होश उड़ जाना
उदाहरण वाक्य – अपने घनिष्ठ दोस्त की अकाल मृत्यु समाचार सुनकर उसके हाथों के तोते उड़ गए।
हाथ साफ करना
अर्थ – बेईमानी करके सब लूट लेना या खा जाना
उदाहरण वाक्य – अनिल शर्मा के बड़े भाई ने अवसर पाते ही उसकी सारी पूंजी पर हाथ साफ कर लिया।
हाथ धोकर पीछे पड़ना
अर्थ – बुरी तरीके से पीछे पड़ना
उदाहरण वाक्य – कुछ लुटेरे एक व्यक्ति के हाथ धोकर पीछे पड़ गए।
लोकोक्तियाँ
किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को ‘लोकोक्ति’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।
उदाहरण- ‘उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ । यहाँ ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है ‘एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता’ ।
लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब ‘लोकोक्ति’ हो जाती है।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
दोनों में अंतर इस प्रकार है-
(1) मुहावरा वाक्यांश होता है, जबकि लोकोक्ति एक पूरा वाक्य, दूसरे शब्दों में, मुहावरों में उद्देश्य और विधेय नहीं होता, जबकि लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय होता है।
(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।
(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं जबकि लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।
यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ व उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये जा रहे हैं-
अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)
प्रयोग- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही; इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता= (अकेला आदमी लाचार होता है।)
प्रयोग- माना कि तुम बलवान ही नहीं, बहादुर भी हो, पर अकेले डकैतों का सामना नहीं कर सकते। तुमने सुना ही होगा कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।
अधजल गगरी छलकत जाय= डींग हाँकना।
प्रयोग- इसके दो-चार लेख क्या छप गये कि वह अपने को साहित्य-सिरमौर समझने लगा है। ठीक ही कहा गया है, ‘अधजल गगरी छलकत जाय।’
आँख का अन्धा नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना।)
प्रयोग- एक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और बोला कि वाह जी शेरमार खाँ, आपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का अन्धा नाम नयनमुख।
आँख के अन्धे गाँठ के पूरे= (मूर्ख धनवान)
प्रयोग- वकीलों की आमदनी के क्या कहने। उन्हें आँख के अन्धे गाँठ के पूरे रोज ही मिल जाते हैं।
आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ= नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाय, वही बहुत है।
प्रयोग- किसी के घर चोरी हुई। चोर नकद और जेवर कुल उठा ले गये। बरतनों पर जब हाथ साफ करने लगे, तब उनकी झनझनाहट सुनकर घर के लोग जाग उठे। देखा तो कीमती माल सब गायब। घर के मालिकों ने बरतनों पर आँखें डालकर अफसोस करते हुए कहा कि खैर हुई, जो ये बरतन बच गये। आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ। यदि ये भी चले गये होते, तो कल पत्तों पर ही खाना पड़ता।
अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत= (समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है)
प्रयोग- सारे साल तुम मस्ती मारते रहे, अध्यापकों और अभिभावक की एक न सुनी। अब बैठकर रो रहे हो। ठीक ही कहा गया है- अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
आगे नाथ न पीछे पगहा= (किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना)
प्रयोग- अरे, तुम चक्कर न मारोगे तो और कौन मारेगा? आगे नाथ न पीछे पगहा। बस, मौज किये जाओ।
आम के आम गुठलियों के दाम= (अधिक लाभ)
प्रयोग- सब प्रकार की पुस्तकें ‘साहित्य भवन’ से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ इसी को कहते हैं।
ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर= (काम करने पर उतारू होना)
प्रयोग- जब मैनें देशसेवा का व्रत ले लिया, तब जेल जाने से क्यों डरें? जब ओखली में सिर दिया, तब मूसलों से क्या डर।
आ बैल मुझे मार= (स्वयं मुसीबत मोल लेना)
प्रयोग- लोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार।
आँखों के अन्धे नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना)
प्रयोग- उसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते है- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।
अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को दे= (अधिकार का नाजायज लाभ अपनों को देना)
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है= अपने स्थान पर निर्बल भी स्वयं को सबल समझता है।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें= (मनचाही बात हो जाना)
प्रयोग-अभी मैं विद्यालय से अवकाश लेने की सोच ही रही थी कि मेघा ने मुझे बताया कि कल विद्यालय में अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या चाहे दो आँखें।
अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना)
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना= (निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है।)
अपनी करनी पार उतरनी= (किये का फल भोगना)
अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे= (अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना)
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग=(परस्पर संगठन या मेल न रखना)
आप डूबे जग डूबा= (जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है।)
आग लगाकर जमालो दूर खड़ी= (झगड़ा लगाकर अलग हो जाना)
आगे कुआँ, पीछे पगहा= (अपना कोई न होना, घर का अकेला होना)
आँख का अंधा नाम नयनमुख= (गुण के विरुद्ध नाम)
आधा तीतर आधा बटेर= (बेमेल स्थिति)
आप भला तो जग भला= (स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा)
आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास= (करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और)
ओछे की प्रीत बालू की भीत=(नीचों का प्रेम क्षणिक)
ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती= (अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता)
