राजस्थान की रजत बूँदें/Rajasthan ki Rajat Bunden

लेखक परिचय
अनुपम मिश्र-लेखक, संपादक, छायाकार और पर्यावरणवादी थे। पर्यावरण के लिए उन्होंने काफी काम किया है। गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में उन्होंने पर्यावरण विभाग खोला। वे इस प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘गाँधी मार्ग ‘ संस्थापक और संपादक भी थे।
जन्म सन् 1948, वर्धा महाराष्ट्र।
प्रमुख रचनाएँ-आज भी खरे हैं तालाब , राजस्थान की रजत बूंदे आदि।

पुरस्कार इंद्रा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार , चंद्र शेखर , जमनाना लाल बजाज।

मृत्यु सन् 2016,नई दिल्ली

Rajasthan Ki Rajat Boonde:Summary

यह पाठ राजस्थान की रजत बूंदे अनुपम मिश्र द्वारा लिखा गया है इसमें राजस्थान के मरुस्थल में पाई जाने वाली कुईं के बारे में बताया गया है जिसका उपयोग पानी संग्रक्षण के लिए किया जाता है ।इसमें घेलवांजी कुईं का निर्माण कर रहे है जो तीस -पैंतीस गहरी खोदने पर कुई  का घेरा संकरा हो जाता है।कुईं की खुदाई और चिराई करने वाले को चेलवांजी यानी चेजरों के नाम से जाना जाता है। कुईं केअन्दर काम कर रहे चेलवांजी पसीने से तरबतर हो रहे है ।तक़रीबन तीस -पैंतीस गहरी खुदाई हो चुकी है। तापमान भीतर  बढते  ही जा रहा है। तामपान को घटाने के लिए ऊपर से रेत डाली जाती है, जिस वजह से ठंडी हवा नीचे की ओर और गर्म हवा ऊपर से चली जाती है। कुई का व्यास गहरा है जिसकी खुदाई का काम बसौली से किया जा रहा है। खुदाई से जो मलबा निकलता है उसे बाल्टी में इकठ्ठा कर के ऊपर भेजा जाता है।  

कुएँ की तरह कुईं का निर्माण किया जाता है। कुई कोई साधारण ढाँचा नहीं है।कुएँ और कुईं में बस व्यास का अंतर होता ही व्यास का अंतर है। कुएँ का निर्माण भूजल को पाने के लिए किया जाता है जबकि कुईं का निर्माण वर्षा का पानी इकट्ठा करने के लिए करते है। राजस्थान के अलग – अलग की इलोकों में एक विशेष कारण से कुईंयों की गहराई कुछ कम ज़्यादा होती है। मरुस्थल में रेत का विस्तार अथाह है। यहाँ पर कही कही रेत की सतह के पचास-साथ हाथ नीचे खड़िया पत्थर पट्टी मिलती है। कुएँ का पानी कहर होने के कारण पिया नही जा सकता। इसी कारण कुईंयाँ बनाने की आवश्यकता होती है। यह पानी अमृत के समान मीठा होता है। पहला रूप है पालरपानी  – इसका मतलब है बरसात के रूप में मिलने वाला पानी, बारिश का वो जल जो बहकर नदी , तालाबों आदि में एकत्रित होता है। दूसरा रूप है  पातालपानी – बारिश का पानी ज़मीन मे धसकर भूजल बन जाता है ,वह हमें कुओं,ट्यूबवेल द्वारा प्राप्त होता है । और तीसरा रूप है रेजाणपाणी – वह बारिश का पानी जो रेत के नीचे जाता तो है, लेकिन खड़िया मिट्टी के कारन भूजल नही मिल पाटा व नमी के रूप में समा जाता है।

