Meera Ke Pad-Class 11-Hindi Core/MCQ/Q+A/Explanation

मीरा का जीवन परिचय- Meera Ka Jeevan Parichay

मीराबाई के जन्मकाल एवं जन्मस्थल के बारे में ज्यादा जानकारी एवं प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि मीरा का जन्म 1498ई में कुड़की गाँव के एक राजपरिवार में हुआ था। मीराबाई सगुण धारा की महान कवयित्री थीं।

श्री कृष्ण को समर्पित उनके काव्य आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। मीरा बाई के जीवन के बारे में कई  किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। इन सभी कथाओं से मीरा बाई की कृष्ण भक्ति एवं बहादुरी का पता चलता है। वो सामाजिक और पारिवारिक नियमों को नहीं मानती थीं।

वे कृष्ण को अपना पति मानती थीं और उनकी ही भक्ति में लीन रहती थीं। उनके पिता का नाम रत्न सिंह राठौड़ था , वे एक छोटे से राजपूत रियायत के शासक थे। मीरा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं, वो उम्र में काफी छोटी थीं तभी उनके माता का देहांत हो गया था।

मीराबाई को धर्म, राजनीति , संगीत एवं प्रशासन जैसे विषयों में शिक्षा प्राप्त हुई। मीराबाई का पालनपोषण उनके दादा ने किया था , वो योद्धा होने के साथ-साथ भगवान विष्णु के उपासक थे इसलिए उनके घर में साधू-संतों का आना जाना लगा ही रहता था।

बचपन से ही मीराबाई को धार्मिक लोगों की संगति प्राप्त हुई थी। सन 1516 ई में मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ हो गया। भोजराज एक युद्ध में घायल हो गए थे इसी कारणवश सन 1521 ई में  उनकी मृत्यु हो गयी।

इसके कुछ ही वर्षों के पश्चात मीराबाई के श्वसुर एवं पिता मुग़ल शासक बाबर के साथ युद्ध में शहीद हो गए। उस समय की प्रथा के अनुसार उन्हें सती करने का प्रयास किया गया किन्तु वह इसके लिए तैयार नहीं हुई ।

वो धीरे धीरे इस सांसारिक मोह – माया से विरक्त होती गईं और कृष्ण भक्ति में लीन होती चली गईं। वो कृष्ण की भक्ति में मंदिरों में जाकर नाचती गाती रहती थीं।

इससे उनके ससुराल के लोग रुष्ट रहते थे तथा उनपर बहुत अत्याचार भी करते थे और उन्हें विष देकर मारने की भी कोशिशें की गयीं। सन 1533 के लगभग वो मेड़ता चली गईं।

सन 1538 ई में वे ब्रज की तीर्थयात्रा पर चली गईं। फिर उसके करीबन एक साल के बाद ही वो वृन्दावन चली गईं  और कुछ वर्ष वहीं रहीं. फिर 1546 ई में वो द्वारका चली गईं।

उन्हें उस काल में विद्रोही माना जाता था क्योंकि उन्होंने न तो कभी राजकुमारी की तरह जीवन यापन किया न ही एक विधवा की तरह। अपने अधिकांश समय में वो या तो साधु संतों से मिलतीं या तो भक्ति पदों की रचना करतीं। कहा जाता है कि सन 1560 ई में वो द्वारका में कृष्ण की मूर्ति में समा गईं।


मीरा के पद- Meera Ke Pad

पद 1
मेरे तो गिरधर गोपाल , दूसरों न कोई
जा के सिर मोर मुकुट , मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि , कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि- बैठि , लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सींचि – सींचि , प्रेम – बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गयी , आणंद – फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी , जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर ! तारो अब मोही 

पद 2
पग घुँघरू बांधि मीरां नाची ,
मैं तो मेरे नारायण सूं , आपहि हो गई साची
लोग कहै , मीरां भइ बावरी ; न्यात कहै कुल- नासी
विस का प्याला राणा भेज्या , पीवत मीरां हाँसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर , सहज मिले अविनासी 


मीरा के पद का सारांश- Meera Ke Pad-Summary


यहाँ प्रस्तुत-

पहले पद में कवयित्री मीरा ने भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं। उन्होंने श्री कृष्ण को अपना पति मान लिया है और वो उनकी सेवा एवं भक्ति में लगी रहती हैं।वो लोकलाज सब छोड़ कर मंदिरों में श्री कृष्ण के भजन गाती रहती हैं , साधु संतों की संगति में बैठी रहती हैं। कृष्ण की भक्ति रूपी बेल धीरे धीरे बड़ा होता जा रहा है।जिस प्रकार दूध में मथानी डाल कर दही में से मक्खन निकाल लिया जाता है और छाछ अलग कर दिया जाता है उसी प्रकार मीरा ने भी भगवान की भक्ति को अपना लिया है और सांसरिक मोह माया से खुद को अलग कर लिया है। 


