माँ

माँ महज एक शब्द भर नही है अपितु एक अत्यंत विस्तृत आयाम है।मुझे आज तक किसी भी विषय पर कुछ लिखने में बहुत कठिनाई कभी नही हुई लेकिन जब भी मैं माँ के लिए कुछ लिखना चाहता हूं तो भावों के आवेग में शब्द साथ देना छोड़ देते हैं।हमेशा कलम ठिठक के ठहर जाती है और मैं हमेशा एक ही शब्द 'माँ' पर अटका रह जाता हूँ।
मेरे देश मे विडम्बना यह है कि जिन पदों को अत्यधिक सम्मान दिया जाता है उन्हें महज़ गुलदस्ते का फूल बना कर रख दिया जाता है।अकेला और अधिकार विहीन।वो पद चाहे राजनीति में राष्ट्रपति का हो या समाज में माँ का।
आज पूरा सोशल मीडिया पर माँ के लिए प्यार का गुबार उमड़ता नजर आ रहा है।शायद मैं भी वही करने वाला हूँ।लेकिन क्या किसी ने भी माँ के दायित्वों की प्रशंसा से इतर उसके अधिकारों को लेकर सजगता जाहिर है।
ख़ैर, एक छोटी सी कविता बहुत लम्बे प्रयास के बाद लिख पाया हूँ।वो आप सब के बीच में रख रहा हूँ!!!!!!

तुम मातृ रूप में व्याप्त अहा! मुझमें इतनी सामर्थ्य कहाँ।
तुमको शब्दों में बाँध सकूँ,अपनी साँसों से साध सकूँ।।

मुझपे इतना उपकार करो,जीवन मेरा कृतार्थ करो।
मेरे शब्दों में बँध जाओ,वीणा असाध्य सी सध जाओ।।

कुछ शब्द समर्पित हैं तुझको,आकाशपुष्प अर्पित तुझको।
भावों की सीमा  है   वृहत्तर ,माँ, पुत्रभाव अर्पित तुझको।।

तुम जीवन का आधार मेरे, व्यक्तित्व रूप का सार  मेरे।
तुमने खुद को सीमित करके,मुझको सौंपे अधिकार मेरे।।

तुमने मुझको जीवन देकर,जीवनपथ भी दिखलाया।
कैसे सोचूँ, कैसे बोलूँ,मानव बनना भी सिखलाया।।

माँ तुमने हमको सिखलाया है,सुख-दुख में सहभागी बनना।
हो रहा कठिन तो फर्क नहीँ, पर हँसकर सत्य मार्ग चुनना ।।

मेरे हर एक दर्द को अपना, हर पल है माना तूने।
मेरे माथे पर उभरी चिंता को, हर दम पहचाना तूने।।

मैं आभारी हूँ ईश्वर का,कि माँ  मैं तेरा जाया हूँ।
शब्द नही अब कहने को, बस इतना ही कह पाया हूँ।
शब्द नही अब कहने को,बस इतना ही कह पाया हूँ।।
#mothersday

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