वर्षा की मात्र नापने के लिए इंच या सेंटीमीटर का उपयोग नही बल्कि रेजा शब्द का प्रयोग किया जाता है।रेजाणपाणी खड़िया पट्टी के कारण पतालिपानी से अलग बनता है। इस पट्टी के न होने कारण से रेजानिपाणी और पतालिपानी खारा हो जाता है। रेजाणपाणी को समेटने के लिए कुईं का निर्माण होता है।कुईं निर्माण के बाद उत्सव महोत्सव मनाया जाता है, चेजरों को राजस्थान में विशेष दर्जा प्राप्त था। चेजरों की विदाई के समाये उन्हें अलग – अलग तरह की बेट दी जाती थी । कुईं के बाद भी उनका रिश्ता बना रहता था , तीज , त्योहारों और विवाह जैसे मांगलिक कार्यो में भी बेट दी जाती थी। फसल आने पर खलिहान का एक हिस्सा उनके लिए रखा जाता था।  लेकिन आज के समय में उन्हें वो सम्मान नही दिया जाता है उनसे बस एक मजदूर की तरह काम करते है।अब कुई में पानी नाम मात्र का ही रहेता है।दिन- रात मिलाकर बस  तीन – चार घड़े की भर पाते है। कुईं के हर घर में है लेकिन ग्राम पंचायत का नियन्त्र बना है।नए कुईं के निर्माण की अनुमति कम ही मिलती है क्योंकि श्री कुईं निर्माण से भूमि की नमी का बंटवारा हो जाता है।  चुरू, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर में खड़िया पत्थर की पट्टी पाई जाती है इसलिए यहां हर घर में कुईं पाया जाता है।  
 
कठिन शब्दार्थ

चेलवांजी — कुईं की खुदाई और चिनाई करने वाले लोग।
 गोचर — चारागाह।
 तरबतर – अधिक भीगा हुआ 
 विचित्र – अजीब
 उखरूं-घुटने मोड़ कर बैठना 
 मरुभूमि – मरुस्थल ,
 डगालों  – मोटी टहनियों 
 विभाजन – बटँवारा 
 संकरा – थोड़ी जगह
आंच प्रथा – राजस्थानी प्रथा 
पेचीदा – उलझा हुआ
 खिम्प — एक प्रकार की घास जिसके रेसों से रस्सी बनती है।  
 आवक – जावक — आने जाने की क्रिया
   
Rajasthan Ki Rajat Boonde:Q+A

प्रश्न 1. राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुंओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर-वर्षा जल का संग्रहण के लिए राजस्थान में कुंई का निर्माण किया जाता है। राजस्थान में रेत अति गहरा होने के कारण वर्षा का पानी मरुस्थल  में समा जाता है धीरे – धीरे इसमें कुंई में समा जाता है। कुईं यानी एक छोटा सा कुआँ। कुआँ पुल्लिंग है और कुईं स्त्रिलंग है।  कुईं की गहराई सामान्य कुँए जैसी ही होती है मगर इसके व्यास में अंतर होता है। कुओ का व्यास तकरीबन पंद्रह या बीस हाथ का होता है जबकि कुईं का व्यास लगभग पाँच या छह का होता है। 

 प्रश्न 2.“दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें?
उत्तर- दिनोंदिन पानी की समस्या भयानक रूप ले रही है। जैसा हम सब जानते है की जल ही जीवन है लेकिन लगातर बढ़ रही जनसख्या और घखखट रहे जल स्तोत्र है प्रकृति के अत्यधिक प्रयोग के कारण पानी की समस्या भयंकर होती जा रही है। हर  जगहों पर लोग पानी की कमी से जूझ रहें हैं। ऐसे माहौल में राजस्थान की रजत बूंदें पाठ से हमें जल प्राप्ति के अन्य स्तोत्र और पानी के उचित उपयोग पर विचार करने में मदद करता है।

पानी की समस्या से निपटने के लिए कई सरकारी और गैर सरकारी संगठन अभियान चला रहें हैं। लोगों कोअलग अलग माध्यम और कार्यक्रमों से हस्तियों द्वारा पानी के विषय मेंअवगत कराया जा रहा है। गाँवों में तालाबों का पुननिर्माण किया जा रहा है। छोटे कुएँ, बावडियों और जलाशयों का निर्माण कर पानी के भूमिगत जल-स्तर को बढ़ाया जा रहा है।

