बेरोजगार युवा-बदहाल भविष्य

बेरोजगार युवा-बदहाल भविष्य


कहने  को तो हमारा देश सबसे युवा देश है लेकिन देश के युवा वर्ग के लिए सबसे अहम सवाल यह है कि उन्हें उनकी योग्यता के हिसाब से रोजी-रोजगार मिले.शायद इसीलिए रोजगार का मुद्दा हर चुनाव में अहम मुद्दा होता है.पिछले लोकसभा चुनावों में इस मुद्दे को बीजेपी ने चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया और मोदी जी ने अपनी रैलियों में पच्चीस करोड़ रोजगार पैदा करने का लालच देकर  युवाओं के वोट बैंक में भयानक सेंधमारी की. जिस युवा शक्ति के वोट के दम पर मोदी जी प्रधानमंत्री बने वही युवा शक्ति एक अदद नौकरी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है।यह एक कड़वा सच है कि प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के कारण सबसे अधिक आत्महत्याओं का कलंक भी हमारे माथे पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन 26 युवा आत्महत्या करते हैं जिसका मुख्य कारण बेरोजगारी की गंभीर समस्या है.अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, भारत सरकार और विभिन्न एजेंसियों के ताजा सर्वेक्षण और रपट इस ओर इशारा करते हैं कि देश में बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ा है.चिंता का विषय यह है कि  जिन युवाओं के दम पर हम भविष्य की मजबूत इमारत की आस लगाए बैठे हैं वर्तमान सरकार उसकी  नींव को कमजोर करने पर तुली हुई है.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों वाला  देश बन गया है.आईएलओ के अनुसार वर्ष 2019 में देश में बेरोजगारों की संख्या 1.89 करोड़ हो  जाएगी जो कि अभी 1.86 करोड़ है. इस समय देश की 11 फीसदी आबादी बेरोजगार है यानी देश में लगभग 12 करोड़ लोग बेराजगार हैं। इसके अलावा पिछले चार साल में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने चौंकाने वाला  खुलासा किया है कि साल 2019 आते-आते देश के तीन चौथाई कर्मचारियों और प्रोफेशनल्स पर नौकरी का खतरा मंडराने लगेगा या फिर उन्हें उनकी काबिलियत के मुताबिक काम नहीं मिलेगा।.आईएलओ के अनुसार वर्तमान में भारत में जो करीब 53.4 करोड़ काम करने वाले लोग हैं उनमें से करीब 39.8 करोड़ लोगों को उनकी योग्यता के हिसाब से रोजी-रोजगार नहीं मिलेगा. वैसे तो 2017-19 के बीच बेरोजगारी की दर 3.5 फीसदी के आसपास रहने का अनुमान है, लेकिन 15 से 24 साल के आयुवर्ग में यह प्रतिशत बहुत ज्यादा है.आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 15 से 24 आयु वर्ग वाले युवाओं का बेरोजगारी प्रतिशत 10.5 फीसदी था जो 2019 आते-आते 10.7 फीसदी पर पहुंच सकता है। महिलाओं के मोर्चे पर तो हालत और खराब है। रिपोर्ट कहती है कि बीते चार साल में महिलाओं की बेरोजगारी दर 8.7 तक पहुंच गई है।
मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे में यह बात सामने आई कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्चस्तर पर पहुंच गई है। हर रोज 550 नौकरियां कम हुई हैं और स्वरोजगार के मौके भी तेजी से घटे हैं.सरकारी क्षेत्र में रोजगार हासिल करने के लिए बेरोजगार युवाओं को आज कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है, यह बात किसी से छिपी नहीं है. लाखों बेरोजगार युवाओं को आवेदन करने के एवज में आवश्यकता से अधिक आवेदन राशि देनी पड़ रही है. आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं के लिए इस “बेरोजगार युग” में रुपए जुटाना कोई आसान काम नहीं । सरकार द्वारा की जाने वाली भर्तियों में पदों की संख्या बेरोजगारों की भीड़ को देखते हुए ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है। इसके बावजूद लाखों युवाओं द्वारा दिया गया आवेदन शुल्क सरकार के खजाने में जमा हो जाता है।देश में बेरोजगारी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पढ़े-लिखे लोगों में बेरोजगारी के हालात ये हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद के लिए प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले और इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी भी आवेदन करते हैं। रोजगार के मोर्चे पर हालात विस्फोटक हो गए हैं। सरकार को चाहिए कि इस मसले पर वह गंभीरता से विचार करे। घोषित तौर पर सरकारी योजनाएं बहुत हैं, मगर क्या उन पर ईमानदारी से अमल हो पाता है? इसकी जांच करने वाला कोई नहीं। करोड़ों-अरबों रुपए खर्च करने से कुछ नहीं होगा, जब तक जमीनी स्तर पर कोई ठोस नतीजा नहीं सामने आता।
सवाल यह भी है कि इन हालातों में आखिर देश के युवा कहां जाएं, क्या करें, जब उनके पास रोजगार के लिए मौके नहीं हैं, समुचित संसाधन नहीं हैं, योजनाएं सिर्फ कागजों में सीमित हैं। पहले ही नौकरियों में खाली पदों पर भर्ती पर लगभग रोक लगी हुई है, उस पर बढ़ती बेरोजगारी आग में घी का काम कर रही है। पढ़े-लिखे लोगों की डिग्रियां आज रद्दी हो गई हैं, क्योंकि उन्हें रोजगार नहीं मिलता.सरकार को इस मसले को गंभीरता से लेते हुए नए रोजगारों का सृजन करना चाहिए.युवा देश का भविष्य है तो भविष्य को  अधर में क्यूँ लटकाया जा रहा है ?वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के आधार पर 1 मार्च 2016 तक चार लाख से अधिक पद खाली पड़े थे. ये सारे पद केंद्र सरकार के विभागों से संबंधित हैं.इस खबर से  नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं को चिंता में डाल दिया है . अब ये नौजवान क्या करेंगे,इन नौजवानों ने आख़िर क्या गलती कर दी? बहुत-सी परीक्षाएं हो चुकी हैं मगर जॉइनिंग नहीं हो रही है.कायदे की बात तो तब होती जब खाली पड़े पदों पर भर्ती होती मगर नौजवानों को  हिंदू-मुस्लिम डिबेट में उलझाकर उन्हें  बौद्धिक गुलाम बना लिया है.वर्तमान सरकार का तानाशाही मिज़ाज देखिये कि जिस समय रोज़गार सबसे अहम मुद्दा बना हुआ है उसी समय उसने पुरानी भर्तियाँ ख़ारिज करने का फ़ैसला सुना दिया.
बेरोजगारी  हजार घावों  वाली मौत है और भारत के युवा को इस मौत लाखों बार मरना पड़ता है। आज देश में नौकरी नहीं हैं और लाखों युवा  सड़कों पर इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं।मोदी सरकार ने नौकरी की रिक्तियों के लिए राष्ट्रीय करियर सेवा पोर्टल बनाया.
इस पोर्टल पर पर तीन साल 2015-16 से 2017-18 में,  861,391 रिक्तियों का विवरण दिया गया ,जबकि नौकरी खोजने वालों की संख्या 4.2 करोड़ थी.इससे पता चलता है कि प्रत्येक नौकरी पर 50 लोग आवेदन का रहे हैं जो कि चिंता का विषय है.पिछले चार वर्षों में नौकरियाँ पैदा करने के जुमले लगातार जनता के बीच आ रहे हैं जो कि सच्चाई से कोसों दूर हैं.उदाहरण के लिए, वित्त मंत्री जेटली ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि इस वर्ष 70 लाख नौकरियां पैदा होंगी, मगर कब और  कैसे? ये बात न तो वे जानते हैं और न ही जनता.

