धर्म की आड़-गणेश शंकर विद्यार्थी
धर्म की आड़ |
इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्पात किये जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर और जिद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर। रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ धर्म और ईमान को जानें, या न जानें, परंतु उसके नाम पर उबल पड़ते हैं और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बुझता और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरजे, पढ़े-लिखे लोगों का जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी। साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्वों को क्या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फायदा उठा रहे हैं। पाश्चात्य देशों में, धनी लोग गरीब मजदूरों के परिश्रम बेजा लाभ उठाते हैं। उसी परिश्रम की बदौलत गरीब मजदूर की झोंपड़ी का मजाक उड़ाती हुई उनकी अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती है! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं और उसी के बल से वे सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहे। यह भयंकर अवस्था है! इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज्म आदि का जन्म हुआ। हमारे देश में इस समय, धनपतियों का इतना जोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं हैं, जितना बुरा यह है कि वह है धन की मार, यह है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है और फिर मनमाना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना और फिर, धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना। मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेते और थोड़े-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किये जाने वाले इस भीषण व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्य-प्रति बढ़ते जाने वाले झगड़े कम न होंगे। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध हो, आत्मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता के छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें और दूसरे का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं जबरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाय। देश की स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन नि:संदेह, अत्यंत बुरा था, जिस दिन, स्वाधीनता के क्षेत्र में, खिलाफत, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है। देश की स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ है कि इस समय, हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके-से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने में लगी हैं और देश में मजहबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं। महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्येक आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्मा जी के धर्म का स्वरूप क्या है? धर्म से महात्मा जी का मतलब धर्म के ऊँचे और उदार तत्वों ही का हुआ करता है। उनके मानने में किसे एतराज हो सकता है। अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिन्ह हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्ता नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार की रिश्वत के दे चुकने के पश्चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आजाद समझते हैं तो, इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जायेगा, आपकी भलमसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगा। सबके कल्याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज और रोजे, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की आजादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उठालने के लिए आजाद न छोड़ सकेगी। ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो, वे ला-मजहब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्छा है, जो दूसरों के सुख-दु:ख का ख्याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों और ला-मजहब लोगों को अधिक प्यार करेगा और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, 'मुझे मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा। दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो।' निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक दो पंक्तियों में दीजिए:Question 1: आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है? उत्तर: आज धर्म के नाम पर उत्पात किये जा रहे हैं, पाप किये जा रहे हैं और जिद की जा रही है। Question 2: धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या उद्योग होने चाहिए? उत्तर: धर्म के व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए। Question 3: लेखक के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन का कौन सा दिन सबसे बुरा था? उत्तर: इस दिन स्वाधीनता आंदोलन में खिलाफत, मुल्लाओं और धर्माचार्यों को स्थान दिये जाने की जरूरत महसूस हुई, वह दिन स्वाधीनता आंदोलन का सबसे बुरा दिन था। Question 4: साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है? उत्तर: साधारण से साधारण आदमी के दिल में यह बात अच्छी तरह घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक निछावर कर देना वाजिब है। Question 5: धर्म के स्पष्ट चिन्ह क्या हैं? उत्तर: धर्म इंसान और भगवान के बीच संबंध स्थापित करने का साधन है। यह आत्मा को शुद्ध करने और उसे ऊँचा उठाने का साधन है। निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए: Question 1: चलते-पुरजे लोग धर्म के नाम पर क्या करते हैं? उत्तर: चलते-पुरजे लोग धर्म के नाम पर मूर्ख और सीधे लोगों के उत्साह और शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आसानी से अपना बड़प्पन और नेतृत्व कायम रख सकें। Question 2: चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का लाभ उठाते हैं? उत्तर: साधारण आदमी को धर्म का मतलब लगता है लकीर पीटते रहना। चालाक लोग इसी मनोदशा का लाभ उठाते हैं। Question 3: आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं टिकने देगा? उत्तर: आनेवाले समय में लोगों के शुद्ध आचरण को बल मिलेगा। ऐसे लोग जो नमाज या पूजा के बहाने दूसरे की आजादी को छीनते हैं और देश भर में उत्पात फैलाते हैं; उन्हें आनेवाला समय टिकने नहीं देगा। Question 4: कौन सा कार्य देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा? उत्तर: धर्म के नाम पर एक दूसरे को लड़वाना, धर्म के नाम पर दूसरे संप्रदाय के लोगों की आजादी छीनना, देश भर में उत्पात मचाना, आदि कार्यों को देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा। Question 5: पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन लोगों में क्या अंतर है? उत्तर: पाश्चात्य देशों में धनी लोगों के आलीशान महल गरीबों के पसीने की कमाई का नतीजा होते हैं। धनी लोग हमेशा गरीबों का खून चूसते हैं। इसके परिणामस्वरूप अमीरों और गरीबों के बीच लड़ाई का जन्म होता है। Question 6: कौन से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे हैं? उत्तर: वैसे नास्तिक लोग जो किसी पर अत्याचार नहीं करते, किसी को एक दूसरे के खिलाफ नहीं लड़वाते हैं। ऐसे लोग अक्सर निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद भी करते हैं। निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखिए: Question 1: धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापर को कैसे रोका जा सकता है? उत्तर: धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए धर्म की उपासना सही तरीके से करनी होगी। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई खलल न हो। हर व्यक्ति को अपने ढ़ंग से धर्म का आचरण करने की आजादी हो। धर्म को एक ऐसा जरिया बनाना होगा जिससे आप ईश्वर से साक्षात्कार कर सकें, आत्मा को शुद्ध कर सकें और उसे ऊँचा उठा सकें। आप दूसरे किसी को भी उसका धर्मपालन करने से न रोकें। Question 2: ‘बुद्धि की मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं? उत्तर: जब कोई व्यक्ति साधारण मनुष्य को धर्म की आड़ में लड़वाता है तो यह बुद्धि की मार होती है। इस स्थिति में लोगों की बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए ले लिया जाता है। उसके बाद धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर लोगों को लड़वाया जाता है ताकि अपनी स्वार्थ सिद्धि हो सके। Question 3: लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए? उत्तर: लेखक के हिसाब से धर्म की उपासना के मार्ग में कोई रुकावट न हो। हर व्यक्ति को अपने हिसाब से धर्म की भावना को जगाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। धर्म एक साधन हो जिससे मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध स्थापित हो, और जिससे आत्मा शुद्ध हो। कोई भी व्यक्ति दूसरे के धर्म में खलल न डाले। विभिन्न धर्मों के लोगों को आपस में टकराव से बचना चाहिए। Question 4: महात्मा गांधी के धर्म संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए। उत्तर: महात्मा गांधी धर्म को हर जगह स्थान देते थे। वे बिना धर्म के एक कदम भी चलने को तैयार नहीं होते थे। महात्मा गांधी के लिए धर्म का मतलब ऊँचे और उदार आदर्श हुआ करते थे। वे सभी धर्म को समान भाव से देखते थे। Question 5: सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है? उत्तर: यदि कोई आदमी सुबह दो घंटे पूजा करता है या दिन में पाँचों वक्त नमाज पढ़ता है, लेकिन उसके बाद पूरे दिन बेईमानी और धूर्तता में लिप्त रहता है तो उसे धार्मिक नहीं कहा जाएगा। यदि आप अपने आचरण को सुधार लें और किसी के साथ गलत ना करें तभी आप धार्मिक कहलाएँगे। समाज में सुख शांति और सबके कल्याण के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति अपना आचरण सुधार ले। निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:Question 1: उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है। उत्तर: साधारण आदमी को इतना पता होता है कि धर्म और ईमान के लिए जान भी देनी पड़े तो उचित है। उसे धर्म का असली मर्म नहीं पता होता है। इसलिए उसे आसानी से बहकाया जा सकता है और जिधर चाहे हाँका जा सकता है। Question 2: यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना भिड़ाना। उत्तर: लेखक ने धर्म के नाम पर बहकाए जाने को बुद्धि की मार बताया है। धर्म के नाम पर पहले तो लोगों की बुद्धि पर परदा डाल दिया जाता है। उसके बाद चालाक लोग ऐसे लोगों के दिमाग में से ईश्वर और आत्मा को हटाकर अपना स्थान बना लेते हैं। फिर अपना उल्लू सीधा करने के लिए ये धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़वाते हैं। Question 3: अब तो, आपका पूजा पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी। उत्तर: लेखक का मानना है कि आने वाले समय में आपकी पूजा पाठ से यह तय नहीं होगा कि आप कितने धार्मिक हैं। बल्कि आपके आचरण से यह तय होगा कि आप कितने धार्मिक हैं। यदि कोई नास्तिक मनुष्य भी इमानदार है और दूसरों को कष्ट नहीं पहुँचाता है तो उसे एक धार्मिक मनुष्य माना जाएगा। Question 4: तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो, और आदमी बनो। उत्तर: ईश्वर भी ऐसे लोगों से अपने आप को अलग कर लेगा जो धर्म के नाम पर दूसरों को प्रताड़ित करते हैं, या समाज में उत्पात मचाते हैं। ईश्वर का अस्तित्व किसी की पूजा अर्चना पर नहीं टिका है। इसलिए ईश्वर ऐसे व्यक्ति का ही साथ देगा जो सही मायने में मनुष्य है और दूसरे मनुष्यों का आदर करता है। |
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