ऊँची दूकान फीके पकवान=(केवल ब्राह्य प्रदर्शन)
प्रयोग- जग्गू तेली शुद्ध सरसों तेल का विज्ञापन करता है, लेकिन उसकी दूकान पर बिकता है रेपसीड-मिला सरसों तेल। ठीक है ऊँची दूकान फीके पकवान।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे= (अपराधी निरपराध को डाँटेे)
प्रयोग-एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी= (उद्योगी को ही धन मिलता है।)
ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी= (बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा)
ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा= (सभी एक समान)
ऊँट किस करवट बैठता है= (किसकी जीत होती है।)
ऊँट के मुँह में जीरा= (जरूरत के अनुसार चीज न होना)
प्रयोग-विद्यालय के ट्रिप में जाने के लिए 2,500 रुपये चाहिए थे, परंतु पिता जी ने 1,000 रुपये ही दिए। यह तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।
ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी= (जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना)
ऊधो का लेना न माधो का देना=(लटपट से अलग रहना)
ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया= (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)
प्रयोग- कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
इतनी-सी जान, गज भर की जबान= (छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना)
ईंट का जवाब पत्थर= (दुष्ट के साथ दुष्टता करना)
इस हाथ दे, उस हाथ ले= (कर्मो का फल शीघ्र पाना)
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया= (कहीं सुख, कहीं दुःख)
एक पन्थ दो काज= (एक काम से दूसरा काम हो जाना)
प्रयोग- दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।
एक और एक ग्यारह= एकता में शक्ति होती है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती= झगड़ा एक ओर से नहीं होता।
प्रयोग-आपसी लड़ाई में राम और श्याम-दोनों स्वयं को निर्दोष बता रहे थे, परंतु यह सही नहीं हो सकता, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती।
एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा= (बुरे का और बुरे से संग होना)
एक अनार सौ बीमार= (चीज थोड़ी, माँगने वाले अधिक )
प्रयोग-पुस्तकालय में ‘भारत एक खोज पुस्तक की एक ही प्रति थी और प्रतियोगिता की वजह से उसे लेने वाले दस विद्यार्थी थे। यह तो वही बात हुई- एक अनार सौ बीमार।
एक तो चोरी दूसरे सीनाज़ोरी= (दोष करके न मानना)
एक म्यान में दो तलवार= (एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले)
कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली= (उच्च और साधारण की तुलना कैसी)
प्रयोग- तुम सेठ करोड़ीमल के बेटे हो। मैं एक मजदूर का बेटा। तुम्हारा हमारा और मेरा मेल कैसा ? कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।
कंगाली में आटा गीला= परेशानी पर परेशानी आना।
प्रयोग- पिता जी की बीमारी की वजह से घर में वैसे ही आर्थिक तंगी चल रही है, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ गया। इसे कहते हैं- कंगाली में आटा गीला।
कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी= (प्रकृतीविरुद्ध काम)
कहे खेत की, सुने खलिहान की= (हुक्म कुछ और करना कुछ और)
कहीं का ईट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा= (इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना)
काला अक्षर भैंस बराबर=(निरा अनपढ़)
काबुल में क्या गदहे नहीं होते= (अच्छे बुरे सभी जगह हैं।)
का वर्षा जब कृषि सुखाने= (मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है।)
काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती= (कपट का फल अच्छा नहीं होता)
किसी का घर जले, कोई तापे= (दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना)
कोयले की दलाली में मुँह काला= (बुरों के साथ बुराई ही मिलती है)
प्रयोग- तुम्हें हजार बार समझाया चोरी मत करो, एक दिन पकड़े जाओगे। अब भुगतो। कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है।
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है= एक का प्रभाव दूसरे पर अवश्य पड़ता है।
खरी मजूरी चोखा काम= (अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना)
खोदा पहाड़ निकली चुहिया= (बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ)
प्रयोग- बच्चा बेचारा दिन भर लाल बत्ती पर अख़बार बेचता रहा, परंतु उसे कमाई मात्र बीस रुपये की हुई। यह वही बात है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा= (अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को)
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे= (किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना)
प्रयोग- दस लोगों के सामने जब मोहन की बात किसी ने नहीं सुनी, तो उसकी हालत उसी तरह हो गई ; जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं)
गुड़ खाय गुलगुले से परहेज= (बनावटी परहेज)
गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा= (पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना)
गाछे कटहल, ओठे तेल= (काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा)
गरजेसो बरसे नहीं= (बकवादी कुछ नहीं करता)
गुड़ गुड़, चेला चीनी= (गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना)
गागर में सागर भरना= (कम शब्दों में बहुत कुछ कहना)
प्रयोग- बिहारी कवि ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, पर दूर का ज्यादा)
प्रयोग- जग्गू को लोग जगुआ कहकर पुकारते थे। घर त्यागकर सिद्ध पुरुष की संगति में रहकर उसने सिद्धि प्राप्त कर ली और उसका नाम हो गया- स्वामी जगदानन्द। गाँव लौटा, तो किसी ने उसके गुणों की ओर ध्यान नहीं दिया। ठीक ही कहा गया है: ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध।’
घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा= (हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना)
घर पर फूस नहीं, नाम धनपत= (गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना)
घर का भेदी लंका ढाए= (आपस की फूट से हानि होती है।)
