किसानों के लिए

दोस्तों,मौजूदा समय में देश के अन्न दाता कहे जाने वाले किसान की हालत दिन-ब-दिन बदहाल होती चली जा रही है। इसी साल सूखे की चपेट में आए बारह राज्यों के किसान अभी ठीक से संभल भी नहीं पाए थे कि पीएम मोदी के  नोटबंदी के फैसले ने उनकी ज़िन्दगी में भूचाल ला दिया है। न तो तैयार फसल की कीमत मिल रही है और न ही बीज व खाद।
इस बीच अब राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने चौकाने वाले आंकडे प्रस्तुत किए हैं जिसके मुताबिक़ फसल का उचित दाम न मिल पाने, खेती से जुडी दिक्कतें और बढ़ते कर्ज के भार की वजह से किसान आत्महत्याओं में 2014 के मुकाबले 2015 में लगभग 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
एनसीआरबी की इस रिपोर्ट को देखें तो साल 2014 में 12,360 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने खुदकुशी कर ली। ये संख्या 2015 में बढ़ कर 12,602 हो गई।किसानों की परेशानियों की सच्चाई और कटु सत्य से हम कायदे से तब अवगत हुए जब किसानों ने संसद के सामने नग्न प्रदर्शन किया।बहुत ही दुखी और निराश कर देने वाला क्षण था वो सच में!!!!!!
ऐसे में सवाल उठाना लाज़मी है कि लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी रैलियों में पीएम मोदी ने किसानो की आँखों में रौशनी जगमगाएं थी, सत्ता में आने के बाद उन वादों को भुला बैठें हैं औए अच्छे दिन आने के सपने सजोने वाले किसानों की हालत में सुधार आने के बजाए स्थिति और चिंताजनक होती जा रही है।दोस्तों इन्ही किसानों की पीड़ा को बयां करने के लिए मैंने एक टूटी-फूटी कविता लिखने का प्रयास किया है।उम्मीद है आप भी किसान का दर्द अपने सीने में महसूस कर सकेंगे....

जा रहा एक रोज मैं अपने खेत के मेड़ से।
देखा एक कृषक का शव लटक रहा था पेड़ से।।
दबा कर्ज के बोझ से था वह, बिटियाँ भी अनब्याही थीं।
घर में खाने को कुछ न था, बैंक से कुर्की आयी थी।।
रोया मैं भी जोर -जोर से, उसके शव को देख-देखकर।
नेतागण हैं जैसे रोते, झूठे आँसू फेंक-फेंककर।।

कहते हैं अन्नदाता जिनको वो पेड़ों से लटक रहे हैं।
जो जीवित बच गये अभी,वो मृत्यु की खोज में भटक रहे हैं।।

सरकारी बयान आया की कर्ज सबका माफ़ करो।
जो  किसान पीड़ित हैं ,अब उनके प्रति भी इंसाफ करो।।
कृषक प्रसन्न और हर्षित था, सच में बयान आया है क्या?
पर अगले ही पल दिल बोला,देखो चुनाव आया है क्या?
ये सब वादे झूठे हैं,अब वादों पे विश्वास नहीं।
अब तो मृत्यु चुनेंगे कृषक,अब जीवन में आस नही।।
फिर से घोर उदासी छायी काली घटा घनी घिर आयी।
फिर से अनाथ हुए कुछ बच्चे, कहाँ गए उनके दिन अच्छे।।

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