पतझड़ में टूटी पत्तियाँ/Patjhad me tuti pattiyan-रवींद्र केलकर/Ravindra Kelekar


सारांश-गिन्नी का सोना

गिन्नी का सोना अंश का उद्देश्य जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगो से परिचित करवाता है जो इस संसार को सब के लिए जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।

लेखक कहते हैं कि शुद्ध सोने में और सोने के सिक्के में बहुत अधिक फर्क होता है, सोने के सिक्के में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है, जिस कारण अधिक चमक आ जाती है और यह अधिक मज़बूत भी होता है। औरतें अकसर उन्हीं सोने के सिक्कों के गहनें बनवाती हैं। लेखक कहते हैं कि किसी व्यक्ति का जो उच्च चरित्र होता है वह भी शुद्ध सोने की तरह होता है उसमें कोई मिलावट नहीं होती। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने चरित्र में ताँबा अर्थात मिलावटी व्यवहार मिला देते हैं, उन्ही लोगों को सभी लोग व्यावहारिक आदर्शवादी कह कर उनका गुणगान करते हैं। लेखक हम सभी को ये बताना चाहते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्णन कभी भी आदर्शों का नहीं होता, बल्कि आपके व्यवहार का होता है। कुछ लोग कहते हैं कि गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। यदि गाँधी जी अपने आदर्शो को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। जो लोग केवल अपने व्यवहार पर ही ध्यान देते हैं, केवल वैज्ञानिक ढंग से ही सोचते हैं, वे व्यवहारवादी लोग कहे जाते हैं और ये लोग हमेशा चौकाने रहते हैं कि कहीं इनसे कोई ऐसा काम न हो जाए जिसके कारण इनको हानि उठानी पड़े। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगो ने किया है। हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगो के कारण ही बच पाए हैं।

सारांश-झेन की देन


झेन की देन,बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिन भर के कामों के बीच भी कुछ चैन भरे या सुकून के पल हासिल कर ही लेते हैं।
लेखक ने जब अपने जापानी मित्र से वहाँ की सबसे खतरनाक बीमारी के बारे में पूछा तो उसने कहा कि जापान के लोगों को सबसे अधिक मानसिक बीमारी का शिकार होना पड़ता है। लेखक के इस मानसिक बिमारी की वजह पूछने पर लेखक के मित्र ने उत्तर दिया कि उनके जीवन की तेजी औरों से अधिक है। जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। यही कारण है कि जापान के लोगो में मानसिक बिमारी फैल गई है।
लेखक कहते हैं कि एक शाम को उनका जापानी दोस्त उन्हें चा-नो-यू अर्थात जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन में ले गया। लेखक और उनका मित्र चाय पिने के आयोजन के लिए जहाँ गए थे वह एक छः मंजिल की इमारत थी। उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक पानी भरा हुआ बरतन था। लेखक और उनके मित्र ने उस पानी से हाथ-पाँव धोकर अंदर गए। अंदर चाय देने वाला एक व्यक्ति था जिसे चानीज कहा जाता है। उन्हें देखकर वह खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए।

 

ये सारा काम उस व्यक्ति ने बड़े ही सलीके से पूरा किया और उसकी हर एक मुद्रा या काम करने के ढंग से लगता था कि जैसे जयजयवंती नाम के राग की धुन गूँज रही हो। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी।

लेखक कहते हैं कि चाय बनाने वाले ने चाय तैयार की और फिर उन प्यालों को लेखक और उनके मित्रों के सामने रख दिया। जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है।

लेखक हमें बताना चाहते हैं कि हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। जो समय अभी चल रहा है वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। लेखक कहते हैं कि जीना किसे कहते यह उनको चाय समारोह वाले दिन मालूम हुआ। जापानियों को ध्यान लगाने की यह परंपरा विरासत में देन में मिली है।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर-
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग होता है, क्योंकि गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है इसलिए | वह ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने से मज़बूत भी होता है। शुद्ध सोने में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होती।

प्रश्न 2.
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट उन्हें कहते हैं जो आदर्शों को व्यवहारिकता के साथ प्रस्तुत करते हैं। इनका समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है क्योंकि ये कई बार आदर्शों से पूरी तरह हट जाते हैं और केवल अपने हानि-लाभ के बारे में सोचते हैं। ऐसे में समाज का स्तर गिर जाता है।

प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर-
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श वे हैं, जिनमें व्यावहारिकता का कोई स्थान न हो। केवल शुद्ध आदर्शों को महत्त्व दिया जाए। शुद्ध सोने में ताँबे का मिश्रण व्यावहारिकता है, तो इसके विपरीत शुद्ध सोना शुद्ध आदर्श है।