घर की मुर्गी दाल बराबर= (घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना)
घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना= (दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना)
घी का लड्डू टेढ़ा भला = (लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो।)
ढाक के तीन पात= (एक-सी स्थिति में रहना)
चिराग तले अँधेरा= (अपनी बुराई नहीं दीखती)
प्रयोग- मेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज न लेने का उपदेश देते फिरते है; पर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि ‘चिराग तले अँधेरा।’
चोर की दाढ़ी में तिनका= (अपने आप से डरना)
प्रयोग- विद्यालय से गायब होने पर पिता जी को बुलाने की बात सुनते ही कमल का चेहरा फीका पड़ गया। उसकी स्थिति चोर की दाढ़ी में तिनके के समान हो गई।
चूहे घर में दण्ड पेलते हैं= (आभाव-ही-आभाव)
चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय= (महा कंजूस)
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात= (सुख के कुछ दिनों के बाद दुख का आना)
प्रयोग- आज पैसा आने पर ज्यादा मत उछलो, क्या पता कब कैसे दिन देखने पड़ें ? सही बात है- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
चोर पर मोर= (एक दूसरे से ज्यादा धूर्त)
प्रयोग-मृदुल और करन दोनों को कम मत समझो। ये दोनों ही चोर पर मोर हैं।
जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ= (परिश्रम का फल अवश्य मिलता है)
प्रयोग- एक लड़का, जो बड़ा आलसी था, बार-बार फेल करता था और दूसरा, जो परिश्रमी था, पहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाई, तुम कैसे एक ही बार में पास कर गये, तब उसने जवाब दिया कि ‘जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ’।
जान बची तो लाखों पाये= जान बचने से बड़ा कोई लाभ नहीं है।
जैसी करनी वैसी भरनी= (कर्म के अनुसार फल मिलता है)
प्रयोग- राधा ने समय पर प्रोजेक्ट नहीं दिखाया और उसे उसमें शून्य अंक प्राप्त हुए। ठीक ही हुआ- जैसी करनी वैसी भरनी।
जिसकी लाठी उसकी भैंस= (बलवान की ही जीत होती है)
प्रयोग-सरपंच ने जिसे चाहा उसे बीज दिया। बेचारे किसान कुछ न कर पाए। इसे कहते हैं- जिसकी लाठी उसकी भैंस।
ठठेरे-ठठेरे बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)
ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)
तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)
तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे)= (खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो)
तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)
तीन लोक से मथुरा न्यारी= (निराला ढंग)
तुम डाल-डाल तो हम पात-पात= (किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना)
थोथा चना बाजे घना= कम जानकार में घमण्ड अधिक होता है।
थूक कर चाटना ठीक नहीं= (देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।)
दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)
दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली= ( काम साधारण, खर्च अधिक)
दाल-भात मेंमूसलचन्द= (बेकार दखल देना)
दुधारू गाय की दो लात भी भली= (जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए)
दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है= (एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना)
दूर का ढोल सुहावना= (दूर से कोई चीज अच्छी लगती है।)
देशी मुर्गी, विलायती बोल= (बेमेल काम करना)
दूध का दूध पानी का पानी= सही निर्णय।
दूध का जला छाछ को फूंक मारकर पीता है= धोखा खाकर आदमी सतर्क हो जाता है।
दीवारों के भी कान होते हैं= गुप्त बात छिपी नहीं रहती।
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का= (निकम्मा, व्यर्थ इधर-उधर डालनेवाला)
नाच न जाने आँगन टेढ़= (काम न जानना और बहाना बनाना)
प्रयोग- सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या ?कहा है: ‘नाच न जाने आँगन टेढ़।’
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (न कारण होगा, न कार्य होगा)
प्रयोग- सेठ माणिकचन्द के घर रोज लड़ाई-झगड़ा हुआ करता था। इस झगड़े की जड़ में था एक नौकर। वही इधर की बात उधर किया करता था। यह बात सेठ को मालूम हो गयी। उन्होंने उसे निकाल दिया। बहुतों ने उसकी ओर से सिफारिश की तो सेठ ने कहा- ‘नहीं, वह झगड़ा लगाता है। ‘न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।’
नक्कारखाने में तूती की आवाज= (सुनवाई न होना)
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी= (न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा)
न देने के नौ बहाने= (न देने के बहुत-से बहाने)
नदी में रहकर मगर से वैर=(जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना)
नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च= काम साधारण, खर्च अधिक)
नौ नगद, न तेरह उधार= (अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा)
नीम हकीम खतरे जान= (अयोग्य से हानि)
नाम बड़े, पर दर्शन थोड़े= (गुण से अधिक बड़ाई)
नाच कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान= आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।)
पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह किस्मत (या कुदरत) का खेल= (भाग्यहीन होना)
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं= (पराधीनता में सुख नहीं)
पहले भीतर तब देवता-पितर= (पेट-पूजा सबसे प्रधान)
पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची= (जबरदस्ती किसी के सर पड़ना)
पराये धन पर लक्ष्मीनारायण= (दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना)
पानी पीकर जात पूछना= (कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना)
पंच परमेश्वर= (पाँच पंचो की राय)
पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं= सभी व्यक्ति एक-से नहीं होते।
परहित सरिस धरम नहिं भाई= (परोपकार से बढ़कर और कोई धर्म नहीं)
प्रयोग- हमें सदैव दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि परहित सरिस धरम नहिं भाई।
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना= अचानक मनचाहा कार्य हो जाना।
बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल= (श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना)
