गोदान का होरी
आप कश्मीर पर जाएं या कन्याकुमारी पर, वहाँ आपको ‘ होरीराम ’ को अवश्य मिलेंगे I तमिलनाड़ के पोल्लाचि में हो या सेलम व कॉयंबत्तूर अथवा केरल के कालिकट, एरणाकुलम या तिरुवनंतपुरम में, आँध्रा के चिट्टूर अन्यता और कहीं, होरीराम को ज़िन्दा देख सकेंगे I उत्तर भारत में ही नहीं, दक्षिण भारत में नहीं, पूरे भारत में ही नहीं, पूरे संसार में "गोदान" का होरी जीवित है I उनमें हम पर्यावरण-प्रदूषण संबंधी कुछ पाठ देख सकते है। किंतु होरी पर निहित पारिस्थितिक पाठ भी अञात या अल्पञात है । अलग भाषी अपनी अपनी अलग अलग भाषा में होरीराम को जानते ही नहीं, पहचानते भी है I उनके रूप और भाव में कोई बदलाव नहीं, पहले जैसे थे वैसे अब भी मिलते है I आज भी वह थका हुआ है I इस थकान मूल कारण उनके चारों ओर के परिस्थितियाँ है । वह अब भी पहले के जैसे निर्धन, निसहाय और निष्कलंक किसान है I यह होरी इधर 77 साल से पहले अवतरित हुए I जन्म लेते समय उनकी आयु कितनी थी, अब कितना हुआ है, मालुम नहीं I किंतु यह हमें मालुम है कि सालों, कालों और लोगों को पारकर वह ज़िंदा है । दूसरे रचनाकार के कलम से एक दूसरा होरी आज तक जन्म नहीं लिया है I अगर पैदा हुआ तो वह गोदान के होरी के व्यक्तित्व से मुकाबला करने वाला होरी नहीं है I गोदान पढ़े गये लोगों के मन और मस्तिष्क में होरी ने जितनी चिर प्रतिष्ठा पायी, उतनी भारतीय भाषाओं के उपन्यास के दूसरा कथापात्र नहीं पाये है I प्रकृति में मनुष्य ही नहीं, लाखों-करोडों अन्य जीव-जन्तु भी है । हमारा अस्तित्व उनके अस्तित्व पर निर्भर है । वह आज के मनुष्य के समान प्रकृति-नाश की ओर नहीं मुडते है । जीने वाली अंतरिक्ष की नाश अपनी जीवन की सत्यनाश है- यह विवेक आद्यंत हम होरी में देखता है । होरी भारतीय है I वह इधर जन्मकर, इधर के सब अच्छाई-बुराई को अपने आँखों से देखकर, थोडी अच्छाई और बडी बुराई सहन कर जिया उसमें पूर्ण रूप में भारतीयता है I होरी के समान पर्यावरण – प्रदूषण को जानने-मानने वाले किसान अपूर्व है । इसलिए होरी अमर संदेश प्रचार करने वाला संदेशवाहक है I
होरी एक छोटा किसान है I लाखों करोडों लोग सहर्ष स्वीकृत कर अपने मन पर प्रतिष्ठित किया गया एक अतिसाधारण, फिर भी अमर ग्रामीण किसान I इस अमरत्व के पीछे उनकी प्रबल विचार धारायें है । उनका एक छोटा लालसा है, एक गाय को पालना I यह भारतीय किसान के भीतर का दीप है । पशु पालन प्रकृति संरक्षण की आधार शिला है । प्रकृती, मनुष्य के समान दूसरों की वासस्थान भी है । यह महत्वपूर्ण मोह या संदेश को लेकर चलने वाला एक परिपूर्ण किसान को दूसरे कृति में नहीं पायेंगे I उनका मोह खुल नहीं गया, कली के रूप में मुर्झाया गया I फिर भी उनके अभिलाषा की गाय करोडों के दिल में अब भी चर रही है I सात दशक पहले "कलम के सिपाही" के स्याही से जन्म लिया यह गरीब किसान कालजयी है I उनका संदेश भी काल को जीतता है ।
