योजनाओं का जाल-"प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना" पर उठे सवाल
देश के कोने-कोने से किसान आत्महत्या की ख़बरें आ रही हैं। किसानो पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ता जा रहा है। जिसका एक प्रमुख कारण लगातार कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्रों में लगातार आमदनी में बढ़ता फासला है। पर्यावरण असंतुलन के कारण पिछले दो वर्षों में प्राकृतिक। आपदाओं की बारम्बारता भी आमदनी के इस अंतर को लगातार बढ़ा रही है। ऐसे समय में 28 फरबरी 2015 को बरेली की एक जनसभा में प्रधानमंत्री किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का वायदा कर चुके हैं।
आय को दोगुना करने के लिए सिंचाई की सुविधा को देश के 48 प्रतिशत असिंचित भूमि तक उपलब्ध कराना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने "प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना" के नाम से एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है,लेकिन इस योजना की गहन पड़ताल करने पर किसानों की आय को दोगुना करने के प्रधानमंत्री के दावे की पोल खुलती नज़र आ रही है। इस योजना के तहत 8,214 बड़े व् लघु सिचाई प्रोजेक्ट्स में से प्रमुख 99 परियोजनाओं को मार्च 2019 तक पूरा करने के लिए "एक्सेलरेटेड इरीगेशन बेनेफिट्स प्रोग्राम (ए आई बी पी)" की शुरुआत की गयी है। इन परियोजनाओं को तीन चरणों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। जिनमे से23 परियोजनाओं को पहले चरण के अंतर्गत मार्च 2017 तक करने का लक्ष्य रखा गया था, इन परियोजनाओं के माध्यम से 4,77 हज़ार हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर सिचाई की सुविधा को विस्तार करना था।
हैरानी की बात है कि पिछले दो वर्षों में मोदी सरकार ने इस परियोजनाओं पर कोई विशेष कार्य नहीं किया है। "ए आई बी पी" के एमआईएस से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर पिछले दो वर्षों में एक भी प्रोजेक्ट को पूरा नहीं करने की बात सामने आ रही है। ज्ञात हो कि इन 23 प्रोजेक्ट्स को पूरा करने का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2016 के आखिर में रखा गया था, जिसमें 8 राज्यों के कृषि भूमि को सिचाई की सुविधा उपलब्ध कराना था,इनमे से कई राज्य विगत एवं इस वर्ष भी गंभीर सूखे की चपेट में है।
इनमे से 6प्रोजेक्ट्स पर तो विगत 2 वर्षों में कोई प्रगति नहीं हुई है, जबकि 2 वर्ष पहले ही ये सभी प्रोजेक्ट्स 80 से 90 प्रतिशत तक तैयार थे। पहले चरण के 23 प्रोजेक्ट्स में से, जिनमे थोड़ी-बहुत प्रगति हुई वो भी 10 प्रतिशत से कम ही है। जिन अन्य परियोजनाओं को 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा या है उनकी प्रगति भी लगभग न के बराबर है।
किसानों के वर्तमान हालात एवं पर्यावरण के बदलते संदर्भ में और भी गंभीरता से सोचना होगा। सरकारों को अपने द्वारा किये जा रहे कार्यों की निगरानी करनी होगी। योजनाओं को भाषण एवं किताबों से निकालकर धरातल पर लाना होगा।
लेखकद्व्य - विकास एवं विष्णु सदस्य - "स्वराज अभियान"
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