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद= (मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता)
प्रयोग- रमेश खुद तो कला के बारे में कुछ जानता नहीं है, इसलिए जब भी उसे कला-संबंधी कोई चीज दिखाओ, तो हमेशा मीन-मेख निकालता है। सच ही कहा गया है- बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।
बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा= (जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता)
बहती गंगा में हाथ धोना= (अवसर का लाभ उठाना)
प्रयोग-सत्संग के लिए काफी लोग एकत्रित हुए थे। ऐसे में क्षेत्रीय नेता भी वहाँ आ गए और उन्होंने अपना लंबा-चौड़ा भाषण दे डाला। इसे कहते हैं- बहती गंगा में हाथ धोना।
बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय= (जैसी करनी, वैसी भरनी)
बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया= (बहुत बड़ा घाटा)
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी= (भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी)
बेकार से बेगार भली= (चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना)
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह= (बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है)
भागते चोर की लंगोटी ही सही= (सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना)
प्रयोग- सेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचा, चलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।
भइ गति साँप-छछूँदर केरी= (दुविधा में पड़ना)
भैंस के आगे बीन बजाना= (मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।)
प्रयोग-अरे ! रवि को पढ़ाई की बातें क्यों समझा रहे हो ? उसके लिए पढ़ाई-लिखाई सब बेकार की बातें हैं। तुम व्यर्थ ही भैंस के आगे बीन बजा रहे हो।
भागते भूत की लँगोटी ही सही= (जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है।)
मुँह में राम बगल में छुरी= (बाहर से मित्रता पर भीतर से बैर)
प्रयोग- सुरभि और प्रतिभा दोनों आपस में अच्छी सहेलियाँ बनती हैं, परंतु मौका पाते ही एक-दूसरे की बुराई करना शुरू कर देती हैं। यह तो वही बात हुई- मुँह में राम बगल में छुरी।
मियाँ की दौड़ मस्जिद तक= (किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सिमित होना)
मन चंगा तो कठौती में गंगा= (हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक)
मान न मान मैं तेरा मेहामन= (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)
मेढक को भी जुकाम= (ओछे का इतराना)
मार-मार कर हकीम बनाना= (जबरदस्ती आगे बढ़ाना)
माले मुफ्त दिले बेरहम= (मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना)
मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी= (जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हो तो दूसरे को इसमें क्या)
मोहरों की लूट, कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना)
मानो तो देव, नहीं तो पत्थर= (विश्वास ही फलदायक)
मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते= (मुप्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ)
रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी= (बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना)
प्रयोग- लड़की घर से भाग गई, बेटा स्कूल से निकाल दिया गया, लेकिन मिसेज बक्शी के तेवर अभी भी नहीं बदले। यह तो वही बात हुई- रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी।
रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी= (अधिक मजाक बुरा)
लश्कर में ऊँट बदनाम= (दोष किसी का, बदनामी किसी की)
लूट में चरखा नफा= (मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा)
लेना-देना साढ़े बाईस= (सिर्फ मोल-तोल करना)
साँच को आँच नहीं-(जो मनुष्य सच्चा होता है, उसे डर नहीं होता)=
प्रयोग-मुकेश, जब तुमने गलती की ही नहीं है, तो फिर डर क्यों रहे हो ? चलो सब कुछ सच-सच बता दो, क्योंकि साँच को आँच नहीं होती।
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे= ()आसानी से काम हो जाना)
प्रयोग-ठेकेदार और जमींदार के झगड़े में पंच को ऐसा फैसला सुनाना चाहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
सब धन बाईस पसेरी= (अच्छे-बुरे सबको एक समझना)
सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को= (जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना)
सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता= (सिधाई से काम नहीं होता)
सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू)= (सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना)
सौ सुनार की एक लुहार की= (शक्तिशाली की एक और निर्बल की सौ चोट बराबर)
होनहार बिरवान के होत चीकने पात= (होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।)
प्रयोग- वह लड़का जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुशील, और जैसा बुद्धिमान है, वैसा ही चंचल। अभी बारह वर्ष भी पूरे नहीं हुए, पर भाषा और गणित में उसकी अच्छी पैठ है। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और= (कहना कुछ और करना कुछ और)
प्रयोग- आजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।
हाथ कंगन को आरसी क्या= (प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या)
हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार= (उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए)
हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और= (बोलना कुछ, करना कुछ और)
हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत= (बेमौका)
हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान= (नीच का सम्मान)
किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को ‘लोकोक्ति’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।
उदाहरण- ‘उस दिन बात-ही-बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इन पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ । यहाँ ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है ‘एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता’ ।
लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब ‘लोकोक्ति’ हो जाती है।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
दोनों में अंतर इस प्रकार है-
(1) मुहावरा वाक्यांश होता है, जबकि लोकोक्ति एक पूरा वाक्य, दूसरे शब्दों में, मुहावरों में उद्देश्य और विधेय नहीं होता, जबकि लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय होता है।
(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।
(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं जबकि लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।
यहाँ कुछ लोकोक्तियाँ व उनके अर्थ तथा प्रयोग दिये जा रहे हैं-
अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति)
प्रयोग- मेरे गाँव में कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति तो है नही; इसलिए गाँववाले पण्डित अनोखेराम को ही सब कुछ समझते हैं। ठीक ही कहा गया है, अन्धों में काना राजा।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता= (अकेला आदमी लाचार होता है।)
प्रयोग- माना कि तुम बलवान ही नहीं, बहादुर भी हो, पर अकेले डकैतों का सामना नहीं कर सकते। तुमने सुना ही होगा कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।
अधजल गगरी छलकत जाय= डींग हाँकना।
प्रयोग- इसके दो-चार लेख क्या छप गये कि वह अपने को साहित्य-सिरमौर समझने लगा है। ठीक ही कहा गया है, ‘अधजल गगरी छलकत जाय।’
आँख का अन्धा नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना।)
प्रयोग- एक मियाँजी का नाम था शेरमार खाँ। वे अपने दोस्तों से गप मार रहे थे। इतने में घर के भीतर बिल्लियाँ म्याऊँ-म्याऊँ करती हुई लड़ पड़ी। सुनते ही शेरमार खाँ थर-थर काँपने लगे। यह देख एक दोस्त ठठाकर हँस पड़ा और बोला कि वाह जी शेरमार खाँ, आपके लिए तो यह कहावत बहुत ठीक है कि आँख का अन्धा नाम नयनमुख।
आँख के अन्धे गाँठ के पूरे= (मूर्ख धनवान)
प्रयोग- वकीलों की आमदनी के क्या कहने। उन्हें आँख के अन्धे गाँठ के पूरे रोज ही मिल जाते हैं।
आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ= नुकसान होते-होते जो कुछ बच जाय, वही बहुत है।
प्रयोग- किसी के घर चोरी हुई। चोर नकद और जेवर कुल उठा ले गये। बरतनों पर जब हाथ साफ करने लगे, तब उनकी झनझनाहट सुनकर घर के लोग जाग उठे। देखा तो कीमती माल सब गायब। घर के मालिकों ने बरतनों पर आँखें डालकर अफसोस करते हुए कहा कि खैर हुई, जो ये बरतन बच गये। आग लगन्ते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ। यदि ये भी चले गये होते, तो कल पत्तों पर ही खाना पड़ता।
अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत= (समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है)
प्रयोग- सारे साल तुम मस्ती मारते रहे, अध्यापकों और अभिभावक की एक न सुनी। अब बैठकर रो रहे हो। ठीक ही कहा गया है- अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
आगे नाथ न पीछे पगहा= (किसी तरह की जिम्मेवारी का न होना)
प्रयोग- अरे, तुम चक्कर न मारोगे तो और कौन मारेगा? आगे नाथ न पीछे पगहा। बस, मौज किये जाओ।
आम के आम गुठलियों के दाम= (अधिक लाभ)
प्रयोग- सब प्रकार की पुस्तकें ‘साहित्य भवन’ से खरीदें और पास होने पर आधे दामों पर बेचें। ‘आम के आम गुठलियों के दाम’ इसी को कहते हैं।
ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर= (काम करने पर उतारू होना)
प्रयोग- जब मैनें देशसेवा का व्रत ले लिया, तब जेल जाने से क्यों डरें? जब ओखली में सिर दिया, तब मूसलों से क्या डर।
आ बैल मुझे मार= (स्वयं मुसीबत मोल लेना)
प्रयोग- लोग तुम्हारी जान के पीछे पड़े हुए हैं और तुम आधी-आधी रात तक अकेले बाहर घूमते रहते हो। यह तो वही बात हुई- आ बैल मुझे मार।
आँखों के अन्धे नाम नयनसुख= (गुण के विरुद्ध नाम होना)
प्रयोग- उसका नाम तो करोड़ीमल है परन्तु वह पैसे-पैसे के लिए मारा-मारा फिरता है। इसे कहते है- आँखों के अन्धे नाम नयनसुख।
अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को दे= (अधिकार का नाजायज लाभ अपनों को देना)
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है= अपने स्थान पर निर्बल भी स्वयं को सबल समझता है।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें= (मनचाही बात हो जाना)
प्रयोग-अभी मैं विद्यालय से अवकाश लेने की सोच ही रही थी कि मेघा ने मुझे बताया कि कल विद्यालय में अवकाश है। यह तो वही हुआ- अन्धा क्या चाहे दो आँखें।
अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना)
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना= (निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है।)
अपनी करनी पार उतरनी= (किये का फल भोगना)
अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे= (अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना)
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग=(परस्पर संगठन या मेल न रखना)
आप डूबे जग डूबा= (जो स्वयं बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है।)
आग लगाकर जमालो दूर खड़ी= (झगड़ा लगाकर अलग हो जाना)
आगे कुआँ, पीछे पगहा= (अपना कोई न होना, घर का अकेला होना)
आँख का अंधा नाम नयनमुख= (गुण के विरुद्ध नाम)
आधा तीतर आधा बटेर= (बेमेल स्थिति)
आप भला तो जग भला= (स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा)
आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास= (करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और)
ओछे की प्रीत बालू की भीत=(नीचों का प्रेम क्षणिक)
ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती= (अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता)
ऊँची दूकान फीके पकवान=(केवल ब्राह्य प्रदर्शन)
प्रयोग- जग्गू तेली शुद्ध सरसों तेल का विज्ञापन करता है, लेकिन उसकी दूकान पर बिकता है रेपसीड-मिला सरसों तेल। ठीक है ऊँची दूकान फीके पकवान।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे= (अपराधी निरपराध को डाँटेे)
प्रयोग-एक तो पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं की और अब परीक्षा में कम अंक आने पर अध्यापिका को दोष दे रहे हैं। यह तो वही बात हो गई- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।