दूसरे पद में मीरा ने कृष्ण भक्ति में डूबकर अमर होने की बात कही है। इन पंक्तियों में उन्होंने बताया है कि किस प्रकार वे पैरों में घुँघरू बांध कर कृष्ण भक्ति में लीन होकर नाच रही हैं।लोग उन्हें पागल कहते हैं , कहते हैं कि कुल का नाम खराब कर दिया। लोग मीरा की जान लेना चाहते हैं विष का प्याला भेजते हैं जिसे वो हँसते हँसते पी जाती हैं। उनका मानना है कि अगर ईश्वरको सच्चे मन से चाहो तो वे सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। 



 
मीरा के पद-व्याख्या- Meera Ke Pad-Explanation

पद-1

मेरे तो गिरधर गोपाल , दूसरों न कोई
जा के सिर मोर मुकुट , मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि , कहा करिहै कोई ?
संतन ढिग बैठि- बैठि , लोक-लाज खोयी
अंसुवन जल सींचि – सींचि , प्रेम – बेलि बोयी
अब त बेलि फैलि गयी , आणंद – फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी , जगत देखि रोयी
दासि मीरां लाल गिरधर ! तारो अब मोही


प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘मीरा के पद’ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री ने अपने आराध्य श्री कृष्ण के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त किया है एवं सांसरिक मोहमाया में लिप्त लोगों के प्रति दुःख व्यक्त किया है।इन पंक्तियों में मीरा बाई कहती हैं कि मेरे तो सिर्फ एक ही प्रियतम हैं जो कि  पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाने वाले श्री कृष्ण हैं उनके अलावा मेरा और कोई भी नहीं है । जिनके सिर पर मोर पंख का मुकुट है वो ही मेरे पति हैं।और मैंने अब कुल की मर्यादा को भी छोड़ दिया है , मेरे बारे में कौन क्या कहता है उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है । मैं तो लोक-लाज सब छोड़ कर साधु संतों के बीच बैठी रहती हूँ ।वे आगे कहती हैं कि कृष्ण प्रेम रूपी जिस बेल को मैंने आंसुओं से सींचा है वो अब बहुत फैल चुकी है और अब उस बेल से मुझे बहुत आनंद की प्राप्ति हो रही है अर्थात , वो अब कृष्ण भक्ति में  पूरी तरह लीन हो चुकी हैं और उसमें अब उन्हें बहुत आनंद की प्राप्ति हो रही है।आगे की पंक्तियों में कवयित्री ने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन किया है। 
इन पंक्तियों में मीराबाई कहती हैं कि उन्होंने दूध की मथनियां  बहुत ही प्रेम से विलोई हैं अर्थात उन्होंने अपने आराध्य श्री कृष्ण के प्रेम को बहुत ही प्रेम से मथा है। दही को मथ कर उन्होंने घी निकाल लिया है और छाछ को छोड़ दिया है।इस पंक्ति में घी कृष्ण प्रेम का प्रतीक है और छाछ सांसरिक मोहमाया का प्रतीक है। और दही से मीरा बाई का तात्पर्य उनके जीवन से है। इस प्रकार इस पंक्ति का अर्थ है कि अपने जीवन का विश्लेषण कर के उन्होंने कृष्ण भक्ति को पा लिया है सांसारिक मोहमाया को छोड़ दिया है।आगे की पंक्तियों में वे कहती हैं कि जब वो भगवान की भक्ति करते हुए लोगों को देखती हैं तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है परंतु जब वो सांसरिक मोहपाश में लिप्त लोगों को देखती हैं तो उन्हें बहुत पीड़ा होती है।वो कहती हैं कि हे कृष्ण मैं तो तुम्हारी दासी हूँ,और अब तुम ही हो जो मुझे इस संसार से पार लगाओगे। 


पद-2

पग घुँघरू बांधि मीरां नाची ,
मैं तो मेरे नारायण सूं , आपहि हो गई साची
लोग कहै , मीरां भइ बावरी ; न्यात कहै कुल- नासी
विस का प्याला राणा भेज्या , पीवत मीरां हाँसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर , सहज मिले अविनासी 

