अपठित काव्यांश/Apathit Kavyansh
परीक्षा में ऐसे काव्यांशों को प्रस्तुत किया जाता है जो पाठ्य पुस्तक से बाहर से लिए गए होते हैं। अर्थात छात्र ने अभी तक इन काव्यांशों का अध्ययन नहीं किया होता बल्कि वह पहली बार उस काव्यांश को पढ़ रहा होता है। ऐसे काव्यांश पर आधारित प्रश्न परीक्षा में पूछ कर छात्र की कविता के भाव और अर्थ को समझने की क्षमता को परखा कर मूल्याङ्कन किया जाताहै।
यद्यपि यह काव्यांश छात्र ने पहले कभी नहीं पढ़ा होता किन्तु थोड़े अभ्यास के साथ परीक्षा में जाने से विद्यार्थी काव्यांश के सभी प्रश्नों के अच्छे उत्तर लिख सकता है।
अपठित काव्यांश प्रश्न हल करने की विधि-
विद्यार्थी कविता को मनोयोग से पढ़ें, ताकि उसका अर्थ समझ में आ जाए।
यदि कविता कठिन है, तो उसे बार-बार पढ़ें, ताकि भाव स्पष्ट हो सके।
कविता के अध्ययन के बाद उससे संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
प्रश्नों के अध्ययन के बाद कविता को दुबारा पहिए तथा उन पंक्तियों को बुनिए, जिनमें प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हों।
जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर मिल जाएँ उन्हें लिखिए।
कुछ प्रश्न कठिन या सांकेतिक होते हैं। उनका उत्तर देने के लिए कविता का भाव तत्व समझिए।
प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
प्रश्नों के उत्तर की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। इससे उत्तरों की स्पष्टता बढ़ेगी।
उदाहरण-1
निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए –
अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर
पर औरों के सभी भाव मिटा सकता है।
तूफानों–भूचालों की भयप्रद छाया में,
मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता है।
मेरे में की संज्ञा भी इतनी व्यापक है,
इसमें मुझसे अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है।
में खंडहर को फिर से महल बना सकता है।
जब–जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं,
प्रलय मेध भूधाल देख मुझको शरमाए।
में मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ।
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।
उपरोक्त अपठित काव्यांश पर प्रश्न :
(क) उपर्युक्त काव्य–पंक्तियों में किसका महत्व प्रतिपादित किया गया है?
(ख) स्वर्ग के प्रति मजदूर की विरक्ति का क्या कारण है?
(ग) किन कठिन परिस्थितियों में उसने अपनी निर्भयता प्रकट की है।
(घ) मेरे मैं की संज्ञा भी इतनी व्यापक है, इसमें मुझ से अगणित प्राणी आ जाते हैं।-उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कर लिखिए।
(ङ) अपनी शक्ति और क्षमता के प्रति उसने क्या कहकर अपना आत्म–विश्वास प्रकट किया है?
अपठित काव्यांश पर प्रश्नों के उत्तर :
(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में मजदूर की शक्ति का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
(ख) मजदूर निर्माता है । वह अपनी शक्ति से धरती पर स्वर्ग के समान सुंदर बस्तियों बना सकता है। इस कारण उसे स्वर्ग से विरक्ति है।
(ग) मज़दूर ने तूफानों व भूकंप जैसी मुश्किल परिस्थितियों में भी घबराहट प्रकट नहीं की है। वह हर मुसीबत का सामना करने को तैयार रहता है।
(घ) इसका अर्थ यह है कि मैं सर्वनाम शब्द श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है। कवि कहना चाहता है कि मजदूर वर्ग में संसार के सभी क्रियाशील प्राणी भा जाते हैं।
(ड) मज़दूर ने कहा है कि वह खंडहर को भी आबाद कर सकता है। उसकी शक्ति के सामने भूचाल, प्रलय व बादल भी झुक जाते हैं।
उदाहरण-2
निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु एक है विश्राम–स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नस जीवन संबल।
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें
श्रम से कातर जीव नहाकर
फिर नूतन धारण करता है,
काया रूपी वस्त्र बहाकर।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी –
तृप्ति आत्म–बलि पर ही निर्भर
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ।
उपरोक्त अपठित काव्यांश पर प्रश्न :
(क) कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है?
