Mitra Ka mahatva-Ram Naresh Tripathi
तप्त हृदय को, सरस स्नेह से,जो सहला दे, मित्र वही है।
रूखे मन को, सराबोर कर,
जो नहला दे, मित्र वही है।
प्रिय वियोग,संतप्त चित्त को
जो बहला दे, मित्र वही है।
अश्रु बूँद की, एक झलक से
जो दहला दे, मित्र वही है।
डाॅ.संजय मिश्र
रचना समय - 02 अगस्त 2015
मित्रता दिवस पर
मित्र का महत्व-रामनरेश त्रिपाठी
कर समान सदैव शरीर का,
पलक तुल्य विलोचन बंधु का।
प्रिय सदा करता अविवाद जो,
सुहृद है वह सत्तम लोक में॥
हृदय को अपने प्रियमित्र के,
हृदय-सा नित जो जन जानता।
वह सुभूषण मानव-जाति का,
सुहृद है जिसमें न दुराव है॥
व्यसन, उत्सव, हर्ष, विनोद में,
विपद, विप्लव, द्रोह, दुकाल में।
मनुज जो रहता निज साथ है
सुहृद के, वह उत्तम मित्र है॥
हृदय-निर्मलता अनुरक्तता,
सरलता सुख-शोक-समानता।
अमिषता सत शौर्य, वदान्यता
सुहृद के गुण ये कमनीय हैं॥
भय विषाद अराति-समूह से
सतत रक्षक पात्र प्रतीति का।
विमल प्रीति भरा विधि ने रचा,
युग सदक्षर मानिक मित्र सा॥
कर समर्पन प्राण अभिन्न हो,
हित सदा करना छल छोड़ना।
तज विवाद सदा प्रिय सोचना,
यह महाव्रत है वर मित्र का॥
विहँसता दृग देख जिसे सदा
उमड़ता मन में अति मोद है।
नित सखा, चित का सतपात्र सो,
सुहृद दुर्लभ है इस लोक में॥
विपत में चुप होकर बैठना
विभव में मिल के सुख लूटना।
स्वहित-तत्परता नित चाटुता,
अधमता यह है खल मित्र की॥
विषम संकट के दिन देख के,
सुहृद जो करता न सहायता।
अधम सो करता अपवित्र है,
सुभग मित्र सदाशय नाम को॥
विमल पद्धति से निज मित्रता,
जगत में जन जो न निबाहता।
पतित है बनता वह लोक में,
नरक में पड़ता परलोक में॥
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