अनुच्छेद लेखन
अनुच्छेद-लेखन की परिभाषा -
किसी एक भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए लिखे गये सम्बद्ध और लघु वाक्य-समूह को अनुच्छेद-लेखन कहते हैं।
दूसरे शब्दों में - किसी घटना, दृश्य अथवा विषय को संक्षिप्त (कम शब्दों में) किन्तु सारगर्भित (अर्थपूर्ण) ढंग से जिस लेखन-शैली में प्रस्तुत किया जाता है, उसे अनुच्छेद-लेखन कहते हैं।
'अनुच्छेद' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Paragraph' शब्द का हिंदी पर्याय है। अनुच्छेद 'निबंध' का संक्षिप्त रूप होता है। इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 100 से 120 शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए जाते हैं।
अनुच्छेद अपने-आप में स्वतन्त्र और पूर्ण होते हैं। अनुच्छेद का मुख्य विचार या भाव की कुंजी या तो आरम्भ में रहती है या अन्त में। एक अच्छे अनुच्छेद-लेखन में मुख्य विचार अन्त में दिया जाता है।
अनुच्छेद लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए -
(1) अनुच्छेद लिखने से पहले रूपरेखा, संकेत-बिंदु आदि बनानी चाहिए। (कुछ प्रश्न-पत्रों में पहले से ही रूपरेखा, संकेत-बिंदु आदि दिए जाते हैं। आपको उन्हीं रूपरेखा, संकेत-बिंदु आदि को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद लिखना होता है।)
(2) अनुच्छेद में विषय के किसी एक ही पक्ष का वर्णन करें। (ऐसा इसलिए करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि अनुच्छेद में शब्द सीमित होते हैं और हमें अनुच्छेद संक्षेप में लिखना होता है।)
(3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए। ताकि समीक्षक या पढ़ने वाला आपके अनुच्छेद से प्रभावित हो सके।
(4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएँ। क्योंकि एक ही बात को बार-बार दोहराने से आप अपने अनुच्छेद को दिए गए सिमित शब्दों में पूरा नहीं कर पाएँगे और अपने सन्देश को लोगों तक नहीं पहुँचा पाएँगे।
(5) अनावश्यक विस्तार से बचें, लेकिन विषय से न हटें। आपको भले ही संक्षेप में अपने अनुच्छेद को पूरा करना है, परन्तु आपको ये भी ध्यान रखना है कि आप अपने विषय से न भटक जाएँ।
(6) शब्द-सीमा को ध्यान में रखकर ही अनुच्छेद लिखें। ऐसा करने से आप अपने अनुच्छेद में ज्यादा-से-ज्यादा महत्वपूर्ण बात लिखने की ओर ध्यान दे पाएँगे।
(7) पूरे अनुच्छेद में एकरूपता होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कही कोई बात विषय से अलग लगे और पढ़ने वाले का ध्यान विषय से भटक जाए।
(8) विषय से संबंधित सूक्ति अथवा कविता की पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकते हैं। इससे आपका अनुच्छेद बहुत अधिक प्रभावशाली और रोचक लगेगा।
(9) अनुच्छेद के अंत में निष्कर्ष समझ में आ जाना चाहिए यानी विषय समझ में आ जाना चाहिए।
अनुच्छेद की प्रमुख विशेषताएँ -
(1) अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता है। इसमें अन्य विचार नहीं रहते।
(2) अनुच्छेद के वाक्य-समूह में उद्देश्य की एकता रहती है। अप्रासंगिक बातों को हटा दिया जाता है। केवल बहुत अधिक महत्वपूर्ण बातों को ही अनुच्छेद में रखा जाता है।
(3) अनुच्छेद के सभी वाक्य एक-दूसरे से गठित और सम्बद्ध होते है। वाक्य छोटे तथा एक दुसरे से जुड़े होते हैं।
(4) अनुच्छेद एक स्वतन्त्र और पूर्ण रचना है, जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं होता।
(5) उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका आरम्भ, मध्य और अन्त आसानी से व्यक्त हो जाए और किसी को भी समझने में कोई परेशानी न हो।
(6) अनुच्छेद सामान्यतः छोटा होता है, किन्तु इसकी लघुता या विस्तार विषयवस्तु पर निर्भर करता है। लेखन के संकेत बिंदु के आधार पर विषय का क्रम तैयार करना चाहिए।
(7) अनुच्छेद की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।
अनुच्छेदों के कुछ उदाहरण
(1)समय किसी के लिए नहीं रुकता
'समय' निरंतर बीतता रहता है, कभी किसी के लिए नहीं ठहरता। जो व्यक्ति समय के मोल को पहचानता है, वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है। समय बीत जाने पर किए गए कार्य का कोई फल प्राप्त नहीं होता और पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं आता। जो विद्यार्थी सुबह समय पर उठता है, अपने दैनिक कार्य समय पर करता है तथा समय पर सोता है, वही आगे चलकर सफल व उन्नत व्यक्ति बन पाता है। जो व्यक्ति आलस में आकर समय गँवा देता है, उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। संतकवि कबीरदास जी ने भी अपने दोहे में कहा है -
''काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होइगी, बहुरि करेगा कब।।''