उद्योगिन्न पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी= (उद्योगी को ही धन मिलता है।)
ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी= (बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा)
ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर-घर एकै लेखा= (सभी एक समान)
ऊँट किस करवट बैठता है= (किसकी जीत होती है।)
ऊँट के मुँह में जीरा= (जरूरत के अनुसार चीज न होना)
प्रयोग-विद्यालय के ट्रिप में जाने के लिए 2,500 रुपये चाहिए थे, परंतु पिता जी ने 1,000 रुपये ही दिए। यह तो ऊँट के मुँह में जीरे वाली बात हुई।
ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी= (जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना)
ऊधो का लेना न माधो का देना=(लटपट से अलग रहना)
ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया= (ईश्वर की बातें विचित्र हैं।)
प्रयोग- कई बेचारे फुटपाथ पर ही रातें गुजारते हैं और कई भव्य बंगलों में आनन्द करते हैं। सच है ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।
इतनी-सी जान, गज भर की जबान= (छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना)
ईंट का जवाब पत्थर= (दुष्ट के साथ दुष्टता करना)
इस हाथ दे, उस हाथ ले= (कर्मो का फल शीघ्र पाना)
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया= (कहीं सुख, कहीं दुःख)
एक पन्थ दो काज= (एक काम से दूसरा काम हो जाना)
प्रयोग- दिल्ली जाने से एक पन्थ दो काज होंगे। कवि-सम्मेलन में कविता-पाठ भी करेंगे और साथ ही वहाँ की ऐतिहासिक इमारतों को भी देखेंगे।
एक और एक ग्यारह= एकता में शक्ति होती है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती= झगड़ा एक ओर से नहीं होता।
प्रयोग-आपसी लड़ाई में राम और श्याम-दोनों स्वयं को निर्दोष बता रहे थे, परंतु यह सही नहीं हो सकता, क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती।
एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा= (बुरे का और बुरे से संग होना)
एक अनार सौ बीमार= (चीज थोड़ी, माँगने वाले अधिक )
प्रयोग-पुस्तकालय में ‘भारत एक खोज पुस्तक की एक ही प्रति थी और प्रतियोगिता की वजह से उसे लेने वाले दस विद्यार्थी थे। यह तो वही बात हुई- एक अनार सौ बीमार।
एक तो चोरी दूसरे सीनाज़ोरी= (दोष करके न मानना)
एक म्यान में दो तलवार= (एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले)
कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली= (उच्च और साधारण की तुलना कैसी)
प्रयोग- तुम सेठ करोड़ीमल के बेटे हो। मैं एक मजदूर का बेटा। तुम्हारा हमारा और मेरा मेल कैसा ? कहाँ राजा भोज कहाँ गाँगू तेली।
कंगाली में आटा गीला= परेशानी पर परेशानी आना।
प्रयोग- पिता जी की बीमारी की वजह से घर में वैसे ही आर्थिक तंगी चल रही है, ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ गया। इसे कहते हैं- कंगाली में आटा गीला।
कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी= (प्रकृतीविरुद्ध काम)
कहे खेत की, सुने खलिहान की= (हुक्म कुछ और करना कुछ और)
कहीं का ईट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा= (इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना)
काला अक्षर भैंस बराबर=(निरा अनपढ़)
काबुल में क्या गदहे नहीं होते= (अच्छे बुरे सभी जगह हैं।)
का वर्षा जब कृषि सुखाने= (मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है।)
काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती= (कपट का फल अच्छा नहीं होता)
किसी का घर जले, कोई तापे= (दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना)
कोयले की दलाली में मुँह काला= (बुरों के साथ बुराई ही मिलती है)
प्रयोग- तुम्हें हजार बार समझाया चोरी मत करो, एक दिन पकड़े जाओगे। अब भुगतो। कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है।
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है= एक का प्रभाव दूसरे पर अवश्य पड़ता है।
खरी मजूरी चोखा काम= (अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना)
खोदा पहाड़ निकली चुहिया= (बहुत कठिन परिश्रम का थोड़ा लाभ)
प्रयोग- बच्चा बेचारा दिन भर लाल बत्ती पर अख़बार बेचता रहा, परंतु उसे कमाई मात्र बीस रुपये की हुई। यह वही बात है- खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा= (अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को)
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे= (किसी बात पर लज्जित होकर क्रोध करना)
प्रयोग- दस लोगों के सामने जब मोहन की बात किसी ने नहीं सुनी, तो उसकी हालत उसी तरह हो गई ; जैसे खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं)
गुड़ खाय गुलगुले से परहेज= (बनावटी परहेज)
गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा= (पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढना)
गाछे कटहल, ओठे तेल= (काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा)
गरजेसो बरसे नहीं= (बकवादी कुछ नहीं करता)
गुड़ गुड़, चेला चीनी= (गुरु से शिष्य का ज्यादा काबिल हो जाना)
गागर में सागर भरना= (कम शब्दों में बहुत कुछ कहना)
प्रयोग- बिहारी कवि ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध= (निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाता है, पर दूर का ज्यादा)
प्रयोग- जग्गू को लोग जगुआ कहकर पुकारते थे। घर त्यागकर सिद्ध पुरुष की संगति में रहकर उसने सिद्धि प्राप्त कर ली और उसका नाम हो गया- स्वामी जगदानन्द। गाँव लौटा, तो किसी ने उसके गुणों की ओर ध्यान नहीं दिया। ठीक ही कहा गया है: ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध।’
घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा= (हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना)
घर पर फूस नहीं, नाम धनपत= (गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना)
घर का भेदी लंका ढाए= (आपस की फूट से हानि होती है।)
घर की मुर्गी दाल बराबर= (घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना)
घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना= (दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना)