मीरा के पद व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमरी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘मीरा के पद’ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में मीरा बाई जी अपने आराध्य श्री कृष्ण के प्रेम में अमर होने की बात कह रही हैं।मीरा कहती हैं कि वे कृष्ण की भक्ति में इतना रम गयी हैं कि पैरों में घुँघरू बांध कर अपने प्रिय कृष्ण की मूर्ति के सामने नाच रही है। मीरा ने स्वयं को अपने आराध्य श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया है और वो इससे बिलकुल पवित्र और सच्ची हो गई हैं।लोग उन्हें देख कर बावली कहते हैं , कहते हैं कि मीरा ने कुल का नाश कर दिया है क्योंकि वे राजमहल की सारी सुख सुविधाओं को छोड़ कर फकीरों की तरह घूमती रहती हैं।वो सारा समय या तो मंदिरों में या फिर साधु संतों के बीच बैठी रहती हैं जो कि राजघराने की कुलवधू के आचरण के विपरीत है। लोग कहते हैं कि इसकी मति भ्रष्ट हो गयी है।यह सब देखकर मीरा जी के देवर राणा ने उनको विष भेज दिया ताकि उनकी मृत्यु हो जाए और उनसे सबको छुटकारा मिल जाए । उस विष के प्याले को मीरा बाई ने पी लिया और फिर वो हंसने लगी कि ये कैसे मूर्ख लोग हैं, इनको इतना भी नहीं पता कि कृष्ण की भक्ति में इतनी शक्ति है कि इस विष का मुझपर कोई भी असर नहीं होगा।जब उनपर विष का असर नहीं हुआ तो उन्हें ऐसा लगा जैसे कि उन्हें अविनाशी श्री कृष्ण के दर्शन हो गए । वे कहती हैं कि मेरे प्रभु श्री कृष्ण तो इतने सीधे हैं कि भक्तों को सहज ही दर्शन दे देते हैं।


मीरा के पद-प्रश्नोत्तरी-Meera Ke pad-Q+A

प्रश्न 1.

मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती हैं ? वह रूप कैसा है ?

उत्तर-

मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम एकदम निश्चल , पवित्र व अलौकिक हैं। वो कृष्ण की उपासना अपने पति या स्वामी के रूप में करती हैं। वो कृष्ण को अपना स्वामी और स्वयं को उनकी दासी कहती हैं। श्रीकृष्ण ही मीरा के प्राणाधार हैं।  

मीरा कहती हैं कि गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली से उठाने वाले व अपने सिर पर मोरपंखी का मुकुट धारण वाले श्री कृष्ण का रूप अत्यधिक मनमोहक व मनभावन हैं।

प्रश्न 2.

भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ?

(क)

अंसुवन जल सींचि-सचि , प्रेम-बेलि बोयी । 

अब त बेलि फैलि गई , आणंद-फल होयी ।। 

उत्तर-

भाव-

मीराजी कहती हैं कि श्रीकृष्ण के प्रेम रूपी जिस बेल को मैंने बड़े प्रेम से बोया था और फिर कृष्ण से मिलन की आस में बहने वाले आंसुओं से उसे लगातार सींच-सींच कर पल्ल्वित किया था। अब वह बेल बहुत फैल गयी हैं या बढ़ गई है। और अब उसमें से मुझे आनंद रूपी फल प्राप्त हो रहे हैं। यानि मीरा के मन में कृष्ण भक्ति की भावना लगातार बढ़ रही हैं।

शिल्प सौंदर्य-

इन पदों में मीराबाई का कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव दिखाई देता है। वो कृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानती हैं। इन पदों में राजस्थानी और बृज भाषा का मिलाजुला प्रयोग किया है। ये सभी गेय पद हैं।

रूपक अलंकार –“प्रेम – बेलि ” यानी कृष्ण के प्रेम रूपी बेल और “आणंद – फल ” यानि आनंद रूपी फल ।

अनुप्रास अलंकार – “बेलि – बोयी” । 

पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार –   “सींचि – सींचि” ।

(ख)

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी। 

दधि मथि घृत काढ़ि लियो, डारि दयी छोयी ।।

उत्तर-

भाव-

मीराजी कहती हैं कि जिस प्रकार दही को मथकर उसमें से घी निकाल लिया जाता है और छाँस को छोड़ दिया जाता है। ठीक उसी प्रकार मैने भी कृष्ण के प्रेम रूपी दही को अपनी भक्ति रूपी मथानी से बड़े प्रेम से बिलोया हैं।