(ख) मृत्यु को विश्राम–स्थल क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने मृता की तुलना किससे और क्यों की है?
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव में क्या परिवर्तन आ जाता है?
(ङ) सध्ये प्रेम की बया विशेषता बताई गई है और उसे कब निष्प्राण कहा गया है?
अपठित काव्यांश पर प्रश्नों के उत्तर :
(क) मृत्यु के बाद मनुष्य फिर नया रूप लेकर कार्य करने लगता है, इसलिए कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय होने को कहा है।
(ख) कवि ने मृत्यु को विश्राम स्थल की संज्ञा दी है। कवि का कहना है कि जिस प्रकार मनुष्य चलते-चलते थक जाता है और विश्राम- स्थल पर रुककर पुनः ऊर्जा प्राप्त करता है, उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव नए जीवन का सहारा लेकर फिर से चलने लगता है।
(ग) कवि ने मृत्यु की तुलना सरिता से की है, क्योंकि जिस तरह धका व्यक्ति नदी में स्नान करके अपने गीले वस्त्र त्यागकर सूखे वस्त्र पहनता है, उसी तरह मृत्यु के बाद मानव नया शरीर रूपी वस्त्र धारण करता है।
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीत ना शरीर धारण करता है तथा पुराने शरीर को त्याग देता है।
(ङ) सध्या प्रेम दह है, जो आत्मबलिदान देता है। जिस प्रेम में त्याग नहीं होता, वह निष्प्राण होता है।
उदाहरण-3
जीवन एक कुआ है।
अधाह– अगम
सबके लिए एक सा वृत्ताकार।
जो भी पास जाता है,
सहज ही तृप्ति, शांति, जीवन पाता है
मगर छिद्र होते हैं जिसके पात्र में
रस्सी–डोर रखने के बाद भी,
हर प्रयत्न करने के बाद भी
यह यहाँ प्यासा–का–प्यासा रह जाता है।
मेरे मन! तूने भी, बार–बार
बड़ी बड़ी रसियाँ बटी
रोज–रोज कुएँ पर गया
तरह–तरह घड़े को चमकाया,
पानी में डुबाया, उतराया
लेकिन तू सदा ही –
प्यासा गया, प्यासा ही आया ।
और दोध तूने दिया
कभी तो कुएं को
कभी पानी को
कभी सब को
मगर कभी जॉचा नहीं खुद को
परखा नहीं पड़े की तली को ।
चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को
और मूढ़ अब तो खुद को परख देख।
उपरोक्त अपठित काव्यांश पर प्रश्न :
(क) कविता में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है? कैसा व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।
(ख) कवि का मन सभी प्रकार के प्रयासों के उपरांत भी प्यासा क्यों रह जाता है।
(ग) और तूने दोष दिया……कभी सबकों का आशय क्या है।
(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो रही हो तो उसे किन बातों की जाँच–परख करनी चाहिए?
(ङ) ‘चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को – यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से किस ओर संकेत किया गया है ?
अपठित काव्यांश पर प्रश्नों के उत्तर :
(क) कवि ने जीवन को कुआँ कहा है, क्योंकि जीवन भी कुएँ की तरह अथाह व अगम है। दोषी व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।
(ख) कवि ने कभी अपना मूल्यांकन नहीं किया। वह अपनी कमियों को नहीं देखता। इस कारण वह सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद प्यासा रह जाता है।
(ग) और तूने दोष दिया….कभी सबको का आशय है कि हम अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं।
(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो तो उसे अपनी कमियों के बारे में जानना चाहए। उन्हें सुधार करके कार्य करने चाहिए।
(ड) यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से मनुष्य की कमियों की ओर संकेत किया गया है।
उदाहरण-4
उम्र बहुत बाकी है लेकिन, उग्र बहुत छोटी भी तो है
एक स्वप्न मोती का है तो, एक स्वप्न रोटी भी तो है।
घुटनों में माथा रखने से पौरखर पार नहीं होता है।
सोया है विश्वास जगा लो, हम सब को नदिया तरनी है।
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी हैं।
मन छोटा करने से मोटा काम नहीं छोटा होता है,
नेह कोष को खुलकर बाँटो, कभी नहीं टोटा होता है,
आँसू वाला अर्थ न समझे, तो सब ज्ञान व्यर्थ जाएंगे।
मत सच का आभास दमा लो शाश्वत आग नहीं मरनी है।
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं।
उपरोक्त अपठित काव्यांश पर प्रश्न :
(क) मशीनी युग में समय महँगा होने का क्या तात्पर्य है। इस कथन पर आपकी क्या राय है?