महाकाव्योचित उपन्यास "गोदान" का केन्द्र कथापात्र होरी है I इस उपन्यास में होरी के सिवा धनिया, गोबर, भोला, मादादीन, राय साहब, मिसिस मालती, मिस्टर मेहता और खन्ना जैसे अनेक कथापात्र आते है I ये सब पारिस्थितिक वातवरण को गुण या दोष पहूँचाने वाले है । गोदान से पहले और बाद में भारतीय भाषाओं में कितने उपन्यास प्रकाशित हो चुके है I उनमें कितने भले-बुरे कथापात्र आये और गये, उनका चेहरा हमें होरी के समान नहीं लगता, उसका चमक नहीं मिलता तथा उनमें से उतना दुःख-दर्द प्रतिफलित नहीं होता I उससे भिन्न होकर गोदान का होरी लाखों के दिल में चढ गया और अपनी छाप अंकित किया I हमें आज भी किसी किसान को देखते समय होरी के प्रतीति पैदा होती है I "गोदान" गत होकर भी समकालीन प्रतीत होता है । जिसमें गाँव और शहर की दो कथा एकसाथ चलती है । के समान हम में प्रकृति संरक्षक होरी भी समकालीन बन कर रहता है I हर एक गृहस्थ की भाँति होरी के मन में भी गाऊ की लालसा चिरकाल से संचित चली आती थी- यह चिरकाल की लालसा भारतीय किसान की पर्यावरण संबंधी अल्पञान नहीं है । इसलिए कि होरी की प्रामाणिकता तोडने को लायक दूसरा नहीं जन्मा है I
होरी हिन्दी भाषियों के ह्रदय में ही नहीं, बल्कि अन्य भाषियों के मन में भी इतनी स्थान कैसे पा ली ? इसका सरल उत्तर यह है कि मुंशी प्रेमचंद के कलम से पैदा होने के कारण I होरी चिरंजीव प्रेमचंद का पात्र-सृष्टि का अंतिम परिणाम है और अन्यत्र न देखने वाला रचना कौशल का चोटी भी I "गोदान" उपन्यास सचमुच एक जादू का पिटरा है I होरी उस पिटरे को खोलने की चाबि है I प्रेमचंद ने अपने प्रिय भाजन का वर्णन करने के लिए एक अभूतपूर्वक माया दिखाया है, देखिए वह सुवर्णाक्षर-“होरी का चेतना लौटी I मृत्यु समीप आ गयी थी I धनिया को दीन आँख से देखा I क्षीण स्वर में बोला-' मेरा कहा-सुना माफ करना धनिया I अब जाता हूँ I गाय की लालसा मन में ही रह गयी I अब तो यहाँ के रुपये क्रिया-करम में ही जाएँगें I रो मत धनिया, अब कब तक जिलाएगी ? सब दुर्दशा तो हो गयी I अब मरने दे I" हाँ, होरी मर गया । मरते समय भी, भारतीय प्रकृति-संरक्षण की मूर्त चिंता, गाय को पालने की छोड नहीं सकी । होरी मर कर भी उनका गाय का लालसा न मरा, वह लाखों- करोडों पाठकों के मन में आग के जैसे आज भी ज्वल रहे है I
ऊपर बता दिया है कि होरी विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'गोदान' का केन्द्र कथापात्र है, यह ही नहीं, 36 अध्यायों के इस उपन्यास को आद्यन्त चलाने वाला कथापात्र भी है I इस उपन्यास के चारों दिशाओं की ओर रोश्नी डाल कर होरी इसके हर पात्रों एवं सन्दर्भों को आपस में मिलाते जुलाते भी है I खेतीबारी पर्यावरण- प्रदूषण की एक साफ रास्ता है । सहसा उसने देखा, भोला अपनी गायें लिये इसी तरफ चला आ रहा है । भोला इसी गाँव से मिले हुए पुरवे का ग्वाला था और दूध-मक्खन का व्यवसाय करता था । अच्छा दाम मिल जाने पर कभी कभी किसानों के हाथों गायें बेच भी जाता था । होरी का मन उन गायों को देखकर ललचा गया । निरंतर धर्म संकट पर पडते समय वे पश्चाताप नहीं करते है I उनकी शब्दकोश में दंभ, घृणा, गुस्सा तथा पराक्रम का