प्रश्न 4.
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर-
दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने से वह दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है। जापान के लोग पूर्ण रूप से प्रतिस्पर्धा में हैं, वे किसी भी तरीके से उन्नति करके अमेरिका से आगे निकलना चाहते हैं। इसलिए उनका मस्तैिष्क सदा तनावग्रस्त रहता है। इस कारण वे मानसिक रोगों के शिकार होते हैं। लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगाने की बात इसलिए कही क्योंकि वे तीव्र गति से प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करना चाहते हैं इसलिए उनका दिमाग भी तेज़ रफ्तार से स्पीड इंजन की भाँति सोचता है।

प्रश्न 5.
जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर-
जापानी में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं।

प्रश्न 6.
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर-
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वह स्थान पर्णकुटी जैसा सजा होता है। वहाँ बहुत शांति होती है। प्राकृतिक ढंग से सजे हुए इस छोटे से स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। यहाँ अत्यधिक शांति का वातावरण होता है।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर-
यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं। जीवन में आदर्श के साथ व्यावहारिकता भी आवश्यक है, क्योंकि व्यावहारिकता के समावेश से आदर्श सुंदर व मजबूत हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर-
चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग अर्थात् बड़े ही आराम से, अच्छे व सहज ढंग से की।

प्रश्न 3.
‘टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर-
‘टी-सेरेमनी’ में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता है। ऐसा शांति बनाए रखने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4.
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर-
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग की गति मंद हो गई हो। धीरे-धीरे उसका दिमाग चलना बंद हो गया हो उसे सन्नाटे की आवाजें भी सुनाई देने लगीं। उसे लगा कि मानो वह अनंतकाल से जी रहा है। वह भूत और भविष्य दोनों का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहा हो। उसे वह पल सुखद लगने लगे।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
वास्तव में गांधी जी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी। वे व्यावहारिकता को पहचानते थे, उसकी कीमत पहचानते थे, और उसकी कीमत जानते थे। वे कभी भी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर उतरने नहीं देते थे, बल्कि व्यावहारिकता को आदर्शों पर चलाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन व दांडी मार्च जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए। भारतीयों ने गांधी जी के नेतृत्व से आश्वस्त होकर उन्हें पूर्ण सहयोग दिया। इसी अद्भुत क्षमता के कारण ही गांधी जी देश को आज़ाद करवाने में सफल हुए थे।

प्रश्न 2.
आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आज व्यावहारिकता का जो स्तर है, उसमें आदर्शों का पालन नितांत आवश्यक है। व्यवहार और आदर्श दोनों का संतुलन व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। ‘कथनी और करनी’ के अंतर ने समाज को आदर्श से हटाकर स्वार्थ और लालच की ओर धकेल दिया है। सत्य, अहिंसा, परोपकार जैसे मूल्य शाश्वत मूल्य हैं। शाश्वत मूल्य वे होते हैं, जो पौराणिक समय से चले आ रहे हों, वर्तमान में भी जो महत्त्वपूर्ण हों तथा भविष्य में भी जो उपयोगी हों। ये प्रत्येक काल में समान रहे। युग, स्थान तथा साल का इन पर कोई प्रभाव न पड़े। वर्तमान समय में भी इन शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है। सत्य और अहिंसा के बिना राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता। शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा तथा देश-प्रेम की भावना का होना अत्यंत आवश्यक है। ये शाश्वत मूल्य युगों-युगों तक कायम रहेंगे।

प्रश्न 3.
अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब

  1. शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
  2. शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।

उत्तर-
इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने अनुभव के आधार पर स्वयं लिखें।

प्रश्न 4.
शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है और ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। गाँधी जी व्यावहारिकता को ऊँचा स्तर देकर आदर्शों के स्तर तक लेकर जाते थे अर्थात् ताँबे में सोना मिलाते थे। वे नीचे से ऊपर उठाने का प्रयास करते थे न कि ऊपर से नीचे गिराने का। इसलिए कई लोगों ने उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ भी कहा । वास्तव में वे व्यावहारिकता से परिचित थे, लोगों की भावनाओं को पहचानते थे इसलिए वे अपने विलक्षण आदर्श चला सके और पूरे देश को अपने पीछे चलाने में कामयाब रहे।

प्रश्न 5.
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर-
‘गिन्नी को सोना’ पाठ के आधार पर यह स्पष्ट है कि जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक महत्त्व है। अगर व्यावहारिकता को भी आदर्शों के साथ मिला दिया जाए, तो व्यावहारिकता की सार्थकता है। समाज के पास जो आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग का कारण बताया कि जापानियों ने अमरीका की आर्थिक गति से प्रतिस्पर्धा करने के कारण अपनी दैनिक दिनचर्या की गति बढ़ा दी । यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। वे एक महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं, इस कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे हैं। लेखक के ये विचार सत्य हैं क्योंकि शरीर और मन मशीन की तरह कार्य नहीं कर सकते और यदि उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया गया तो उनकी मानसिक संतुलन बिगड़ जाना अवश्यंभावी है।