और फिर दही के अच्छी तरह से मथ जाने के बाद मैंने उसमें से घी निकाल लिया और छाँस को छोड़ दिया है। यहाँ पर घी कृष्ण से उनके अनन्य प्रेम का प्रतीक है जबकि छास सांसारिक मोह माया का प्रतीक है। यानि उन्होंने सभी सांसारिक मोह माया को छोड़ और अपने अथक प्रयासों से भगवान कृष्ण को पा लिया हैं।

शिल्प सौंदर्य-

उपरोक्त पदों में उदाहरण अलंकार देखने को मिलता हैं।
पदों में प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। 
पद लयात्मकता है। 
यहाँ पर घी कृष्ण से मीरा के अनन्य प्रेम का प्रतीक है जबकि छास सांसारिक मोह माया का प्रतीक है।
प्रश्न 3.

लोग मीरा को “बावरी” क्यों कहते हैं ?

उत्तर-

मीराबाई महलों की सुख-सुविधाओं को छोड़कर मंदिर में किसी सन्यासिन की भांति अपना जीवन बिताती हैं। साधु संतों के साथ उठती-बैठती है। कृष्ण प्रेम में दीवानी होकर अपने पैरों में धुँधरुँ बांध कर नाचने लगती है। वो राजकुल की बहू के विपरीत आचरण करती हैं। उन्होंने अपने राज कुल की सभी मर्यादाओं को छोड़कर दिया हैं। इसीलिए लोग उन्हें “बावरी”कहते है।

प्रश्न 4.

“विस का प्याला राणा भेज्या , पीवत मीरां हाँसी”। इसमें क्या व्यंग्य छिपा है ?

उत्तर-

मीरा से नाराज होकर उनके देवर राणा ने उन्हें मारने के लिये जहर भेजा। जिसे मीरा ने खुशी-खुशी पी लिया। जहर पीने के बाद जब मीरा पर उसका कोई असर नहीं हुआ तो ,  वो हंसती हैं।

यह व्यंग्य उन लोगों के लिए हैं जो उनकी कृष्ण भक्ति और उस भक्ति के शक्ति को समझ नहीं पाए। और उनको “बावरी” समझ कर उन्हें मारने के तरह-तरह के उपाय करते रहे। 

प्रश्न 5.

मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं ?

उत्तर:

मीरा जगत को देखकर इसलिए दुखी होती हैं। क्योंकि वह देखती है कि लोग प्रभु भक्ति के मार्ग को छोड़कर सांसारिक मोह माया के जाल में फंसे हैं। 

लेकिन जब वो ईश्वर की भक्ति में लीन लोगों को देखती हैं तो उनका मन प्रसन्नता से भर जाता है। क्योंकि वो जानती हैं कि व्यक्ति सच्चे प्रेम और भक्ति से ईश्वर को सहजता से प्राप्त कर सकता है। 

पद के आस–पास

प्रश्न 1.

कल्पना करें , प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा ?

उत्तर-

प्रेम-प्राप्ति के लिए मीरा को निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा।

मीरा को अपने राजपरिवार व अन्य लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा होगा।
समाज की उपेक्षा व ताने सहने करने पड़े होगें ।
मंदिरों में रहकर एक सन्यासिन की भाँति अपना जीवन बिताना पड़ा होगा ।
राजकुल की बहू के विपरीत आचरण करने व राज कुल की मर्यादाओं को छोड़ने के कारण उन्हें “कुल नाशिनी” तक कहा गया होगा। 
राणा द्वारा उनको मारने के कई प्रयास किए गए होंगे।
प्रश्न 2.

लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है ?

उत्तर-

उस समय राजस्थान में महिलाओं में पर्दा प्रथा प्रचलित थी। महिलाएं घर के अंदर व घर के बाहर दोनों जगह पर्दा पहन कर ही रहती थीं। ऐसी सामाजिक व्यवस्था में मीरा मंदिरों में कृष्ण का भजन करती , साधु संतो के बीच बैठ कर सत्संग करती व अपने पैरों पर धुँधरुँ बाँध कर मस्त होकर नाचती थी।

यानी उन्होंने समाज के ठेकेदारों द्वारा महिलाओं के लिए बनाई सभी मर्यादाओं का उल्लंघन किया जिसे समाज द्वारा “लोक-लाज खोना” कहते है।

प्रश्न 3.

मीरा ने “सहज मिले अविनासी” क्यों कहा है ?