भाव तनिक भी नहीं है I सभी प्रकार के नागरिक जीवन से मुफ्त होकर नरकीय जीवन बिताने समय भी यह किसान किसी प्रकार की पारिस्थितिक आघात करने को तैयार नहीं होता । यह किसान हमारे साहित्य का एक अनोखा कथापात्र है I भारत की पुरानी ग्राम्य जीवन की विशुद्धि एवं आस-पास के प्रति उनकी विशिष्ट दृष्टिकोण आधुनिक पीढि को समझाने केलिए होरी पर्याप्त है I उसमें किसान का मोह और मोहभंग मौजूद है I प्रेमचंद ने उसे एक महत्वाकाँक्षी महापुरुष के रूप में नहीं, मज्जा-माँस वाला एक निष्कलंक गाँववासी का परिवेश के साथ प्रस्तुत कर दिया है I घर के द्वार पर एक गौ को बाँधना उनका अत्याग्रह है, यह एक दुराग्रह नहीं है । “रंगभूमि के बाद प्रेमचंद ने अपने अमर कृति गोदान(1936)लिखी जो एक तरह से उनके जीवन का भी गोदान है I इस कृति के द्वारा प्रेमचंद ने होरी के रूप में एक ऐसे किसान चरित्र को प्रस्तुत किया जो सहनशीलता में रंगभूमि के सूरदास से भी आगे है I "होरी एक ऐसे वृक्ष के तरह है जो हवा के थपेडों से कभी झुकता है, कभी सिर उठाता है, लेकिन अपनी ज़मीन नहीं छोडता I होरी इतना अल्पसंतोषी, महत्वाकाँक्षाहीन, निष्क्रिय और समझौतावादी है कि उपन्यास के अंत में जब उसकी मृत्यु होती है तो उसके जीवन का दुःखद अन्त पाठक को भीतर से झकझोर देता है I गोदान भारतीय किसान की निष्क्रियता का महान ट्रेजडी है" - (प्रेमचंद और भारतीय समाज- डा.नामवर सिंह) I
"गोदान" प्रेमचंद का अंतिम उपन्यास है, जिसकी वातावरण और कथापात्रों का सृष्टि उन्होंने अकस्मित रूप में नही, बहुत सोच समझकर और जान बूझकर किया था I इस में होरी का पात्र-सृष्टि सावधानी की अवसान सीमा की निदर्शना है I प्रेमचंद का लक्ष्य यह था कि होरी अपने ही नहीं, आगे की सब लोगों की प्रिय पात्र बन जायें I इस केलिए उन्होंने उसकी चरित्र निर्माण में अपनी जीवन की कुछ घटनाओं को मिलाया और जुलाया है I अथवा होरी के चरित्र में रचिता का आत्मांश पाया जाता है I यह सत्य है कि होरी को किसान के सभी गुण-अवगुण प्रदान करने केलिए लेखक ने यहाँ वहाँ के किसानों को अवश्य निरीक्षण किया है I कभी कभी उससे अधिक अपनी भूत-वर्तमान काल की जीवन पर दृष्टि भी डाला है I होरी में मुंशी का आत्मांश उनका पुत्र अमृतराय ने स्वीकार भी किया है I
विख्यात उपन्यास गोदान में आदि से अंत तक प्रकृति की आविष्कार सुंदर ढंग किया गया है । कृषि पर्यावरण संरक्षण की सबसे बडी उपाय है । वास्तव में खेतीबारी से हमारी प्रकृति संरक्षण की प्रक्रिया चल रही है । इससे शुद्ध वायु और शुद्ध जल मिल सकती है । वैसे ऑक्सिजन की उत्पादन भी होती है । खेती से कभी लाभ या कभी नष्ट होती है । किसान को नष्ट होती तो सरकार उसे पैसा देकर संरक्षित करना आवश्यक है । ऐसा करने से सरकार पर्यावरण संरक्षण कर जाता है । होरी की फसल सारी-की सारी डाँड की भेंट हो चुकी थी । बैसाख तो किसी तरह कटा, मगर जेठ लगते लगते घर में आनाज का एक दाना न रहा ।