तुम्हारी याद में
दोस्तों, नोटबंदी चल ही रही है।अर्थव्यवस्था की 'ऐसी की तैसी' हुई पड़ी है।देखो उबरने में कित्ता समय लगेगा।उधर यूपी में मुलायम का दिल बेटे के लिए फिर मुलायम हो गया है।डिम्पल यादव भी तीन-तीन सास-ससुरों को झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो ही जाएँगी।आज ही पाकिस्तान ने फिर घुसपैठ कर दी।इन सब के बीच नया साल भी आ गया है।दोस्तों नये साल में राजनैतिक टिप्पणियों से हट के कुछ लिखने का सोचा तो याद आया की 'प्रेम' पे कुछ लिखा जाए। दोस्तों 'प्रेम ' शाश्वत है।देश और काल से परे है यह।तो आइये पढ़े और आनंद ले प्रेम की सार्वभौमिकता का....
कविता का शीर्षक है-तुम्हारी याद में....
तुम कहती हो मेरे दिल के,भावावेगों को जानती हो।
तुम कहती हो मेरे आत्मा के,संवेगों को पहचानती हो।।
तुम कहती हो मेरे दिल की धड़कन, तुम खुब सुन सकती हो।
तुम कहती हो खुद की आँखो मे,मेरे सपने बुन सकती हो ।।
क्या ये सब सच मे होता है ?या यूँ ही मुझे बनाती हो ।
यूँ झूठ-मूठ बाते करके, तुम मेरा मन बहलाती हो ।।
तुम कहती हो फूलों पर क्या, कांटो पर साथ चलेंगे हम ।
महल नही होगा तो क्या, झोपड़ियो मे रह लेंगे हम ।।
तुम कहती हो साथ तुम्हारा हो,तो कुछ भी कर लेंगे हम ।
एक मरु उद्यान बना करके, आकाश पुष्प भर लेंगे हम ।।
तुम कहती हो मेरे खातिर,अपना सब कुछ कुर्बान करोगी ।
मेरे प्राणों के हित मे,यम के समक्ष, अपने प्राणों को आन धरोगी ।।
क्या ये सब सच मे होता है,या यूँही मुझे बनाती हो ।
यूँ झूठ-मूठ की बातें करके,तुम मेरा मन बहलाती हो ।।
तुम कहती हो तुम हो तो,ये जीवन अच्छा लगता है ।
जब देखू तो ये जग सारा,एक हँसता बच्चा लगता है ।।
तुम कहती हो तुम न हो तो, इस जीवन का कोई सार नही ।
बस शून्य भरा होगा हर कुल,ये जगत नही संसार नही ।।
क्या ये सब सच मे होता है, या यूँही मुझे बनाती हो ।
यूँ झूठ-मूठ की बातें करके,तुम मेरा दिल बहलाती हो ।।
ये बातें बहुत पुरानी हैं,जब तुम ऐसा कहती थी ।
सारी दुनिया छोड़ छाड़,बस मुझमे खोई रहती थी ।।
पर अब जाने क्या बात हुई,क्यों तुम इतना आघात हुई ।
क्यों तुम मुझसे रूठ गई,मेरे जीवन मे रात हुई ।।
ये अब जाकर जाना मैंने,वो सब सच न होता था,जो तुम मुझसे कहती थी ।
तुम बस मुझे बनाती थी,यूँ झूठ-मूठ बातें करके, तुम मेरा मन बहलाती थी ।।
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