वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा सिद्धांत

वडर्सवर्थ का काव्य-भाषा-सिद्धांत

परिचयः विलियम वर्ड्सवर्थ  (1770-1850), मूलतः कवि, उनमें एक सहज सौंदर्यबोध औरअबाधिक भाव-प्रवणता थी। परिस्थितिवशकाव्यालोचन के क्षेत्र में प्रवेश। 1790 में फ्रांस, इटली और आल्पस पर्वत की पैदल यात्रा।आल्पस की प्राकृतिक सुषमा से उनकी सौंदर्यभावना प्रभावित। फ्रांस की राज्य क्रांति केपरिणामों से इनकी आलोचना प्रभावित है।

काव्य- भाषा- सिद्धांत:

ऽ          18वी शताब्दी के अंत में कवियों कीशैली रूढ़ और निरूपयोगी हो गई थी।

वर्ड्सवर्थ ने तो परंपरागत भाषा-शैली का औरभी तीव्र विरोध किया। आधुनिक

युग में जिस प्रकार टी.एस.इलियट और एजरापाडंड ने बोलचाल की भाषा के

प्रयोग का समर्थन किया, वैसे वर्ड्सवर्थ नेअपनी प्राकृतिक और स्वाभाविक भाषा

शैली का समर्थन किया। वर्ड्सवर्थ काव्यगतयुक्तियों, मानवीकरण, वक्रोक्ति

तथा पौराणिक दंत कथाओं, भावाभास आदिको काव्य के लिए उपयुक्त नहीं

मानते।

ऽ          18वीं शती में नव-अभिजात्यवादी युगमें भाषा के निम्न और उच्च दो रूप

प्रचलित थे। दैनिक जीवन की भाषा को निम्नकहा जाता था, दूसरी उच्च भाषा

जो कृत्रिम, बोझिल और आडंबरपूर्ण हो गई थीवर्ड्सवर्थ ने इसक त्याग किया।

ऽ          स्वछंदतावादी कवि विलियम वर्ड्सवर्थके काव्य रचना संबंधी विचार विशेष रूप

से इनके प्रिफेस टु लिरिकल बैलेउ्स में प्राप्तहोते हैं। नए और मौलिक तथा

पूर्ववर्ती विचारों से अलग विचार।

ऽ          अच्छी कविता जोरदार भावनाओं कीसहज और स्वतः स्फूर्त उद्गार होती है।

ऽ          कविता के लिए विषय भी महत्त्वपूर्ण।

ऽ          काव्य में जनसामान्य में प्रचलित भाषाके प्रयोग पर बल।

ऽ          अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हो परयांत्रिक ढंग पर उनकी भरमार नहीं।

ऽ          कवि की दृष्टि में मानव और प्रकृतितत्त्वतः एक दूसरे के लिए ही हैं और

मानव मन, प्रकृति के सुंदर और रोचक गुणों कादर्पण है। इसी प्रकार कविता

ज्ञान का सूक्ष्म तत्त्व और उसका प्राण-वायु है।ज्ञान का आरंभ और अंत

कविता ही है। इस प्रकार वर्ड्सवर्थ के काव्यसंबंधी विचार भावुकतापूर्ण होते

हुए भी व्यावहारिक और तत्त्वपूर्ण हैं।

ऽ          अन्य काव्य तत्त्वों की भांति ही भाषा केविषय में भी वर्ड्सवर्थ कृत्रिमता एवं

जटिलता की अपेक्षा भाषा के सारल्य तथास्वाभाविकता से ओत-प्रोत रूप का

ही समर्थन किया। यही कारण है कि उन्होंने गद्यभाषा का भी पक्षपात किया है।

ऽ          वर्ड्सवर्थ भाषा में सरलता के पक्षपातीतो हैं किंतु उनका यह मत बिल्कुल नहीं

कि काव्य भाषा ग्राम्यत्व दोष से दूषित किंवाअटपटी हो।

ऽ          वर्ड्सवर्थ ने स्पष्ट किया कि जो कविजनसामान्य के लिए काव्य सर्जन में प्रवर्त्त होताहै, उसे कभी भी कृत्रिम एवं कल्पित भाषा कीछूट नहीं दी जा सकती। वे यह भी मानते हैं कियद्यपि कवि विशुद्ध रूप से जन भाषा में कवितानहीं कर सकता, फिर भी उसे काव्य भाषा काचयन जनभाषा से करके ही सदा उससे नैकट्यसंबंध स्थापित रखना चाहिए। चुनाव करतेसमय काव्य के लिए आवश्यक परिमार्जन एंवपरिवर्तन का अधिकार तो उसे रहता ही है।

ऽ          वर्ड्सवर्थ का मानना है कि ग्रामीणअपनी निम्न स्थिति के कारण सामाजिक गर्व सेमुक्त होकर सरल स्वाभाविक अभिव्यक्ति करतेहैं। उनकी वाणी में सच्चाई तथा भावों मेंसरलता होती है।

ऽ          गद्य-पद्य में या गद्य और छन्दोबद्धरचाना में कोई तात्विक भेद नहीं हो सकता।वर्ड्सवर्थ की भाषा संबंधी इस अतिवादीमान्यता का परंपरा तथा वास्तविकता के साथस्पष्ट विरोध है। गद्य-पद्य का अंतर केवल छंद केकारण नहीं होता, अपितु वाक्य विन्यास, पदचयन आदि के कारण होता है।

ऽ          वर्ड्सवर्थ का मानना है कि प्राचीनकवियों ने वास्तविक घटनाओं से उद्बुद्ध भावोंका आधार लेकर काव्य रचना की। चूंकि उनकीअनुभूति और भाव प्रबल थे, इसलिए सहज हीउनकी भाषा प्रभावी और अलंकृत हो गई। बादके कवि यश की कामना से काव्य रचना करनेलगे, जिससे भाषा में कत्रिमता आ गई। एकपीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हाथ में जाकर भाषाजटिल,कत्रिम और वागडिम्बयुक्त हो गई। ऐसीभाषा को वर्ड्सवर्थ ने त्याज्य बताया।

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