पाँच पाँच पेट खाने वाले और में अनाज नदारद । एक और संदर्भ देखिये- फागुन अपनी झोली में नवजीवन की विभूति लेकर आ पहुँचा था । आम के पेड दोनों हाथों से बौर के सुगंध बाँट रहे थे और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का गुप्त दान कर रही थी । गाँव में ऊख की बोआई लग गयी थी । अभी धूप नहीं निकली, पर होरी खेत में पहुँच गया है । धनिया, सोना, रूपा तीनों तलैया से ऊख के भींगे हुए गट्ठे निकाल- निकालकर खेत में ला रही है और होरी गँङासे से ऊख के टुकडे कर रहा है । इस प्रकार गोदान में अनेक स्थानों में प्रकृति मनोरम चित्रीकरण हुआ है ।
हम देख सकते है कि हर हालत में भारतीय किसान अपने परिस्थिति या विधि वैपर्य का शिकार बन जाता है I हमारे किसान का इतिहास विडंबनाओं के नीचे दबने व दबाने का इतिहास है I उस ज़माने में हो या इस ज़माने में, दूसरों का पेट भराने वाला किसान तनिक भी संतुष्ट नहीं है I इसके कारण ढूँढते समय समस्या सीधे ॠण पर जा पहुँचती है I कृषक का काम "वॉईट कॉलर जॉब" नहीं है I उनका "जॉब टॉइम" सरकारी कर्मचारी के समान दस बजे से पाँच बजे तक के निश्चित समय के भीतर भी नहीं है I इस प्रकार काम करने वाले किसान अंत में क्या पाते है ? आज भी भूख, बीमारी और ॠण उनका सहचर है I अभाव भारतीय किसान का जन्म जात अवगुण भी है I उनका मन तीव्र व्यथाओं का अग्निकुंड है I दूसरे वर्ग का भविष्य स्वर्णिम है तो किसान का भावि अंधकारमय है I ऊपर कहे गये सारे अभाव व अवगुण केवल होरी में ही सीमित नहीं होती, कन्याकुमारी से कश्मीर तक के सभी किसान यह दुर्दशा सह सकते है I इसका नतीजा यह होता है कि लोग कार्षिक वृत्ति से अलग होती जा रही है I यह सारी प्रकृति को परिस्थति नाश की ओर उंटेलती है । कृषि की कम होती तो अंतरिक्ष की कॉरबनडै आक्सैड की मात्रा बढ सकती है- यह शास्त्र तत्व शास्त्रकारों से पहले हमारे किसान जानते थे । गोदान का होरी जैसै किसान यह खूब जानते थे ।
"गोदान" में प्रेमचंद एकसाथ दो समानान्तर कथा बता दिया है I मुख्य रूप में होरी और धनिया की कार्षिक-पारिवारिक कथा है, यहाँ गाँव की पारिस्थितिकता का चित्रण होता है । गौण रूप में मेहता और मालती की कथा चल रही है I यहाँ भी पर्यावरण संबंधी चित्रीकरण मिल सकता है । इसके अलावा इसमें छोटे-छोटे कथा संदर्भ और भी होते है I जिसकी कथा होती, उसकी परिपूर्णता होरी पर आकर रुक सकती है I अथवा हर प्रसंग का निष्कर्ष होरी और उसकी अंतरिक्ष है I अतएव होरी विश्व विख्यात उपन्यास गोदान का "हीरो" ही नहीं, बडे कलेवर वाले इस उपन्यास के प्राण भी यह किसान है I उसकी स्थान मनुष्य शरीर में साँस जैसा है । बाकी सभी कथा और कथापात्र लंबे शरीर का अंग-प्रत्यंग मात्र है I प्राण न होती तो उस शरीर से क्या फायदा ? आधिकारिक कथा का "हीरो" होरी प्रेमचंद का आदर्शपूर्ति का एक उपाय मात्र है I उपन्यास के आरंभ से अवसान तक लेखक की पूरी प्रोत्साहन मिलने के कारण वह संघर्ष करते जा रहे है I अपने कथापात्र पर रचिता का यह विशेष अनुराग प्रेमचंद का कृषक वात्सल्य का निदर्शना है I प्रेमचंद ग्रामीण शुद्ध वायु एवं निर्मल पानी को पसंद किया गया एक समझदार-विवेकी लेखक है । उन्हें ग्रामीण जीवन से विमुख रहना संभव नहीं है । देहातों में साल के छः महीने किसी न किसी उत्सव में ढोल-मजीरा बजता रहता है । होली के एक महीना पहले से एक महीना बाद तक फाग उड़ती है, आषाढ लगते ही अहल्य शुरु हो जाता है और सावन-भादों में कजलियाँ होती है । कजलियों के बाद रामायण-गान होने लगता है ।