समय का एक-एक पल बहुत मूल्यवान है और बीता हुआ पल वापस लौटकर नहीं आता। इसलिए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक विद्यार्थी को नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिए। जो समय बीत गया उस पर वर्तमान समय में सोच कर और अधिक समय बरबाद न करके आगे अपने कार्य पर विचार कर-लेना ही बुद्धिमानी है।
2-प्रातःकालीन भ्रमण
संकेत बिंदु
1-प्रकृति से संपर्क
2-शारीरिक व्यायाम
3-सेहत के लिए उपयोगी एवं लाभदायक
मनुष्य के लिए प्रात:काल की सैर जितनी सुखदायक व रोमांचकारी होती है उतनी ही स्वास्थ्यवर्धक भी । व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रात:कालीन भ्रमण अत्यंत आवश्यक है । यह शरीर में नवचेतना व स्कूर्ति का संचार करता है ।
शहरों एवं महानगरों में प्रात:कालीन भ्रमण के लिए जगह-जगह पर हरे-भरे पेड़-पौधों से युक्त पार्क बनाए गए हैं । जहाँ पर पार्क की सुविधा नहीं होती है वहाँ लोग सड़कों के किनारे पर लगे वृक्षों के समीप से होकर टहलते हैं । गाँवों में इस प्रकार की समस्या नहीं होती है । वहाँ शहरों की भाँति मोटरगाड़ियाँ नहीं होतीं अत: जिस और निकल जाएँ उधर ही शुद्ध वायु प्राप्त होती है ।सभी जानते हैं कि हमारे लिए ऑक्सीजन बहुत महत्वपूर्ण है । दिन के समय तो यह मोटरगाड़ियों आदि के धुएँ से मिलकर प्रदूषित हो जाती है । दोपहर व अन्य समय में शुद्ध ऑक्सीजन का मिलना दुष्कर होता जा रहा है । अत: प्रात:काल सर्वथा उपयुक्त होता है । प्रात:कालीन भ्रमण से मनुष्य अधिक मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन ग्रहण करता है । इससे शरीर में उत्पन्न अनेक विकार स्वत: ही दूर हो जाते हैं ।
प्रातःकालीन भ्रमण शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूपों में यह स्वास्थ्यवर्धक है । चिकित्साशास्त्रियों की राय है कि बीमार वृद्ध तथा अन्य लाचार व्यक्ति यदि व्यायाम के अन्य रूपों को नहीं अपना पाते हैं तो वे प्रात:काल की सैर कर अपना काम चला सकते हैं । इस सैर से शरीर के बिगड़े हुए आंतरिक अवयवों को सही ढंग से कार्य करने में बहुत मदद मिलती है।साथ ही साथ शरीर की मांसपेशियाँ भी कार्यरत हो जाती हैं तथा रक्त का संचार सामान्य हो जाता है । इसके फलस्वरूप मनुष्य आंतरिक रूप से अच्छे स्वास्थ्य एवं चैतन्यता का अनुभव करता है । उच्च रक्तचाप, पेट की समस्याएँ, मधुमेह आदि रोगियों को चिकित्सक खूब सैर करने या पैदल चलने की सलाह देते हैं । मधुमेह को नियंत्रित करने की तो यह रामबाण दवा है ।
3-शिक्षा का बदलता स्वरूप
आज शिक्षक दिवस है, मतलब शिक्षा और शिक्षकों के योगदान और महत्व को समझने का दिन। पर आज जब शिक्षा का पूरा तंत्र एक बड़े व्यवसाय में तब्दील हो रहा है, क्या हम शिक्षा और शिक्षक की गरिमा को बरकरार रख पाए हैं? वास्तव में पूंजीवादी विश्व के बदलते स्वरूप और परिवेश में हम शिक्षा के सही उद्देश्य को ही नहीं समझ पा रहे है। सही बात तो यह है कि शिक्षा का सवाल जितना मानव की मुक्ति से जुड़ा है उतना किसी अन्य विषय या विचार से नहीं। एक बार देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्र्वविद्यालय मे भाषण देते हुए कहा था कि शिक्षा और मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है। पर जब मुक्ति का अर्थ ही बेमानी हो जाए, उसका लक्ष्य सर्वजन हिताय की परिधि से हटकर घोर वैयक्तिक दायरे में सिमट जाए तो मानव-मन स्व के निहितार्थ ही क्रियाशील हो उठता है और समाज में करुणा की जगह क्रूरता, सहयोग की जगह दुराव, प्रेम की जगह राग-द्वेष व प्रतियोगिता की भावना ले लेती है।
इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का तेजी से ह्रास होता जा रहा है, समाज में सहिष्णुता की भावना लगातार कमजोर पड़ती जा रही है और गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है। डॉ. राधाकृष्णन का पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। वह शिक्षा में मानव के मुक्ति के पक्षधर थे। वह कहा करते थे कि मात्र जानकारियां देना शिक्षा नहीं है। करुणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। शिक्षा की दिशा में हमारी सोच अब इतना व्यावसायिक और संकीर्ण हो गई है कि हम सिर्फ उसी शिक्षा की मूल्यवत्ता पर भरोसा करते हैं और महत्व देते हैं जो हमारे सुख-सुविधा का साधन जुटाने में हमारी मदद कर सके, बाकी चिंतन को हम ताक पर रखकर चलने लगे हैं।
अंततः हम कह सकते हैं कि आज की शिक्षा केवल और केवल मशीन के रूप में लोगों को परिवर्तित कर रही है ना कि उन्हें इंसान बना रही है।
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