उत्तर-

मीरा ने कृष्ण को अविनाशी (यानि जिसका कभी नाश नहीं हो सकता हैं) कहा हैं । वो कहती हैं कि अगर व्यक्ति सच्चे मन से उस ईश्वर की भक्ति करे तो वो , उसे बहुत ही आसानी से प्राप्त हो सकते हैं।

प्रश्न 4.

“लोग कहै ,  मीरा भइ बावरी” , “न्यात कहै , कुल-नासी” ।

मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुंब) की ऐसी धारणाएँ क्यों हैं ?

उत्तर-

मीराबाई महलों की सुख-सुविधाओं को छोड़कर मंदिर में किसी सन्यासिन की भांति अपना जीवन बिताती हैं। कृष्ण प्रेम में दीवानी होकर नाचती गाती है। साधु संतों की संगत करती है। वो कृष्ण प्रेम में पागल हो उनकी नगरी वृंदावन व द्वारिका तक भी आती हैं । उन्होंने कृष्ण प्रेम में अपनी लोकलाज व सुध-बुध सब खो दी। इसीलिए लोग उन्हें “पागल” कहते हैं।

वो राजकुल की बहू के विपरीत आचरण करती हैं। उन्होंने अपने राज कुल की सभी मर्यादाओं का त्याग कर दिया हैं। इसीलिए लोग उन्हें “कुल नशिनी” कहते है।

9.मीरा ने अपने आराध्य देव की क्या पहचान बताई है?

 A. उसके सिर पर ताज है
 B. उसके सिर पर मोर मुकुट है
 C. उसने अपने सिर को झुकाया
 D. उसके सिर पर पगड़ी बँधी हुई है

10. मीरा ने क्या छोड़ दिया है?

 A. परिवार
 B. परिवार की लज्जा
 C. समाज
 D. संसार
 
11. "छाड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहै कोई?" इस पंक्ति से मीरा की कौन-सी भावना प्रकट होती है?

 A. समाज के प्रति चुनौती
 B. विनयभाव
 C. समाज के सामने याचना भाव
 D. समाज से डरने का भाव


12. किसके साथ बैठ-बैठ कर मीरा ने लोक-लाज को त्याग दिया था?

 A. सास-ससुर
 B. सखियों
 C. संतों
 D. राजा

 13. मीरा ने कौन-सी बेल बोई थी?

 A. अंगूर की
 B. पुष्पलता की
 C. घीया की
 D. प्रेम की
 

14. मीरा ने अपनी प्रेम-बेलि को किससे सींचा है?

 A. पानी से
 B. दूध से
 C. अमृत से
 D. आँसुओं से

15. मीरा इस जगत में क्या देखकर प्रसन्न होती है?

 A. सामाजिक बंधन
 B. समाज में मोह-माया
 C. प्रभु-भक्ति
 D. सगे-संबंधी

16. मीरा अपने-आपको किसकी दासी स्वीकार करती है?

 A. श्रीकृष्ण की
 B. राणा साँगा की
 C. राजा की
 D. प्रजा की

17. क्या देखकर मीरा रोती है?

 A. भक्त
 B. संत
 C. जगत
 D. संन्यासी

18. मीरा किसके सामने नाची थी?

 A. अपने पति के सामने
 B. अपने ससुर के सामने
 C. श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने
 D. समाज के सामने

19.लोग मीरा को क्या कहते थे?

 A. ज्ञानवान
 B. दीवानी
 C. कर्मठ
 D. बावरी

20. मीरा को न्यात क्या समझते थे?

 A. देशभक्त
 B. कुलनासी
 C. पतिव्रता
 D. ज्ञानवान

21.मीरा के लिए विष का प्याला किसने भेजा था?

 A. उसके पति ने
 B. उसके देवर ने
 C. उसकी सखी ने
 D. उसकी सास ने

22. विष पीने पर मीरा ने क्या किया?

 A. रोने लगी
 B. मर गई
 C. हँसती रही
 D. बेहोश हो गई

23. मीरा ने अपने प्रभु को किस नाम से पुकारा है?

 A. गिरधर नागर
 B. नागर
 C. रसिया
 D. नटखट
 
24. मीरा के प्रभु कैसे हैं?

 A. विनाशी
 B. अविनासी
 C. निर्गुण
 D. सगुण एवं निर्गुण

25. मीराकृत इन दोनों पदों में उनकी कौन-सी भावना व्यक्त हुई है?

 A. विद्रोह की भावना
 B. समाज के प्रति घृणा की भावना
 C. श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति-भावना
 D. इनमें से कोई नहीं

Comments

  1. Pls give ne answer of this mcqs pls soon i have nit enogh time my pt test starting from tomorrow

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