Kabir Class 10 course B
उन्होने कभी विधिवत शिक्षा नहीं प्राप्त की, किंतु ज्ञानी और संतों के साथ रहकर कबीर ने दीक्षा और ज्ञान प्राप्त किया। वह धार्मिक कर्मकांडों से परे थे। उनका मानना था कि परमात्मा एक है, इसलिए वह हर धर्म की आलोचना और प्रशंसा करते थे। उन्होने कई कविताएं गाईं, जो आज के सामाजिक परिदृश्य में भी उतनी ही सटीक हैं, जितनी कि उस समय।
उन्होने अपने अतिंम क्षण मगहर में व्यतीत किए और वहीं अपने प्राण त्यागे। कबीर दास की रचनाएँ (Kabir Das Ki Rachnaye) कबीर ग्रंथावली में संग्रहीत है। कबीर की कई रचनाएं गुरुग्रंथ साहिब में भी पढ़ी जा सकती हैं।
kabir ki sakhi class 10 – कबीर की साखी
ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥
सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
Kabir Ki Sakhi Ncert Solutions for Class 10 Hindi Sparsh
कबीर की साखी अर्थ सहित- Kabir Ke Dohe Sakhi Meaning in Hindi
ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर ने वाणी को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बताया है। महाकवि संत कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कि हमें ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए, जिससे हमें शीतलता का अनुभव हो और साथ ही सुनने वालों का मन भी प्रसन्न हो उठे। मधुर वाणी से समाज में प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनों से हम एक-दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। इसलिए हमेशा मीठा और उचित ही बोलना चाहिए, जो दूसरों को तो प्रसन्न करता ही है और आपको भी सुख की अनुभूति कराता है।
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
कबीर की साखी भावार्थ : जिस प्रकार हिरण की नाभि में कस्तूरी रहती है, परन्तु हिरण इस बात से अनजान उसकी खुशबू के कारण उसे पूरे जंगल में इधर-उधर ढूंढ़ता रहता है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हम उन्हें मंदिर-मस्जिद, पूजा-पाठ में ढूंढ़ते हैं। जबकि ईश्वर तो स्वयं कण-कण में बसे हुए हैं, उन्हें कहीं ढूंढ़ने की ज़रूरत नहीं। बस ज़रूरत है, तो खुद को पहचानने की।
कस्तूरी :- कस्तूरी एक तरह का पदार्थ होता है, जो नर-हिरण की नाभि में पाया जाता है। इसमें एक प्रकार की विशेष खुशबू होती है। इसे इंग्लिश में Deer musk बोलते हैं। इसका इस्तेमाल परफ्यूम तथा मेडिसिन (दवाइयाँ) बनाने में होता है। यह बहुत ही महंगा होता है।
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर जी कह रहे हैं कि जब तक मनुष्य में अहंकार (मैं) रहता है, तब तक वह ईश्वर की भक्ति में लीन नहीं हो सकता और एक बार जो मनुष्य ईश्वर-भक्ति में पूर्ण रुप से लीन हो जाता है, उस मनुष्य के अंदर कोई अहंकार शेष नहीं रहता। वह खुद को नगण्य समझता है। जिस प्रकार दीपक के जलते ही पूरा अंधकार मिट जाता है और चारों तरफ प्रकाश फ़ैल जाता है, ठीक उसी प्रकार, भक्ति के मार्ग पर चलने से ही मनुष्य के अंदर व्याप्त अहंकार मिट जाता है।
सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर ने समाज के ऊपर व्यंग्य किया है। वह कहते हैं कि सारा संसार किसी झांसे में जी रहा है। लोग खाते हैं और सोते हैं, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं है। वह सिर्फ़ खाने एवं सोने से ही ख़ुश हो जाते हैं। जबकि सच्ची ख़ुशी तो तब प्राप्त होती है, जब आप प्रभु की आराधना में लीन हो जाते हो। परन्तु भक्ति का मार्ग इतना आसान नहीं है, इसी वजह से संत कबीर को जागना एवं रोना पड़ता है।
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
