हिंदी वर्णमाला में श, ष, स में अंतर
हिंदी वर्णमाला में श, ष, स में अंतर
‘स’ का उच्चारण – जीभ को जबड़े के ऊपर नीचे दोनों दाँतों के बीच में रखें। जीभ की नोक की ऊपरी सतह से नीचे के दोनों सामने वाले दाँत के एकदम ऊपरी छोर को छूते हुए बोल के देखिये ‘स’। यह एकदम शुद्ध ‘स’ ध्वनि है । सागर, समर, सहयोग आदि।
‘श’ का उच्चारण – ‘श’ की ध्वनि सरल है। हम ‘श’ (SH) जैसी जो ध्वनि बोलते या सुनते हैं वह ‘श’ ही है।ओठों को खोलकर, दंतपंक्तियों को निकट लाकर, या चिपकाकर, जीभ आगे की ओर करके हवा मुँह से बाहर फेंकते हुये बोलें- स।
जो ध्वनि अभी आपके श्रीमुख से निकली होगी वह ‘श’ है। ‘श’ को सहजता से बोला जा सकता है। ‘श’ बोलते समय जीभ का स्थान ‘स’ से थोड़ा सा ऊपर है। वस्तुतः यह एक तालव्य ध्वनि है और इसके बोलने का तरीका तालव्य व्यंजनों (चवर्ग) जैसा ही है। ओठों से फूंककर सीटी बजाते समय ‘श्श’ जैसी जो ध्वनि सुनाई देती है वह ‘श’ ही है, इसमें कुछ विशेष नहीं है। शक्कर, शीला, विदेश आदि।
‘ष’ का उच्चारण – इसके उच्चारण में जीभ मूर्धा को स्पर्श करती है। मूर्धा ऊपर के दाँत की जड़ के और ऊपर है तालु यानि Soft Palate यहाँ से और ऊपर है मूर्धा माने Hard Palate। जहाँ ‘श’ तालव्य है, ‘ष’ एक मूर्धन्य ध्वनि है।
आम तौर पर लोगों द्वारा द्वारा ‘श’ जैसे बोलने के अलावा कुछ भाषाई क्षेत्रों में इसे ‘ख’ जैसे भी बोला जाता है। अगर ‘स’ और ‘श’ से तुलना करें तो ‘ष’ बोलने के लिए जीभ की स्थिति ‘श’ से भी ऊपर होती है। इसके उच्चारण में मूर्धा ( तालु के थोडा सा पीछे का भाग ) में जिव्हा के अग्र भाग को स्पर्श करते हुए बोलें -स तो ध्वनि निकलेगी ष।
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