कुछ चौपाये शेर
1- ये जो तुम्हारे घरों के लब्बो-लुआब हैं।
ये बस! हमारी आँखों के ख्वाब हैं।।
हम यहाँ पानी को भी,तरसते हैं।
तुम्हारे घरों में,होती दावते-शराब है।।
2- तुम्हारे साथ चल सकूँ मैं , इतना मुझे शऊर नही।
किसी और का हाथ पकड़ूँ मैं, ये तुम्हे मंजूर नही।।
इस पत्थर दिल दुनिया में, जहाँ ठोकर ही ठोकर है।
मैं अकेला चल सकूँ, इतना मेरा वजूद नही।।
3-कहाँ गए 15 लाख,कहाँ गया लोकपाल।
दिल्ली की जनता अब हो गयी है बेहाल।।
ना ढंग की शिक्षा, न रोटी कपड़े का अधिकार।
तो सब मिलकर बोलो भैया,तीन सरकार-तीनों बेकार।।
4- दिल की ख़लिश को, सुकून चाहिए।
कब तक जियूँ अवसाद में, जुनून चाहिए।।
इन बंद दड़बों में, मेरी साँस घुटती है।
दे दो मुझे आज़ादी, ले लो गर तुम्हे ख़ून चाहिए।।
5-
यहाँ इंसान कीमती है सामान नही।
ये मेरा घर है तुम्हारी दूकान नही।।
यहाँ अब भी चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती है।
ये मेरा गुलिस्ताँ है तुम्हारा रेगिस्तान नही।।
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