प्रेमचंद की होरी अन्य लेखकों की लखनी से निकली किसान कथापात्रों से भिन्न कथापात्र है I ॠण के नीचे दबते समय भी प्रेमचंद का यह किसान दूसरों को कोसता नहीं है तथा अपनी ईमानदारी छोड नहीं सकती है I वे दूसरों के समान टेढे मेढे रास्ते पर चलकर अपना क्षति पूर्ति करना नहीं चाहता है I सीधे साधे जीने की आग्रह उस पर खूब है साथ ही साथ सरलता और सादगीपन भी है I होरी की चरित्र की एक और उज्वलता मुसीबतों को सामना करने की उनकी दृढ संकल्प है I लोगों का धारणा है कि मनुष्य जीवन की सबसे बडी समस्या भूख है I हमें इस धारणा से सहमत नहीं है I भूख जैसी बडी बडी सभी समस्याओं की मूल कारण अर्थाभाव है I होरी की हर मामला धनाभाव पर अधिष्ठित है I उसकी जीवन दुर्बल होने के कारण को अन्यत्र ढूँढना व्यर्थ है I पुराने काल में पानी सुलभ है । फ्लास्टिक जैसी भयानक हानिकारक वस्तु नहीं है । फिर भी किसान को खेती से लाभ नहीं मिलती है ।
हमें युग सृष्टा प्रेमचंद के कलम से एक दर्जन से अधिक उपन्यास और तीन सौ से अधिक कहानी मिले है I उन रचनाओं की असंख्य कथापात्रों में पाठकों के ह्रदय में ज़्यादा करुणा पैदा करने वाला कथापात्र अकेला होरी है I इसका कारण है-उसकी आर्थिक वैतरणि I इसके बारे में मैंने पहले कह चुका था I यह वैतरणि जन्म से मृत्यु तक प्रेमचंद भी झेला था I उनका यह कटु जीवन अनुभव मुंबाई पर रहते वक्त मुंशी प्रेमचंद ने अपना समकालीन रचनाकार जैनेन्द्र कुमार के नाम पर लिखे गये पत्र में इस प्रकार व्यक्त किया है-“कर्ज़दार हो गया था, कर्ज़ पडा दूँगा, मगर और कोई लाभ नहीं है I उपन्यास (गोदान)के अंतिम पृष्ठ लिखने बाकी है I उधर मन ही नहीं जाता I (जी चाहता है)यहाँ से छुट्टी पाकर अपने पुराने अड्डे पर जा बैठूँ I वहाँ धन नहीं है, मगर सन्तोष अवश्य है I यहाँ तो जान पडता है कि जीवन नष्ट कर रहा हूँ "I अपना यह कर्ज़ अदा करने का और 'जान नष्ट होने' का विवरण, किसान का ह्रदय वाला ग्रामीण व्यक्ति प्रेमचंद अपना सुगढित पात्र होरी के माध्यम से व्यक्त किया है I अपने सृष्टा का जीवन चरित बताना होरी का एक और महत्व है I
'धर्मार्थकाममोक्ष' के बारे में हमरे धर्म ग्रन्दों में ऊँचे ऊँचे वर्णन है I यह पहले के समान हमारे किसानों को आज भी अप्राप्य है I गोदान के होरी को हमारी धर्म से, अर्थ से और काम से तनिक भी मोक्ष नहीं मिलता है I उन्हें ही नहीं आज के भारतीय किसान को भी धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष केवल आलंकारिक शब्द मात्र है I डॉ. महेन्द्र भटनागर का मत ध्यान देने को योग्य है-“होरी के दयनीय चित्र द्वारा प्रेमचंद ने समाज को चुनौती दी है