बिहारी के दोहे-भावार्थ व प्रश्नोत्तरी
बिहारी के दोहे का अर्थ सहित-
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की उपर्युक्त पंक्तियों में कवि बिहारी जी ने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले रंग के वस्त्र ऐसे लग रहे हैं, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह-सुबह सूर्य की किरणें पड़ रही हों।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।।
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में बिहारी जी ने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का वर्णन किया है। वे यहाँ कहते हैं कि जंगल में पड़ रही भयंकर गर्मी के कारण एक-दूसरे की जान के प्यासे जंगली जानवर जैसे बाघ, सांप, मोर, हिरन आदि आपसी शत्रुता भूलकर तपस्वियों की तरह शांति से एकसाथ रह रहे हैं।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की उपर्युक्त पंक्तियों में गोपियाँ एक दूसरे से बातचीत करते हुए कह रहीं हैं कि हे सखी! हमने श्री कृष्ण से बात करने के लालच में उनकी मुरली छुपा ली है, ताकि उनका पूरा ध्यान हम पर रहे और हम उनसे प्रेम भरी बातें कर के सुख प्राप्त कर सकें। श्री कृष्ण तरह-तरह की कसमें देकर उनसे मुरली के बारे में पूछते हैं, लेकिन वे नहीं बताती। फिर जब श्री कृष्ण को यकीन हो जाता है कि गोपियों को मुरली के बारे में नहीं पता है, तब वे अपनी भौहें टेडी कर के हँसने लग जाती हैं। इस कारण, श्री कृष्ण को फिर से गोपियों पर संदेह हो जाता है।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने दो प्रेमियों के बीच इशारे से हो रही बातचीत का वर्णन किया है। कवि कह रहे हैं कि तमाम लोगों की भीड़ बीच में भी दो प्रेमी एक-दूसरे से आँखों ही आँखों के इशारों से इस तरह बात करते हैं कि दूसरे लोगों को पता भी नहीं चलता। इशारे-इशारे में ही प्रेमी अपनी प्रेमिका से कुछ पूछता है और प्रेमिका उसका उत्तर ना में दे देती है। जिससे प्रेमी रूठ जाता है और उसे मनाने के लिए प्रेमिका आँखों ही आँखों में इशारे करती हैं। जब दोनों की आँखें मिलती हैं, तो दोनों ही शर्मा जाते हैं।
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बिहारी जी ने जून के महीने में पड़ने वाली गर्मी का वर्णन किया है। कवि इन पंक्तियों में गर्मी की प्रचंडता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गर्मी इतनी भयंकर है कि छाया भी इस गर्मी से बचने के लिए छांव खोज रही है। वह इस गर्मी से बचने के लिए या तो घने जंगलों में कहीं छुप गई है या फिर किसी घर के अंदर चली गई है।
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने एक नायिका की विरह का वर्णन किया है, जो कि अपने प्रेमी से दूर है। वह अपने प्रियतम को अपनी स्थिति बता नहीं पा रही है। वह किसी कागज़ में प्रेम-पत्र लिख कर अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर पा रही है। उसे किसी को अपनी पीड़ा का संदेश भेजने में भी शर्म आ रही है। अंत में नायिका अपने प्रेमी से कहती है कि जिस तरह मेरा हृदय आपके लिए तरस रहा है, उसी तरह आपका हृदय भी मेरे लिए तड़प रहा होगा। इसलिए आप मेरे दिल की व्यथा अपने दिल से ही पूछ सकते हैं। वह आपको मेरे दिल के हाल के बारे में सब कुछ बता देगा।
प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि श्री कृष्ण से कहते हैं कि आप ने स्वयं ही चन्द्रवंश में जन्म लिया और ब्रज आकर बस गए। जहाँ उन्हें सब केशव कह कर बुलाते थे। बिहारी जी के पिता का नाम केशवराय था। इसीलिए कवि श्री कृष्ण को पिता समान मानते हुए, उनसे अपने सभी दुःख हरने की विनती करते हैं।
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने धार्मिक आडंबरों के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने पर ज़ोर दिया है। उनके अनुसार अगर आपका मन स्थिर नहीं है, तो हाथ में माला लेकर, माथे पर तिलक लगाकर एवं भगवान का नाम लिखे वस्त्र पहनकर बार-बार राम-राम चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होगा। कवि के अनुसार मन तो कांच की तरह ही कोमल होता है, जो इधर-उधर की बातों में भटकता रहता है। अगर हम अपने मन को स्थिर करके ईश्वर की आराधना करें, तब ही हम सच्चे भक्त कहलाने के लायक हैं।
प्रश्न 1. छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
उत्तर. जेठ के माह की दोपहर में हर ओर भयंकर गर्मी होती है। सूरज की तपती किरणें हर तरफ फैली रहती हैं, जिससे धरती मानो जलने लगती है। ऐसे में छाया कहीं भी दिखाई नहीं देती है, ऐसा लगता है, मानो वो भी इस प्रचंड धूप से बचने के लिए कहीं छाया में छिप गयी है।
2. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. बिहारी की नायिका अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही है, जिसकी वजह से उसकी आँखों से आँसू बह रहे हैं और उसके हाथ कांप रहे हैं। वो कागज़ पर अक्षर भी लिख नहीं पा रही है और किसी अन्य के हाथों अपने पिया को संदेश भिजवाने में उसे शर्म आती है। नायिका अपने मन में सोचती है कि हमारा प्रेम सच्चा और निश्छल है। मेरे प्रियतम के मन में भी मेरे लिए इतना ही प्रेम है, इसलिए मुझे उनसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। वे तो मेरे हृदय के भावों को बिना कहे ही, अपने हृदय से समझ जाएंगे।
प्रश्न 3. सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. बिहारी के दोहे में वे कहते हैं कि माला जपने, तिलक लगाने और मुख से हर पल राम नाम रटने से किसी को ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है। ईश्वर को पाना है, तो खुद को धार्मिक आडंबरों, छल-कपट, क्रोध-वासना जैसे अवगुणों से दूर करो और अपना मन पवित्र व सच्चा बनाओ। जब तुम्हारा मन पवित्र होगा, तो उसमें ईश्वर खुद-ब-खुद आकर बस जाएंगे। फिर तुम्हें माला जपने, राम-राम रटने और तिलक लगाने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी।
प्रश्न 4. गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?
