लड़ेंगे-जीतेंगे
ये कविता समर्पित है देश के किसानों को,जो कि न्याय की मांग के लिए लड़ रहे हैं।हर उस शख़्स को जो अन्याय के खिलाफ खड़ा है!!!!!!
*हम लड़ेंगे अन्याय के खिलाफ क्योंकि हमें न्याय चाहिए।
युद्ध के खिलाफ क्योंकि हमें शांति चाहिए।
भूख के खिलाफ क्योंकि हमें रोटी चाहिए।
साथी हम लड़ेंगे -हम लड़ेंगे-हम लड़ेंगे।
हम लड़ेंगे हर उस बात के लिए जो समाज के लिए जरूरी है।
हर उस बात के विरुद्ध जो समाज के लिए मजबूरी है।
हर उस बात के लिए जो मानवता के हित में है।
हर उस बात के लिए जो किसी परहित में है।
साथी,हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे।
हम लड़ेंगे तब तक, जब तक रात से सवेरा ना हो।
उजड़ी बस्तियों से, जब तक बसेरा ना हो।
धुँधली हुई रात से, जब तक दीप ना जले।
तन्हाई के लम्हात से, जब तक मीत ना मिले।
साथी, हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे।।
हम लड़ेंगे हर उस झूठ के खिलाफ जो सच को दबाता हो।
हर उस शख़्स खिलाफ जो किसी और को सताता हो।
हर उस सत्ता के खिलाफ जो लोकतंत्र का दमन करे।
हर उस आवाज के खिलाफ जो बात-बात पर वमन करे।
साथी हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे॥
हम लड़ेंगे क्योंकि लड़ना जरूरी है,संघर्ष ही जीवन है ना कि मजबूरी है।
क्योंकि लड़ने से ही अधिकार मिलेंगे।
क्योंकि लड़ने से ही बात बनेगी।
क्योंकि लड़ने से ही आस जगेगी।
साथी हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे- हम लड़ेंगे॥
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