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इसका आशय है कि लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है। वर्तमान में जीना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और जीवन में उन्नति होती है। यदि हम भूतकाल के लिए पछताते रहेंगे या भविष्य की योजनाएँ ही बनाते रहेंगे, तो दोनों बेमानी या निरर्थक हो जाएँगे। हम भूतकाल से शिक्षा लेकर तथा भविष्य की योजनाओं को वर्तमान में ही परिश्रम करके कार्यान्वित कर सकते हैं। भगवान कृष्ण ने ‘गीता’ में भी वर्तमान में ही जीने का संदेश दिया है ताकि मनुष्य तनाव रहित मुक्त रहकर स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन बिता सके।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उतर-
इसका आशय है कि समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है, तो वास्तव में यह धरोहर आदर्शवादी लोगों की ही दी हुई है। जैसे-गांधी जी का अहिंसा और सत्याग्रह का संदेश, राजा हरीशचंद्र की सत्यवादिता तथा भगतसिंह की शहादत आदि अनेक हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। हम इनके दिखाए रास्ते पर चलते हैं और इनके गुणों को आचरण में लाते हैं।

प्रश्न 2.
जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी त्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उतर-
जब आदर्श और व्यवहार में से लोग व्यावहारिकता को प्रमुखता देने लगते हैं और आदर्शों को भूल जाते हैं तब आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी होने लगती है। “प्रैक्टिकल आइडियालिस्टक” लोगों के जीवन में स्वार्थ व अपनी लाभ-हानि की भावना उजागर हो जाती है। ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसमें आदर्श एवं व्यवहार का संतुलन होता है लेकिन यदि आज के समाज को ध्यान में रखे तो इस शब्द में व्यावहारिकता को इतना महत्त्व दे दिया जाता है कि उसकी आदर्शवादी विचारधारा अदृश्य होकर केवल व्यावहारिकता के रूप में ही दिखाई देने लगती है। आदर्श व्यवहार के उस स्तर पर जाकर अपनी गुणवत्ता खो देता है और धीरे-धीरे आदर्श मूल व्यवहार के हाथों समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 3.
हमारे जीका की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उतर-
जापान के लोगों के जीवन की गति बहुत अधिक बढ़ गई है इसलिए वहाँ लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं। कोई बोलता नहीं है, बल्कि जापानी लोग बकते हैं और जब ये अकेले होते हैं, तो स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं अर्थात् स्वयं से ही बातें करते रहते हैं।

प्रश्न 4.
अभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।
उतर-
लेखक जब अपने मित्रों के साथ जापान की ‘टी-सेरेमनी में गया तो चाजीन ने झुककर उनका स्वागत किया। लेखक को वहाँ का वातावरण बहुत शांतिमय प्रतीत होता है। लेखक देखता है कि वहाँ की सभी क्रियाएँ अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गईं। चाजीन द्वारा लेखक और उसके मित्र का स्वागत करना, अँगीठी जलाना, चायदानी रखना, बर्तन लगाना, उन्हें तौलिए से पोंछना, चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ मन को भाने वाली थीं। यह देखकर लेखक भाव-विभोर हो गया। वहाँ की गरिमा देखकर लगता था कि जयजयवंती राग का सुर गूंज रहा हो।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उतर-
शब्द – वाक्य प्रयोग
व्यावहारिकता – सिद्धांत और व्यावहारिकता के मेल से व्यक्ति का व्यवहार अच्छा बन जाता है।
आदर्श – गांधी जी अपने आदर्श बनाए रखते थे।
सूझबूझ – सूझबूझ से काम करने पर मुश्किल आसान हो जाती है।
विलक्षण – सुभाषचंद्र बोस विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
शाश्वत – प्रकृति परिवर्तनशील है, यह शाश्वत नियम है।

प्रश्न 2.
लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए-

  1. माता-पिता = ……..
  2. पाप-पुण्य = …….
  3. सुख-दुख = ………
  4. रात-दिन = ……….
  5. अन्न-जल = ……….
  6. घर-बाहर = ………..
  7. देश-विदेश = ………..

उत्तर-

  1. माता-पिता = माता और पिता
  2. पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
  3. सुख-दुख = सुख और दुख
  4. रात-दिन = रात और दिन
  5. अन्न-जल = अन्न और जल
  6. घर-बाहर = घर और बाहर
  7. देश-विदेश = देश और विदेश

प्रश्न 3.
नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-

  1. सफल = ………
  2. विलक्षण = ………….
  3. व्यावहारिक = …………………
  4. सजग = ………..
  5. आदर्शवादी = ……….
  6. शुद्ध = ………….

उत्तर-

  1. सफल = सफलता
  2. विलक्षण = विलक्षणता
  3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता
  4. सजग = सजगता
  5. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
  6. शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर-
उत्तर- सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।
अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
उसके घर में कीमती नग जड़ा है।

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर-
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।

प्रश्न 6.
नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर-
(क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।

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