उत्तर. गोपियाँ श्रीकृष्ण के पास आकर उनसे बात करना चाहती हैं और उनके मुख की दिव्य आभा को अपने मन में समेट कर रख लेना चाहती हैं। मगर, श्रीकृष्ण को अपनी बाँसुरी सभी से ज्यादा प्रिय है और वो हर पल उसे बजाने में व्यस्त और मस्त रहते हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी को छिपा लेती हैं। वो सोचती हैं कि जब कान्हा के पास मुरली ही नहीं रहेगी, तो फिर वो हमसे ज़रूर बात करेंगे। इस तरह गोपियाँ कान्हा की बाँसुरी छिपा लेती हैं।
प्रश्न 5. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर. कवि बिहारी जी ने बताया है कि प्रेम को शब्दों में व्यक्त करने की ज़रूरत नहीं है। सभी लोगों की स्थिति में भी संकेतों यानी इशारों की मदद से बात की जा सकती है। बिहारी जी ने अपने दोहे में बताया है कि कैसे प्रेमी इशारा करके प्रेमिका से मिलने के लिए कहता है, प्रेमिका कुछ कहे बिना इशारे से ही उसे मिलने के लिए मना कर देती है। उसके मना करने की अदा पर प्रेमी मुग्ध हो जाता है, जिससे प्रेमिका खीज जाती है। फिर दोनों की नजरें मिल जाती हैं, जिससे प्रेमी ख़ुश हो जाता है और प्रेमिका शरमा जाती है।
Bihari Ke Dohe Ncert Solutions for Class 10 Hindi Sparsh- निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –
1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
उत्तर. बिहारी के दोहे से ली गई इस पंक्ति में कवि ने श्रीकृष्ण की तुलना नीलमणि पर्वत से करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण के नील शरीर पर शोभित पीताम्बर ऐसा लग रहा है, मानो नीलमणि पर्वत पर सवेरे का सूरज का उजाला चमक रहा हो।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
उत्तर. बिहारी के दोहे पाठ की इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु की भयानक तपिश से सारा जंगल तपोवन की भांति पवित्र हो गया है। अब सभी एक-दूसरे के साथ हिल-मिलकर रहे हैं और यहां हिंसा का कोई निशान नहीं है। शेर-हिरण, साँप-मोर जैसे परम शत्रु भी गर्मी की वजह से एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं कर रहे हैं, मानो वो सभी मिलकर कोई तप कर रहे हों। इस पंक्ति में कवि ने हमें यह सीख दी है कि मुसीबत के समय में हम सभी को अपने आपसी वैर भूल जाने चाहिए और मिल-जुलकर रहना चाहिए।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
उत्तर. इस दोहे में बिहारी जी कह रहे हैं कि केवल माला जपने, तिलक लगाने और छाप पहनने जैसे बाहरी पाखंडों से कोई काम पूरा नहीं होता है और ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है। ईश्वर को पाने के लिये हमें सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है और सच्ची भक्ति तो श्रद्धा, सच्ची लगन और मन की सच्चाई व पवित्रता से मिलती है। सच्चे मन में ही ईश्वर रहते हैं, इसलिए उन्हें पाने के लिए हमें धार्मिक आडंबर करने के बजाय मन को निर्मल बनाने पर देना चाहिए।
दूसरे शब्दों में, कवि यहाँ हमें धार्मिक ढोंग-पाखंडों से दूर रहने और सच्चे मन से प्रभु को भक्ति करने की शिक्षा दे रहे हैं।
Thnks for answers.
ReplyDeleteWah ji wah maja aa gaya
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