घी का लड्डू टेढ़ा भला = (लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो।)
ढाक के तीन पात= (एक-सी स्थिति में रहना)
चिराग तले अँधेरा= (अपनी बुराई नहीं दीखती)
प्रयोग- मेरे समधी सुरेशप्रसादजी तो तिलक-दहेज न लेने का उपदेश देते फिरते है; पर अपने बेटे के ब्याह में दहेज के लिए ठाने हुए हैं। उनके लिए यही कहावत लागू है कि ‘चिराग तले अँधेरा।’
चोर की दाढ़ी में तिनका= (अपने आप से डरना)
प्रयोग- विद्यालय से गायब होने पर पिता जी को बुलाने की बात सुनते ही कमल का चेहरा फीका पड़ गया। उसकी स्थिति चोर की दाढ़ी में तिनके के समान हो गई।
चूहे घर में दण्ड पेलते हैं= (आभाव-ही-आभाव)
चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय= (महा कंजूस)
चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात= (सुख के कुछ दिनों के बाद दुख का आना)
प्रयोग- आज पैसा आने पर ज्यादा मत उछलो, क्या पता कब कैसे दिन देखने पड़ें ? सही बात है- चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।
चोर पर मोर= (एक दूसरे से ज्यादा धूर्त)
प्रयोग-मृदुल और करन दोनों को कम मत समझो। ये दोनों ही चोर पर मोर हैं।
जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ= (परिश्रम का फल अवश्य मिलता है)
प्रयोग- एक लड़का, जो बड़ा आलसी था, बार-बार फेल करता था और दूसरा, जो परिश्रमी था, पहली बार परीक्षा में उतीर्ण हो गया। जब आलसी ने उससे पूछा कि भाई, तुम कैसे एक ही बार में पास कर गये, तब उसने जवाब दिया कि ‘जिन ढूँढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ’।
जान बची तो लाखों पाये= जान बचने से बड़ा कोई लाभ नहीं है।
जैसी करनी वैसी भरनी= (कर्म के अनुसार फल मिलता है)
प्रयोग- राधा ने समय पर प्रोजेक्ट नहीं दिखाया और उसे उसमें शून्य अंक प्राप्त हुए। ठीक ही हुआ- जैसी करनी वैसी भरनी।
जिसकी लाठी उसकी भैंस= (बलवान की ही जीत होती है)
प्रयोग-सरपंच ने जिसे चाहा उसे बीज दिया। बेचारे किसान कुछ न कर पाए। इसे कहते हैं- जिसकी लाठी उसकी भैंस।
ठठेरे-ठठेरे बदलौअल= (चालाक को चालक से काम पड़ना)
ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका= (एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना)
तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा= (जितने आदमी उतने विचार)
तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे)= (खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो)
तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता= (शेखी बघारना)
तीन लोक से मथुरा न्यारी= (निराला ढंग)
तुम डाल-डाल तो हम पात-पात= (किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना)
थोथा चना बाजे घना= कम जानकार में घमण्ड अधिक होता है।
थूक कर चाटना ठीक नहीं= (देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित।)
दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी= (मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान।)
दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली= ( काम साधारण, खर्च अधिक)
दाल-भात मेंमूसलचन्द= (बेकार दखल देना)
दुधारू गाय की दो लात भी भली= (जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए)
दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है= (एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना)
दूर का ढोल सुहावना= (दूर से कोई चीज अच्छी लगती है।)
देशी मुर्गी, विलायती बोल= (बेमेल काम करना)
दूध का दूध पानी का पानी= सही निर्णय।
दूध का जला छाछ को फूंक मारकर पीता है= धोखा खाकर आदमी सतर्क हो जाता है।
दीवारों के भी कान होते हैं= गुप्त बात छिपी नहीं रहती।
धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का= (निकम्मा, व्यर्थ इधर-उधर डालनेवाला)
नाच न जाने आँगन टेढ़= (काम न जानना और बहाना बनाना)
प्रयोग- सुधा से गाने के लिए कहा, तो उसने कहा- साज ही ठीक नहीं, गाऊँ क्या ?कहा है: ‘नाच न जाने आँगन टेढ़।’
न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी= (न कारण होगा, न कार्य होगा)
प्रयोग- सेठ माणिकचन्द के घर रोज लड़ाई-झगड़ा हुआ करता था। इस झगड़े की जड़ में था एक नौकर। वही इधर की बात उधर किया करता था। यह बात सेठ को मालूम हो गयी। उन्होंने उसे निकाल दिया। बहुतों ने उसकी ओर से सिफारिश की तो सेठ ने कहा- ‘नहीं, वह झगड़ा लगाता है। ‘न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।’
नक्कारखाने में तूती की आवाज= (सुनवाई न होना)
न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी= (न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा)
न देने के नौ बहाने= (न देने के बहुत-से बहाने)
नदी में रहकर मगर से वैर=(जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना)
नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च= काम साधारण, खर्च अधिक)
नौ नगद, न तेरह उधार= (अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा)
नीम हकीम खतरे जान= (अयोग्य से हानि)
नाम बड़े, पर दर्शन थोड़े= (गुण से अधिक बड़ाई)
नाच कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान= आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है।)
पढ़े फारसी बेचे तेल देखो यह किस्मत (या कुदरत) का खेल= (भाग्यहीन होना)
पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं= (पराधीनता में सुख नहीं)
पहले भीतर तब देवता-पितर= (पेट-पूजा सबसे प्रधान)
पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची= (जबरदस्ती किसी के सर पड़ना)
पराये धन पर लक्ष्मीनारायण= (दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना)
पानी पीकर जात पूछना= (कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना)
पंच परमेश्वर= (पाँच पंचो की राय)
पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं= सभी व्यक्ति एक-से नहीं होते।
परहित सरिस धरम नहिं भाई= (परोपकार से बढ़कर और कोई धर्म नहीं)
प्रयोग- हमें सदैव दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि परहित सरिस धरम नहिं भाई।
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना= अचानक मनचाहा कार्य हो जाना।
बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल= (श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना)
बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद= (मूर्ख गुण की कद्र करना नहीं जानता)
प्रयोग- रमेश खुद तो कला के बारे में कुछ जानता नहीं है, इसलिए जब भी उसे कला-संबंधी कोई चीज दिखाओ, तो हमेशा मीन-मेख निकालता है। सच ही कहा गया है- बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।
बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा= (जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता)
बहती गंगा में हाथ धोना= (अवसर का लाभ उठाना)
प्रयोग-सत्संग के लिए काफी लोग एकत्रित हुए थे। ऐसे में क्षेत्रीय नेता भी वहाँ आ गए और उन्होंने अपना लंबा-चौड़ा भाषण दे डाला। इसे कहते हैं- बहती गंगा में हाथ धोना।
बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय= (जैसी करनी, वैसी भरनी)
बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया= (बहुत बड़ा घाटा)
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी= (भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी)
बेकार से बेगार भली= (चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना)
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह= (बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है)
भागते चोर की लंगोटी ही सही= (सारा जाता देखकर थोड़े में ही सन्तोष करना)
प्रयोग- सेठ करोड़ीमल पर मेरे दस हजार रुपये थे। दिवाला निकलने के कारण वह केवल दो हजार रु० ही दे रहा है। मैंने सोचा, चलो भागते चोर की लंगोटी ही सही।
भइ गति साँप-छछूँदर केरी= (दुविधा में पड़ना)
भैंस के आगे बीन बजाना= (मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है।)
प्रयोग-अरे ! रवि को पढ़ाई की बातें क्यों समझा रहे हो ? उसके लिए पढ़ाई-लिखाई सब बेकार की बातें हैं। तुम व्यर्थ ही भैंस के आगे बीन बजा रहे हो।
भागते भूत की लँगोटी ही सही= (जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है।)
मुँह में राम बगल में छुरी= (बाहर से मित्रता पर भीतर से बैर)
प्रयोग- सुरभि और प्रतिभा दोनों आपस में अच्छी सहेलियाँ बनती हैं, परंतु मौका पाते ही एक-दूसरे की बुराई करना शुरू कर देती हैं। यह तो वही बात हुई- मुँह में राम बगल में छुरी।
मियाँ की दौड़ मस्जिद तक= (किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सिमित होना)
मन चंगा तो कठौती में गंगा= (हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक)
मान न मान मैं तेरा मेहामन= (जबरदस्ती किसी के गले पड़ना)
मेढक को भी जुकाम= (ओछे का इतराना)
मार-मार कर हकीम बनाना= (जबरदस्ती आगे बढ़ाना)
माले मुफ्त दिले बेरहम= (मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना)
मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी= (जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हो तो दूसरे को इसमें क्या)
मोहरों की लूट, कोयले पर छाप= (मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना)
मानो तो देव, नहीं तो पत्थर= (विश्वास ही फलदायक)
मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते= (मुप्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ)
रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी= (बुरी हालत में पड़कर भी अभियान न त्यागना)
प्रयोग- लड़की घर से भाग गई, बेटा स्कूल से निकाल दिया गया, लेकिन मिसेज बक्शी के तेवर अभी भी नहीं बदले। यह तो वही बात हुई- रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी।
रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी= (अधिक मजाक बुरा)
लश्कर में ऊँट बदनाम= (दोष किसी का, बदनामी किसी की)
लूट में चरखा नफा= (मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा)
लेना-देना साढ़े बाईस= (सिर्फ मोल-तोल करना)
साँच को आँच नहीं-(जो मनुष्य सच्चा होता है, उसे डर नहीं होता)=
प्रयोग-मुकेश, जब तुमने गलती की ही नहीं है, तो फिर डर क्यों रहे हो ? चलो सब कुछ सच-सच बता दो, क्योंकि साँच को आँच नहीं होती।
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे= ()आसानी से काम हो जाना)
प्रयोग-ठेकेदार और जमींदार के झगड़े में पंच को ऐसा फैसला सुनाना चाहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
सब धन बाईस पसेरी= (अच्छे-बुरे सबको एक समझना)
सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को= (जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना)
सीधी ऊँगली से घी नहीं निकलता= (सिधाई से काम नहीं होता)
सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू)= (सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना)
सौ सुनार की एक लुहार की= (शक्तिशाली की एक और निर्बल की सौ चोट बराबर)
होनहार बिरवान के होत चीकने पात= (होनहार के लक्षण पहले से ही दिखायी पड़ने लगते है।)
प्रयोग- वह लड़का जैसा सुन्दर है, वैसा ही सुशील, और जैसा बुद्धिमान है, वैसा ही चंचल। अभी बारह वर्ष भी पूरे नहीं हुए, पर भाषा और गणित में उसकी अच्छी पैठ है। अभी देखने पर स्पष्ट मालूम होता है कि समय पर वह सुप्रसिद्ध विद्वान होगा। कहावत भी है, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और= (कहना कुछ और करना कुछ और)
प्रयोग- आजकल के नेताओं का विश्वास नहीं। इनके दाँत तो दिखाने के और होते हैं और खाने के और होते हैं।
हाथ कंगन को आरसी क्या= (प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या)
हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार= (उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए)
हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और= (बोलना कुछ, करना कुछ और)
हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत= (बेमौका)
हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान= (नीच का सम्मान)
Great Post Man thanks for sharing this kind of information Positive Attitude In Hindi!
ReplyDeleteWow, Very nice and valuable content. I really appreciate your thinking and the way you wrote the article. Hope everything is fine! Adish Hub in हिन्दी.
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