प्रश्न 3.चेजारों के साथ गाँव-समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है पाठ के आधार पर बताइए?
उत्तर – चेलवांजी यानी चेजरों, कुईं की खुदाई और एक विशेष तरह की चिनाई करने वाले दक्षतम लोग। चेजरों को राजस्थान में विशेष दर्जा प्राप्त था। चेजरों की विदाई के समाये उन्हें अलग – अलग तरह की बेट दी जाती थी । कुईं के बाद भी उनका रिश्ता बना रहता था , तीज , त्योहारों और विवाह जैसे मांगलिक कार्यो में भी बेट दी जाती थी। फसल आने पर खलिहान का एक हिस्सा उनके लिए रखा जाता था।  लेकिन आज के समय में उन्हें वो सम्मान नही दिया जाता है उनसे बस एक मजदूर की तरह काम करते है।

प्र्श्न4 निजी होते हुए भी सार्वजनिक छेत्रो में कुईयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है ।लेखक ऐसा क्यों कहा है।
उत्तर – राजस्थान के लोग जानते है कि भूमि के अन्दर मौजूद नमी को ही की कुईं के द्वारा पानी के रूप में प्राप्त किया जाता है।जितनी कुईं का निर्माण होगा उतना पानी का बटवारा होगा इससे कुईं की पानी एकत्र करने में असर पड़ेगा। इसी कारण ग्राम समाज नीजी होते हुए भी सार्वजनिक छेत्रो में कुईयों पर अंकुश लगा रहा है ।

प्रश्न5 कुईं निर्माण में निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें-
पालरपानी,
पातालपानी,
रेजाणपाणी।
उत्तर – राजस्थान में पानी के तीन रूप है -पालरपानी  – इसका मतलब है बरसात के रूप में मिलने वाला पानी, बारिश का वो जल जो बहकर नदी , तालाबों आदि में एकत्रित होता है।  
पातालपानी – बारिश का पानी ज़मीन मे धसकर भूजल बन जाता है ,वह हमें कुओं,ट्यूबवेल द्वारा प्राप्त होता है ।
रेजाणपाणी – वह बारिश का पानी जो रेत के नीचे जाता तो है, लेकिन खड़िया मिट्टी के कारण भूजल नही मिल पाटा व नमी के रूप में समा जाता है।

Rajasthan Ki Rajat Boonde : MCQ

राजस्थान की रजत की बूंदे के पाठ लेखक है ?कुमार गंधर्व 
बेबी हालदार
सुमित्रानंदन पंत 
अनुपम मिश्र
उत्तर -(d) अनुपम मिश्र 

कुईं की कितनी गहरी खुदाई हो चुकी है ?दस – बीस हाथ
पंद्रह -बीस हाथ
तीस – पैंतीस हाथ 
बीस – पचिस हाथ
उत्तर -(c)तीस – पैंतीस हाथ 

कुईं शब्द से तात्पर्य है खुला स्थान
गहरा स्थान
छोटा सा कुआँ 
गहरा सा कुआँ 
उत्तर -(c)छोटा सा कुआँ

चेलवांजी का शाब्दिक अर्थ है ?चेजरों
निहारो
पुचकारो 
फटकारो 
उत्तर -(a)चेजरों

बड़े कुओं के पानी का स्वाद कैसा होता है ?मीठा 
खारा 
कड़वा 
नमकीन 
उत्तर -(b) खारा 

कुईं के पानी को साफ़ रखने के लिए उसे की ढक्कन से ढका जाता है ?पत्थर
लकड़ी 
लोहा
ताबा 
उत्तर -(b)लकड़ी 

कुईं की खुदाई किससे की जाती है ?बसौली से 
दराती से 
फफडे से 
हत्थी से 
उत्तर -(a)बसौली से 

वर्षा की मात्र नापने के लिए किस शब्द का प्रयोग होता है ?रेजा 
पत्त्ती 
इंच 
सेंटीमीटर 
उत्तर -(a) रेजा

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