बेरोजगारी का फंदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले में कसता जा रहा है इसलिए अब अच्छे दिनों, हर खाते में 15 लाख रुपए, पाकिस्तानी सैनिकों के सिर काट कर लाने जैसे झूठे वादों की तरह अब विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में भारतीयों को नौकरी देने के विज्ञापन भी छपवाए जा रहे हैं.पहले के समय में अखबार नए उद्योगों, नई कंपनियों, नए उत्पादनों की खबरों से भरे रहते थे लेकिन आजकल भगोड़ी कंपनियां ही सुर्खियों में हैं. ऐसी कंपनियों के चलते रोजगार और कम होंगे.कृषि मंडियों से ले कर आईटी कंपनियों तक हर क्षेत्र में सन्नाटा सा है.नोटबंदी और जीएसटी के तुगलकी फरमान के बाद उद्योगों पर भय की एक तलवार लटक रही  है कि कल न जाने क्या होगा. सरकार की गलत और अदूरदर्शी नीतियों के कारण औद्योगिक विकास  धीमा पड़ गया है, निर्यात कम हो गया है, ग्रामीण रोजगार सृजन ख़राब स्थिति में है.ऐसे हालात में  देश की जीडीपी में वृद्धि के बावजूद, विनिर्माण,कृषि, खनन आदि कई क्षेत्रों में श्रमिक विकास दर में  भयंकर गिरावट आई है।

सरकारी वादे असल में पंडों जैसे वादे साबित हो रहे हैं कि यजमान, बस, तुम दानपुण्य करते रहो, भगवान झोली भरेंगे. बेरोजगारों से कहा जा रहा है कि तुम एप्लीकेशनें और उन की फीस भरते रहो और ऊपर से नौकरियों के टपकने का इंतजार करते रहो.कठिनाई यह है कि अब शिक्षा महंगी हो गई. पहले सस्ती सरकारी शिक्षा के बाद कम वेतन वाली नौकरी करने में दिक्कत नहीं होती थी. अब लगता है कि यदि लाखों रुपए खर्च कर ऊंची पढ़ाई करने के बाद भी कुछ विशेष नहीं मिला तो क्या लाभ? नौकरियों के अवसर देना किसी भी देश की सरकार के लिए कठिन होता  है लेकिन भारत सरकार के लिए यह टेढ़ी खीर साबित हो रही  है. हां, अगर पूजापाठ की नौकरियां चाहिए तो शायद बहुत अवसर हैं क्योंकि देश में कारखाने बने नहीं, मंदिर जरूर बन रहे हैं.चूंकि मोदी का कार्यकाल 2019 में खत्म हो रहा है, इसलिए देश का युवा एक ऐसे  नेतृत्व की  तलाश में है  जो युवा हो और युवामन को बखूबी समझ सके और उनके हित में निर्णय ले सके.


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