कबीर की साखी भावार्थ : जिस प्रकार अपने प्रेमी से बिछड़े हुए व्यक्ति की पीड़ा किसी मंत्र या दवा से ठीक नहीं हो सकती, ठीक उसी प्रकार, अपने प्रभु से बिछडा हुआ कोई भक्त जी नहीं सकता। उसमें प्रभु-भक्ति के अलावा कुछ शेष बचता ही नहीं। अपने प्रभु से बिछड़ अगर वो जीवित रह भी जाते हैं, तो अपने प्रभु की याद में वो पागल हो जाते हैं।
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में संत कबीर दास जी के अनुसार जो व्यक्ति हमारी निंदा करते हैं, उनसे कभी दूर नहीं भागना चाहिए, बल्कि हमें हमेशा उनके समीप रहना चाहिए। जैसे हम किसी गाय को अपने आँगन में खूँटे से बांधकर रखते हैं, ठीक उसी प्रकार ही हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखने का कोई प्रबंध कर लेना चाहिए। जिससे हम रोज उनसे अपनी बुराईयों के बारे में जान सकें और अपनी गलतियाँ दोबारा दोहराने से बच सकें। इस प्रकार हम बिना साबुन और पानी के ही खुद को निर्मल बना सकते हैं।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर के अनुसार सिर्फ़ मोटी-मोटी किताबों को पढ़कर किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेने से भी कोई पंडित नहीं बन सकता। जबकि ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर पढ़ कर भी लोग पंडित बन जाते हैं। अर्थात किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी होना आवश्यक है, नहीं तो कोई व्यक्ति ज्ञानी नहीं बन सकता।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥
कबीर की साखी भावार्थ : सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए, हमें अपनी मोह-माया का त्याग करना होगा। तभी हम सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं। कबीर के अनुसार, उन्होंने खुद ही अपने मोह-माया रूपी घर को ज्ञान रूपी मशाल से जलाया है। अगर कोई उनके साथ भक्ति की राह पर चलना चाहता है, तो कबीर अपनी इस मशाल से उसका घर भी रौशन करेंगे अर्थात अपने ज्ञान से उसे मोह-माया के बंधन से मुक्त करेंगे।
शब्दार्थ :
- बाँणी – बात करना (वाणी)
- आपा (मैं) – अहंकार (ईगो)
- तन – शरीर (बॉडी)
- सीतल – ठंडा
- कस्तूरी – कस्तूरी एक तरह का पदार्थ है जो नर हिरन के नाभि में पाया जाता है।
- कुंडली – नाभि
- माँहि – भीतर, अंदर
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर-
मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है, क्योंकि मीठी वाणी बोलने से मन का अहंकार समाप्त हो जाता है। यह हमारे तन को तो शीतलता प्रदान करती ही है तथा सुननेवालों को भी सुख की तथा प्रसन्नता की अनुभूति कराती है इसलिए सदा दूसरों को सुख पहुँचाने वाली व अपने को भी शीतलता प्रदान करने वाली मीठी वाणी बोलनी चाहिए।
प्रश्न 2.
दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दीपक में एक प्रकाशपुंज होता है जिसके प्रभाव के कारण अंधकार नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार मन में ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश फैलते ही मन में छाया भ्रम, संदेह और भयरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 3.
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?
उत्तर-
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है और कण-कण ही ईश्वर है। ईश्वर की चेतना से ही यह संसार दिखाई देता है। चारों ओर ईश्वरीय चेतना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, लेकिन यह सब कुछ हम इन भौतिक आँखों से नहीं देख सकते। जब तक ईश्वर की कृपा से हमें दिव्य चक्षु (आँखें) नहीं मिलते, तब तक. हम कण-कण में ईश्वर के वास को नहीं देख सकते हैं और न ही अनुभव कर सकते हैं।
प्रश्न 4.
संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संसार में वह व्यक्ति सुखी है जो प्रभु प्राप्ति के लिए प्रयास से दूर रहकर सांसारिक विषयों में डूबकर आनंदपूर्वक सोता है। इसके विपरीत वह व्यक्ति जो प्रभु को पाने के लिए तड़प रहा है, उनके वियोग से दुखी है, वही जाग रहा है। यहाँ ‘सोना’ का प्रयोग प्रभु प्राप्ति के प्रयासों से विमुख होने और ‘जागना’ प्रभु प्राप्ति के लिए किए जा रहे प्रयासों को प्रतीक है। इसका प्रयोग मानव जीवन में सांसारिक विषय-वासनाओं से दूर रहने तथा सचेत करने के लिए किया गया है।
प्रश्न 5.
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर-
अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदक को अपने निकट रखने का सुझाव दिया है, क्योंकि वही हमारा सबसे बड़ा हितैषी है अन्यथा झूठी प्रशंसा कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले तो अनेक मिल जाते हैं। निंदक बुराइयों को दूरकर सद्गुणों को अपनाने में सहायक सिद्ध होता है। निंदक की आलोचना को सुनकर आत्मनिरीक्षण कर शुद्ध व निर्मल आचरण करने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 6.
‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’–इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’ पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि संसार में पीव अर्थात् ब्रह्म ही सत्य है। उसे पढ़े या जाने बिना कोई भी पंडित (ज्ञानी) नहीं बन सकता है।
प्रश्न 7.
कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता है कि यह जन भाषा है। उन्होंने जनचेतना और जनभावनाओं को अपनी सधुक्कड़ी भाषा द्वारा साखियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया है। इसलिए डॉ० हजारी प्रसाद विवेदी ने इनकी भाषा को भावानुरूपिणी माना है। अपनी चमत्कारिक भाषा के कारण आज भी इनके दोहे लोगों की जुबान पर हैं।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिएप्रश्न
प्रश्न 1.
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर-
इस पंक्ति का भाव है कि विरह (जुदाई, पृथकता, अलगाव) एक सर्प के समान है, जो शरीर में बसता है और शरीर का क्षय करता है। इस विरह रूपी सर्प पर किसी भी मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि यह विरह ईश्वर को न पाने के कारण सताता है। जब अपने प्रिय ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है, तो वह विरह रूपी सर्प शांत हो जाता है, समाप्त हो जाता है अर्थात् ईश्वर की प्राप्ति ही इसका स्थायी समाधान है।
प्रश्न 2.
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
उत्तर-
इस पंक्ति का भाव है कि भगवान हमारे शरीर के अंदर ही वास करते हैं। जैसे हिरण की नाभि में कस्तूरी होती है, परवह उसकी खुशबू से प्रभावित होकर उसे चारों ओर ढूँढ़ता फिरता है। ठीक उसी प्रकार से मनुष्य ईश्वर को विभिन्न स्थलों पर तथा अनेक धार्मिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करता है, किंतु ईश्वर तीर्थों, जंगलों आदि में भटकने से नहीं मिलते। वे तो अपने अंतःकरण में झाँकने से ही मिलते हैं।
प्रश्न 3.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर-
इसका भाव है कि जब तक मनुष्य के भीतर ‘अहम्’ (अहंकार) की भावना अथवा अंधकार विद्यमान रहता है, तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। ‘अहम्’ के मिटते ही ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है, क्योंकि ‘अहम्’ और ‘ईश्वर’ दोनों एक स्थान पर नहीं रह सकते। ईश्वर को पाने के लिए उसके प्रति पूर्ण समर्पण आवश्यक है।
प्रश्न 4.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।
उत्तर
इसका अर्थ है कि पोथियाँ एवं वेद पढ़-पढ़कर संसार थक गया, लेकिन आज तक कोई भी पंडित नहीं बन सका; अर्थात् ईश्वर के प्रेम के बिना, उसकी कृपा के बिना कोई भी पंडित नहीं बन सकता तत्वज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकता।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण- जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर-
शब्द | प्रचलित रूप |
औरन | औरों को, और |
साबण | साबुन |
माँहि | में (अंदर) |
मुवा | मर गया, मरा |
देख्या | देखा |
पीव | पिया, प्रिय |
भुवंगम | भुजंग |
जालौं | जलाऊँ |
नेड़ा | निकट |
आँगणि | आँगन में |
तास | उस |
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