मेरा मन

कल शाम को उनका फ़ोन आया और बोलीं कि आज तो निकल आओ अपने दरबे से, बसंत पंचमी के दिन।कनॉट प्लेस पे हूँ,तुरंत आओ।गया तो बोलीं कि बसंत पंचमी में तो थोड़ा खुश हो लो।हमेशा मुहवा काहे लटकाये रहते हो? कुछ लिखे हो तो सुनाओ।तो मैंने जो सुना दिया उसकी वजह से दुःखी हो  के चली गईं हैं और कल से फोन तक नही आया........आप भी पढ़ लें.........

तुम कहती हो बसंत आ गया,जीवन में नवरंग छा गया।
प्रिय! मैं ना कह पाऊँगा, इस प्यारे वसंत का मैं, स्वागत ना कर पाऊँगा।स्वागत न कर पाऊँगा।।

मेरे हृदय स्थल में लाखों प्रश्न पड़े हैं अनसुलझे ।
भ्रष्ट आचरण ,भूख, गरीबी, मानवहत्या उलझे-उलझे।।
भूखे बच्चों की तस्वीरें,पीड़ितजन फूटी तकदीरें।
काले दिल के बाजारों में,मानव सुलगे धीरे-धीरे।।

लुटी अस्मिता महिलाओं की,नन्हे बच्चे करें चाकरी।
भूखा मानव,मानव खाये,मानवता की सांस आख़िरी।।

ऐसे में कैसे मैं कह दूँ,इस प्यारे वसंत को सह दूँ।
कैसे स्वागत में झुक जाऊँ, पोंछ के आँसू मैं मुसकाउँ।।
प्रिय मैं ना कह पाऊँगा, इस प्यारे वसंत का मैं स्वागत ना कर पाऊँगा।।
प्रिय मैं ना कह पाऊँगा, इस प्यारे वसंत का मैं स्वागत ना कर पाऊँगा।।

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