कि किसान अस्तित्व-अनस्तित्व के दुराहे पर खडा है, जहाँ से आगे या तो आत्म-संहार की अतुल जलराशि है या स्वत्व छीन कर इन्सान की तरह जी जाने के संकल्प की कठोर-विषम-भूमि विनाश है या क्राँति "I मनुष्य को समाज की व्यवस्था-प्रणाली से अलग होकर रहना संभव नहीं है I यह प्रणाली प्रकृति नियमों से संबंधित है । ये व्यवस्था कभी कभी तलवार के समान उनके सिर के ऊपर रहते है I हमारी हर व्यवस्था की नींव महाजनी सभ्यता से जुडी हुई है I किसानों के बारे में तो कालाकाल से यह व्यवस्था उनके पैरों पर जंजीर जैसी होती है I इसलिए इधर किसानों के आत्महत्या बढ़ती जा रही I सभी प्रकार के कमज़ोरियाँ को सामना करने का नौबत पैदा करनेवाला यह दुःस्थिति भारतीय किसान का शाप है I हम गोदान की होरी में यह कमज़ोरी देख सकता है I हर समाज में और वातावरण में घटित होने के समान यहाँ भी होरी से राय साहब लाभ उठाता है I
होरी का व्यक्तित्व प्रेमचंद के आदर्श पर अधिष्ठित है I प्रेमचंद आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का सृष्टा और वक्ता है I उनका मार्क्सवादी दृष्टिकोण होरी के मुँह से इस प्रकार फूटता-“भगवान सबको बराबर बनाते है I यहाँ जिसके हाथ में लाठी है, वह गरीबों को कुचलकर बडा आदमी बन जाता है "I- (गोदान, अध्याय -3) I यह बराबरी का भाषण किसान होरी अपना बेटा गोबर को देता है या प्रेमचंद ने होरी द्वारा पूरे संसार को देता है ? अध्याय 6 में देखिए-” होरी गंवार था I लाल पगड़ी देखकर उसके प्राण निकल जाते थे, लेकिन मस्त साँड पर लाठी लेकर पिल पडता था I वह कायर न था, मारना और मरना दोनों ही जानता था, मगर पुलिस के हथकण्डों के सामने उसकी एक न चलती थी I बँधे बँधे कौन फिरे, रिश्वत के रुपये कहाँ से लाये, बाल-बच्चों को किस पर छोडे, मगर जब मालिक ललकारते है, तो फिर किसका डर ? तब तो वह मौत के मुँह में भी कूद सकता है- "I यह है प्रेमचंद का और हमारा होरी I उनमें मानव सुलभ दुर्बलताओं के साथ साथ अनेकानेक सबलताएँ भी निहित है I अवसर मिलता तो अपना यथार्थवाद और आदर्शवाद प्रकट करने वाला होरी लेखक का पक्षपात का उत्पन्न् है I दूसरों के पेट भराना अपना दायित्व समझने वाला भारतीय किसान का दुर्बलता या कमज़ोरी का कारण उनका यह उदार मनोभाव और प्रकृति को वश पर रखने की क्षमता है । गोदान के रचना के बाद यहाँ ढेरों उपन्यास रचे गये I फिर भी प्रेमचंद से हमें मिली बडी उपलब्धी- होरी जैसा ही वैसा रहता है I यह कालजयी कथाकार, कथा और कथापात्र का विजय है I
varsh 1936 mea prakashit upanyash premchandra ka aakhiri upanyash mana jata hai. yah ek behtarin upanyash hai jisme premchandra ki rachna kalaa apne sarvashresth astar par hai....
ReplyDeletePremchandra ji ne karj k nichr dabe dhire - dhire marte aur dubara aage badhte bharat k kishano ki mann ki dashaa ko bakhubi darshaya hai. unhone hmare desh k ridh ki haddi khe jane wale kishan k andhkarmya jivan aur bebashi ka sajiv chitran kiya hai.