(ख) ‘मोती का स्वप्न और ‘रोटी का स्वप्न से क्या तात्पर्य है दोनों किसके प्रतीक है?
(ग) घुटनों में माधा रखने से पोखर पार नहीं होता है पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) मन और स्नेह के बारे में कवि क्या परामर्श दे रहा है और क्यों?
(ड) सच का आभास क्यों नहीं दबाना चाहिए?
अपठित काव्यांश पर प्रश्नों के उत्तर : –
(क) इस युग में व्यक्ति समय के साथ बाँध गया है। उसे हर घंटे के हिसाब से मज़बूरी मिलती है । हमारी राय में यह बात सही है।
(ख) ‘मोती का स्वप्न’ का तात्पर्य वैभवयुक्त जीवन की आकांक्षा से है तथा ‘रोटी का स्वप्न का तात्पर्य जीवन की मूल जरूरतों को पूरा करने से है। दोनों अमीरी व गरीबी के प्रतीक हैं।
(ग) इसका भाव यह है कि मानव निष्क्रिय होकर आगे नहीं बढ़ सकता। उसे परिश्रम करना होगा तभी उसका विकास हो सकता है।
(घ) गन के बारे में कवि का मानना है कि मनुष्य को हिम्मत रखनी चाहिए। हौसला खोने से कार्य या बाधा खत्म नहीं होती। ‘स्नेह भी बॉटने से कभी कम नहीं होता। कवि मनुष्य को मानवता के गुणों से युक्त होने के लिए कह रहा है।
(ङ) सच का आभास इसलिए नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि इससे वास्तविक समस्याएँ समाप्त नहीं हो जातीं।
उदाहरण-5
जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
गौ महाप्रलय में मुस्काए ।
अंतिम दम हो रहे है?
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे।
जो देश–राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त तिलक भारत ललाट!
उनको मेरा पहला प्रणाम !
फिर वे जो ऑधी बन भीषण
कर रहे भाज दुश्मन से रण
बाणों के पवि संधान बने ।
जो चालामुख–हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर
बाधाओं के पर्वत चकर
जो न्याय–नीति को अर्पित हैं।
भारत के लिए समर्पित हैं।
कीर्तित जिससे यह भरा धाम
उन वीरों को मेरा प्रणाम
श्रद्धानत कवि का नमस्कार
दुर्लभ है छंद–प्रसून हार
इसको बस वे ही पाते हैं।
जो चढे काल पर आते हैं।
हुंकृति से विश्व काँपते हैं।
पर्वत का दिल दहलाते हैं।
रण में त्रिपुरांतक बने शर्व
कर ले जो रिपु का गर्व खर्च
जो अग्नि–पुत्र, त्यागी, अक्राम
उनको अर्पित मेरा प्रणाम!!!
उपरोक्त अपठित काव्यांश पर प्रश्न :
(क) कवि किन वीरों को प्रणाम करता है?
(ख) कवि ने भारत के माधे का लाल चंदन किन्हें कहा है।
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक किस तरह वार करते हैं?
(घ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ड) कवि की श्रद्धा किन वीरों के प्रति है।
अपठित काव्यांश पर प्रश्नों के उत्तर : –
(क) कवि इन वीरों को प्रणाम करता है, जिनमें देश का मान भरा है तथा जो साहस और निडरता से अंतिम दम तक देश के लिए संघर्ष करते हैं।
(ख) कवि ने भारत के माधे का लाल चंदन (तिलक) उन वीरों को कहा है, जिन्होंने देश की वेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक शॉधी की तरह भीषण वार करते हैं तथा आग उगलते हुए उनके किलों को तोड़ देते हैं।
(घ) शीर्षक: वीरों को मेरा प्रणाम
(ङ) कवि की श्रद्धा उन वीरों के प्रति है, जो मृत्यु से नहीं घबराते, अपनी हुंकार से विश्व को कैंपा देते हैं तथा जिनके साहस और वीरता की कीर्ति धरती पर फैली हुई है।
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